उत्तराखंड / पाैडी गढ़वाल- उत्तराखण्ड के ग्रामीण भारत की सच्ची तस्बीर दिखाती है उत्तराखण्ड के गाँवों में घूम के न कि देहरादून के एसी में बैठ कर। सूबे के हुक्मरानों से अपील है कि खुद की बहुत सोच ली है अब उन की भी सोचे जिन के बलिदान से पृथक राज्य की नींव पड़ी थी।
डिजिटल इण्डिया व प्रगतिशील भारत को आइना दिखाता ग्रामीण भारत की एक खबर,,रिखणीखाल ब्लॉक डाबराड गाँव से आई जिस ने समूचे इलाके को सदमें में डाल दिया कि आखिर हम को क्या मिल रहा है यहाँ जीवनयापन कर के आखिर कौन है जो हमारी सोच रहा है। इलाके के लोग अपनी पितृ भूमि छोड़ने के लिए तैयार है। अब मात्र पलायन ही एक चारा है।
आज हम चाँद तक लगातार 105 स्टरलाइट भेजने में जहां कामयाब हो रहे है वहीं उत्तराखण्ड़ की पहाड़ियों तक 108 मेडिकल सेवा नही भेज पा रहे है। यह हमारी धरातल पर नाकामी है या अनदेखी यह सब जानते है।
उत्तराखण्ड के प्रदेश सरकार को आज 1 साल पूरा हो चुका है बड़ी बड़ी बातें होंगी फूलमाला व सम्बोधन भाषणों का दौर चलेगा मगर इसी दौरान कोई उत्तराखण्डी फिर अनदेखी व अभाव के चक्कर में जान दे चुका होगा।
प्रदेश में 8 मुख्यमंत्री अभी तक ताजपोशी कर चुके है।मगर स्थाई राजधानी भी नही दे पाए तो जनता की सुधि किस को है। बीते 12 मर्च 2018 को पौड़ी जिल्ला रिखणीखाल के अंतर्गत डाबराड गाँव में रात को स्व प्रेम सिंह रावत की बलि सरकारी तंत्र ने इसी अनदेखी के कारण चड़ा दी।
गाँव वाले पिछले 12 साल से सड़क की माग कर रहे है सड़क का टैंडर पड़े 12 साल हो चुके है मगर गाँव में आज तक सड़क नही है। जिस वजह से ग्रामीण आज भी मौलिक अधिकारों व मूलभूत सुविधाओं से वंचित है।स्व प्रेम सिंह रावत का ब्रेन हेम्ब्रज की वजह से स्वास्थ्य खराब हुआ व रात्रि के वक्त मैडिकल सुबिधा न मिलने की वजह से प्रेम सिंह रावत की तड़प तड़प 4 घण्टे में मृत्यु हो गई। क्षेत्र में मात्र एक रिखणीखाल हॉस्पिटल भी उस गाँव से 22km सड़क व फिर 14km पैदल के बाद है। मगर उस हॉस्पिटल में भी डॉ व दवाई नही है यह हाल समूचे उत्तराखण्ड का है। तो रिखणीखाल कैसे अछूता रह सकता है। 108 सेवा भी लाचार थी कि सड़क नही तो हम भी क्या करें।डबराड गाँव के लोग अब पलायन करने पर मजबूर है ग्रामीणों की मांग है कि सरकार या तो उन को इच्छा मृत्यु देदे या सड़क गाँव तक ले जाए।
साभार-देवेश आदमी
-इंद्र जीत सिंह असवाल,पौड़ी गढ़वाल