उत्तराखंड/पौड़ी गढ़वाल- उत्तराखंड जनपद पाैडी गढ़वाल के ये खंडहर और ये टैंक कोई मामूली नहीं, यह धरोहरों के वो तिनके हैं जो वक़्त के थपेड़ों और इंसानी व हूकूमती उपेक्षा के चलते तकरीबन दफ़्न होने के मुहाने पर हैं।
हालांकि अब जनपद गढ़वाल के परगना बारहस्युएँ के ऐतिहासिक गांव नैथाणा के जागरूक व्यक्ति भारत भूषण नैथानी और निर्मल नैथानी द्वारा इन धरोहरों को पुनः इनका रुतबा लौटाने का बीड़ा उठाया है। स्टेट हाईवे संख्या 32 पर नैथाणा गांव में स्थित यह खंडहर भले ही आज उजाड़ कोठरी नज़र आ रहे हों, लेकिन एक दौर में दुगड्डा(कोटद्वार) से बद्रीनाथ तक चलने वाले ढाकरियों (घोड़े-खच्चरों से पहाड़ों तक रसद पहुंचाने वाले ट्रांसपोर्टर) के लिए यह रैन बसेरे किसी पंच सितारा से कम सुकून नहीं देते थे। वर्ष 1800 से 1810 के मध्य बनी इन चार कोठरियों को सिर्फ पत्थर व मिट्टी से चुना गया है, बावजूद इसके इन 200 सालों में कुदरती कहर का इन पर लेशमात्र भी असर न हुआ,, वहीं इस स्थान पर ms/gi steel से बनी करीब 100 वर्ष पुरानी पेयजल टैंक भी बिना जंग लगे जस के तस खड़ी है। अब अपने गांव अपनी धरोहरों को अक्षुण्ण बनाये रखने के ज़ज़्बे से लबरेज़ भारत भूषण व निर्मल के प्रयासों से यह धरोहर व इसके इतिहास से आप-हम रूबरू होंगे, ऐसा विश्वास है, यह विरासतें प्रवासियों को भी कोतुहलवश ही सही अपनी मिट्टी, गांव व थाती की तरफ मोडेंगी, यह भी उम्मीद है। इस कार्य के शुभारंभ पर द्वय जनों पर मुझे भी आमंत्रित किया, अतः मैं आपके-हमारे अभियान पलायन एक चिंतन की ओर से शुभकामनाएं देता हूं, क्योंकि हमारा मानना है कि प्रवासियों को गांव का रुख करने हेतु जो भी अववय उपलब्ध हों, उन्हें संरक्षित व संवर्धित किया जाना होगा। इसके साथ ही पर्यटन गतिविधियां अलग से।
रिपोर्ट-इन्द्रजीत सिंह असवाल,पौड़ी गढ़वाल