रुड़की। निकाय चुनाव को लेकर पैदा हुई अनिश्चितता ने भले ही मेयर पद के अधिकांश दावेदारों को मायूस किया हो लेकिन कुछ ऐसे दावेदार भी हैं जो शायद इन हालात में खुश हुए होंगे। ये वे दावेदार हैं जो समझते रहे हैं कि नगर के अधिकतम लोगों तक पहुंच बनाने के लिए उन्हें और अधिक समय की आवश्यकता है और इसी कारण जो मानते थे कि चुनाव का लोकसभा चुनाव के बाद होना ही अधिक मुनासिब है। ऐसे दावेदारों में अव्वल तरीन नाम कांग्रेस टिकट के दावेदार सचिन गुप्ता का लिया जा सकता है।
गौरतलब है कि रुड़की में निकाय चुनाव बाकी प्रदेश के साथ नहीं हो पाया था। परिसीमन विवाद के चलते मामला हाईकोर्ट में था। इसी कारण नवम्बर 2018 में बाकी प्रदेश में चुनाव हो गया था जबकि रुड़की में ऐसा नहीं हो पाया था। इसके बावजूद कुछ सरकार की तैयारियों, कुछ शहरी विकास मंत्री के ब्यान और कुछ अदालती तारीख के मद्देनजर दावेदारों को लगने लग गया था कि चुनाव जनवरी के अंत या फरवरी के प्रारम्भ में हो सकता है। लेकिन ऐसा हो नहीं सका। परिसीमन विवाद पर अपनी जिद पर अड़ी सरकार ने कोई समझौता नहीं किया नतीजा यह हुआ कि 2 जनवरी को मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने विवाद में अगली तिथि 11 फरवरी की तय कर दी। हालांकि शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक ने अपने वक्तव्य में कहा था कि सरकार सिंगल बैंच के इस निर्णय के खिलाफ डबल बैंच में जाएगी और चुनाव को लेकर दिशा निर्देश मांगेगी। लेकिन सप्ताह भर बीत जाने के बावजूद अभी तक सरकार की ऐसी कोई कोशिश सामने नहीं आई है। इससे यह स्पष्ट हो चला है कि 11 फरवरी के बाद भी लोकसभा चुनाव से पहले शायद ही निकाय चुनाव हो पाए।
दरअसल, लोकसभा चुनाव मई के महीने में होना और अनुमान लगाया जा रहा है कि फरवरी के अंत तक लोकसभा का चुनाव कार्यक्रम घोषित हो जाएगा। जाहिर है कि यह आशंका सरकार को भी है। यही कारण है कि अब सरकार भी निकाय चुनाव के मामले को तत्काल सुलटाने के प्रयास में नहीं है। इस स्थिति ने नगर में मेयर पद के अधिकांश दावेदारों को निराश किया है। जिनकी तैयारियां जनवरी में चुनाव को लेकर अंतिम रूप ले चुकी थी उनके सामने अजीब से हालात पैदा हुए हैं। लेकिन ऐसे दावेदार भी हैं जो मौजूदा स्थिति से न केवल निराश नहीं हैं बल्कि शायद खुश होंगे। कांग्रेस टिकट के दावेदार रहे सचिन गुप्ता की स्थिति ऐसी ही है। पिछले दिनों उनसे कईं बार बातचीत हुई और हर बार उनकी बात से यही इशारा मिला कि शायद वे तत्काल चुनाव नहीं चाहते। यह अनपेक्षित भी नहीं है। दरअसल, सचिन गुप्ता बहुत पुराने सियासतदां नहीं हैं।उन्होंने हाल ही में राजनीति को ज्वाइंन किया है और शहर के हर क्षेत्र में उनकी बराबर पहचान नहीं है। चुनावी माहौल मेंं फेस वैल्यू की अहमियत समझने वाले सचिन गुप्ता इस बात को भी जानते होंगे कि चुनाव में कोई भी प्रत्याशी तभी बहुत दूर तक लड़ता है जब उसकी पहचान चुनाव क्षेत्र के बच्चे-बच्चे तक हो। कोई बड़ी बात नहीं कि सचिन गुप्ता अपनी पहचान को व्यापक रूप देने में जुटे हैं और उन्हें यह स्थिति रास आ रही है कि निचले स्तर पर काम करने के लिए उन्हें कुछ और महीनों का समय मिल गया है।
– हरिद्वार से तसलीम अहमद