महाकुंभ में भक्त लगाकर लगा रहें है आस्था की डुबकी

राजस्थान- महाकुंभ मेला (पवित्र घड़े का त्यौहार) हिंदू पौराणिक कथाओं में निहित है। यह दुनिया का सबसे बड़ा सार्वजनिक समागम और आस्था का सामूहिक आयोजन है। इस समागम में मुख्य रूप से तपस्वी, संत, साधु, साध्वियाँ, कल्पवासी और सभी क्षेत्रों के तीर्थयात्री शामिल होते हैं।

हिंदू धर्म में कुंभ मेला एक धार्मिक तीर्थयात्रा है जो 12 वर्षों के दौरान चार बार मनाई जाती है। कुंभ मेले का भौगोलिक स्थान भारत में चार स्थानों पर फैला हुआ है और मेला स्थल चार पवित्र नदियों पर स्थित चार तीर्थस्थलों में से एक के बीच घूमता रहता है, जैसा कि नीचे सूचीबद्ध है:

हरिद्वार, उत्तराखंड में, गंगा के तट पर
मध्य प्रदेश के उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर
नासिक, महाराष्ट्र में गोदावरी के तट पर
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में गंगा, यमुना और पौराणिक अदृश्य सरस्वती के संगम पर महाकुंभ 2025

प्रत्येक स्थल का उत्सव सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति की ज्योतिषीय स्थितियों के एक अलग सेट पर आधारित है। उत्सव ठीक उसी समय होता है जब ये स्थितियाँ पूरी तरह से व्याप्त होती हैं, क्योंकि इसे हिंदू धर्म में सबसे पवित्र समय माना जाता है। कुंभ मेला एक ऐसा आयोजन है जो आंतरिक रूप से खगोल विज्ञान, ज्योतिष, आध्यात्मिकता, अनुष्ठानिक परंपराओं और सामाजिक-सांस्कृतिक रीति-रिवाजों और प्रथाओं के विज्ञान को समाहित करता है, जिससे यह ज्ञान में बेहद समृद्ध हो जाता है।

कुंभ मेले में सभी धर्मों के लोग आते हैं, जिनमें साधु और नागा साधु शामिल हैं, जो साधना करते हैं और आध्यात्मिक अनुशासन के कठोर मार्ग का अनुसरण करते हैं, संन्यासी जो अपना एकांतवास छोड़कर केवल कुंभ मेले के दौरान ही सभ्यता का भ्रमण करने आते हैं, अध्यात्म के साधक और हिंदू धर्म का पालन करने वाले आम लोग भी शामिल हैं।

कुंभ मेले के दौरान अनेक समारोह आयोजित होते हैं; हाथी, घोड़े और रथों पर अखाड़ों का पारंपरिक जुलूस, जिसे ‘पेशवाई’ कहा जाता है, ‘शाही स्नान’ के दौरान चमचमाती तलवारें और नागा साधुओं की रस्में, तथा अनेक अन्य सांस्कृतिक गतिविधियां, जो लाखों तीर्थयात्रियों को कुंभ मेले में भाग लेने के लिए आकर्षित करती हैं।

महाकुंभ मेला 2025 प्रयागराज में 13 जनवरी, 2025 से 26 फरवरी, 2025 तक आयोजित हो रहा है और
महाकुम्भ मेला प्रयागराज से भक्त हुए वापस रवाना……

प्रयागराज महाकुंभ में बसंत पंचमी के तीसरे अमृत स्नान के बाद अब एक-एक कर सभी अखाड़ों ने अपनी वापसी की तैयारियां शुरू कर दी है। जिसे देखते हुए मेले में आए सभी कल्पवासी और अखाड़ों के साधु संतों के लिए प्रशासन की ओर से इंतजाम किए गए हैं। इनकी वापसी के लिए अलग-अलग दिशाओं में अलग-अलग मार्ग बनाए गए हैं,वहीं महाकुंभ में उमड़ री भीड़ को देखते हुए कई बड़े बदलाव किए गए हैं।

कल्पवासी और अखाड़ों की वापसी को देखते हुए मेला क्षेत्र में 8 और 9 फरवरी को वाहनों की एंट्री प्रतिबंधित कर दी गई है और दो दिन तक बाहरी वाहन मेला क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर सकेंगे। इन लोगों को आसपास के जनपदों में ही डायवर्जन प्वाइटंस पर बनाए गए पार्किंग स्थलों पर रोके जाने के निर्देश दिए गए हैं आने वाले वाहनों को यहीं पर खड़ा किया जाएगा।

8 फरवरी से 11 फरवरी तक मेला क्षेत्र में कल्पवासी और अखाड़ों की गाड़ियों को ही मेला क्षेत्र में प्रवेश दिया जाएगा. इसके लिए भी समय निर्धारित किया गया है ये वाहन इन चारों दिन रात आठ बजे से सुबह चार बजे तक मेला क्षेत्र में प्रवेश कर सकेंगे ताकि इन वाहनों में जो संस्थाएं या अखाड़े वापसी करना चाहते हैं वो अपना सामान समेटकर वापस निकल सकेंगे।

महाकुंभ में देश के कोने-कोने से आए तमाम अखाड़ों को कल्पवासियों की वापसी के लिए चारों दिशाओं में अलग-अलग रूट बनाए गए हैं। जिसके तहत लखनऊ, अयोध्या, प्रतापगढ़ और कानपुर की ओर जाने वाला के लिए मेला क्षेत्र के सेक्टर 11-18 से पीपापुल संख्या 18 भारद्वाज मार्ग से सिलोरी ब्रिज से मजार चौराहा से चंद्रशेखर आज़ाद सेतु से होकर गंतव्य को जाएंगे।

कौशांबी मार्ग के लिए मेला क्षेत्र के सेक्टर 11-18 से पीपा पुल 18 भारद्वाज मार्ग से सलोरी ब्रिज और मजार चौराहा से हाईकोर्ट ओवर ब्रिज पारकर अपने गंतव्य को जाएंगे।

जौनपुर मार्ग के लिए सेक्टर 11-18 से मुक्ति मार्ग होते हुए समयामाई मार्ग से समयामाई पार्किंग से गारापुर रोड से अंटा चौराहा और भैरव कुआं से सहसों चौराहा होकर जा सकेंगे।

वाराणसी मार्ग के लिए सेक्टर 11-18 से संगम लोअर मार्ग से ओल्ड जीटी मार्ग होते हुए अंदावा चौराहा से होकर जा सकेंगे।

मिर्जापुर-रीवा मार्ग के लिए संगम लोवर मार्ग से ओल्ड जीटी मार्ग होते हुए कटका तिराहा से शास्त्री सेतु होते हुए न्यू यमुना ब्रिज से लेप्रोसी चौराहा से जा सकेंगे।

– राजस्थान से राजूचारण

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