शाहजहांपुर-जल्द मिल सकती है 124000 अप्रशिक्षित व स्नातक शिक्षामित्रो को अच्छी खबर। हाईकोर्ट में दाखिल एक रिट से ऐसा हो रहा है प्रतीत।
जानकारी के अनुसार हाईकोर्ट इलाहाबाद में एक रिट फाइल की थी। इस रिट पर आज सुनवाई होनी थी। और आज कोर्ट नम्बर 18 फ्रेश लिस्ट 28/3/2018 में यह रिट 41 नम्बर पर केस नम्बर 8777/2018 मधु वनाम उत्तर प्रदेश सरकार में सुनवाई हुई।
सुनवाई के दौरान वकील जलज कुमार कुशवाहा एवं राय साहब यादव ने सरकारी वकील संतोष कुमार से बहस की। सरकार के साथ बेसिक शिक्षा विभाग को भी पार्टी बनाया गया था इसलिए विभाग के वकील भी कोर्ट में मौजूद रहे। सरकारी वकील ने कई बार सुप्रीम कोर्ट के आदेश का जिक्र किया पर वादी के वकीलो ने इस बात का खण्डन करते हुए कहा कि सुप्रीमकोर्ट का आदेश 26 मई 1999 के अंतर्गत रखे गये शिक्षामित्रो पर लागू होता है। और यह नियुक्तियां सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत अप्रशिक्षित के पद पर हुई है।अतः यह लोग इस आदेश के अंतर्गत नही आते। बता दे कि यह लोग 3 सितम्बर 2001 के अंतर्गत नियुक्त हुए है इसी आधार पर एनसीटीई ने इन्हे सेवारत प्रशिक्षित कराया। यह लोग 2014 में प्रशिक्षित हो चुके है।अतः इन लोगों को अभी तक नियमित नही किया गया और प्रशिक्षित वेतनमान भी नही दिया जा रहा । प्रतिमाह 10000 का भुगतान विभाग कर रहा है। इन पर आरटीई के नियम लागू नही किये जा सकते है क्योंकि आरटीई लागू होने से कई साल पहले अप्रशिक्षित के पद पर नियुक्त है अध्यापक के सभी कार्य कराये जा रहे है सुबह 9 से 3 बजे तक शिक्षण कार्य कर रहे है। एमडीएम से लेकर बच्चों की उपस्थिति रजिस्टर, अध्यापक उपस्थिति, पत्र व्यवहार पर शिक्षामित्रों के साइन शिक्षामित्र समायोजन से पहले मौजूद है कई बार इनके पास स्कूल का शैक्षिक चार्ज रह चुका है। इन्हे कक्षा 3 4 5 के बच्चों को कैसे पढ़ाना है इस का बीआरसी केन्द्र एव डायट पर प्रशिक्षिण दिया गया इस समय भी कक्षा 3 के टीचर के रूप में कार्य कर रहे है। इन बातो का जबाव सरकारी वकील के पास नही था। जस्टिस एम सी त्रिपाठी ने सरकारी वकील से पूछा आपको नोटिस काफी समय पहले दिया जा चुका है आप बताये यह सर्व शिक्षा अभियान से नियुक्त है और इनका प्रशिक्षण भी सर्व शिक्षा अभियान से हुआ इनका कहना गलत है या सही है सरकारी वकील ने कहा इनकी नियुक्ति सर्व शिक्षा अभियान से हुई है और यह प्रशिक्षित भी सर्व शिक्षा अभियान से है लेकिन यह शिक्षामित्र है। जस्टिस महोदय ने कहा यह 3 सितम्बर 2001 से नियुक्त है यह प्रकरण गम्भीर है और याचिका स्वीकार हो गई। यह पहला लक्ष्य था कि याचिका पर सुप्रीमकोर्ट की छाया न पड़ने दे और यह सफल रहा यह पहली याचिका है। किसी कारण से इसे गोपनीय रखा गया था अभी अन्य सहयोगी लोगो की याचिका पर भी सुनवाई होनी है। यहां यह कहा जा सकता है कि पहला पड़ाव पार कर लिया गया है।
-देवेन्द्र प्रताप सिंह कुशवाहा