देहरादून- ये भारत है योगी के उत्तरप्रदेश से त्रिवेंद्र के उत्तराखंड में एक व्यक्ति अपने किशोर भाई को लेकर बिजनौर से देहरादून के दून हॉस्पिटल (दून मेडिकल कॉलेज) आता है। टीबी से ग्रस्त युवक दम तोड़ जाता है। अब उसकी लाश वापस कैसे बिजनौर जाए इस पर मीडिया खबर बनाती है न कि इस पर कि क्यो एक टीबी जैसी छोटी बीमारी के मरीज़ को उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड लाना पड़ा? किसी कलम वाले भाई/बहन ने यह प्रश्न नही उठाया कि जब बजट का सबसे बड़ा हिस्सा स्वास्थ और शिक्षा पर खर्च होता हो तो यह हालत क्यो?? खबर बेचनी थी, बेच दी।
अब वास्तविकता की बात करते है। ऐसे हज़ारों लोग रोज़ मरते है जिसका ज़िम्मेदार राष्ट्रपति/प्रधानमंत्री से लेकर वार्डबॉय तक है और जिम्मेदार कोई भी नही। पैसे नही तो जिंदगी क्यो जिये इंसान! भारत सरकार 70 साल से यही कहती आयी है।
इस प्रकरण में न हॉस्पिटल दोषी है, न स्टाफ, ना एम्बुलेंस एजेंसी और न CMO/CMS या फिर सरकार क्योकि कोई ऐसा आदेश या कानून नही कि सरकारी एम्बुलेंस से मृत शरीर को दूसरे राज्य में ढोया जा सके और निश्चित ही कोई ऐसा अध्यादेश सरकार द्वारा भी जारी नही।
दोषी है एक गरीब बच्चे का निर्धन होना। दोषी है तो समाज का जागरूक ना होना। दोषी मैं हूँ और आप। अगर लड़े होते तो जितना पैसा हर वर्ष सरकार स्वास्थ पर खर्च करने का ढिंढ़ोरा पीटती है उतने पैसे से हर गांव में हॉस्पिटल होता। यह निश्चित है। यह सरकारी लूट पर कोई प्रश्न नही उठता। पता नही क्यो खून जम गया है हमारा।
साभार- अमित तोमर,
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