दिल्ली- देश में लोकसभा का चुनाव चल रहा है. उत्तर प्रदेश की बात करें तो चुनावों में जातिगत समीकरणों का अपना खास योगदान होता है.किसी भी चुनाव को हराने या जिताने में उत्तर प्रदेश में जातियां विशेष महत्व रखती हैं. इसी कारण अलग-अलग राजनीतिक दल और अलग-अलग प्रत्याशी जाति आधारित सम्मेलनों को करते हैं और उनसे संपर्क भी करते है जो कि मूलतः आचार संहिता के उल्लंघन की श्रेणी में आता है.इसी कारण चुनाव आयोग की इस पर पैनी नजर रहती है.यूपी चुनाव आयोग ने जाति आधारित सम्मेलन ना हो या किसी आयोजन में जाति शब्द का इस्तेमाल ना हो इसके कारण हर सभा , सम्मेलन और पंचायत की वीडियोग्राफी का आदेश दिया है. साथ ही किसी भी जगह सभा में जाति सबंधित बाते की जाती है तो उन सभी के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाएगी. मुख्य निर्वाचन अधिकारी नवदीप रिणवा ने सभी जिला निर्वाचन अधिकारियों के लिए कर्मचारियों और जिले के पुलिस कप्तानों को इस बाबत आयोग के निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित करने को कहा है. उन्होंने इस बाबत एक पत्र भी जारी किया है. जिसमें चुनाव की घोषणा के बाद किसी भी जाति, धर्म या भाषा पर आधारित सम्मेलनों पर आदर्श आचार संहिता के प्रावधानों के अंतर्गत कार्रवाई करने को कहा है.आपको बता दें कि हाईकोर्ट ने 2013 में जाति आधारित रैलियों पर अंतरिम रोक लगा दी थी.चुनाव आयोग ने जाति आधारित सम्मेलनों एवं पंचायतों पर पैनी नजर रखने के साथ ही उनके वीडियोग्राफी कराने के निर्देश अधिकारियों को दिए है.आयोग में यह भी कहा है कि यदि ऐसा पाया जाता है कि चुनाव संबंधी आयोजन के लिए जाति शब्द का इस्तेमाल हो रहा है तो आदर्श आचार संहिता एवं पुरानी प्रावधानों के तहत कड़ी कार्रवाई की जाए.साथ ही इस प्रकार किसी के भी एकत्र होने की अनुमति तब ही दी जाए जब पूरी तरीके से संतुष्टि हो जाया जाए कि इसका मकसद चुनावी नहीं है.