लाखों रुपए देकर छपवाया त्रिवेंद्र रावत का इंटरव्यू! अखबार भी बोलने लगे सरकार की भाषा

देहरादून- उत्तराखंड जनपद देहरादून मुख्यमंत्री एक साल पूरे होने के अवसर पर सरकार अखबारों में पेड न्यूज के माध्यम से अपनी उपलब्धियां बढ़ा-चढ़ाकर छपवा रही है। यह न सिर्फ जनता के साथ धोखा है, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की भी अवमानना है।
18 मार्च 2018 को एक वर्ष का कार्यकाल पूरा होने के अवसर पर डबल इंजन सरकार ने ऐसा कारनामा कर दिखाया, जो आज तक कभी नहीं हुआ था। एक साल की उपलब्धियां बताने के लिए राज्य सरकार ने अमर उजाला अखबार में लाखों रुपए देकर मुख्यमंत्री का साक्षात्कार छपवाया। यह पहला अवसर है, जब न तो राज्य में चुनाव हो रहे हैं, न कोई ऐसा कार्यक्रम। फिर भी पेड न्यूज के माध्यम से डबल इंजन सरकार को अपनी उपलब्धि बतानी पड़ रही है।
‘साल विश्वास का संकल्प विकास काÓ नाम से चालाकी से छपवाई गई इस पेड न्यूज में खुलकर बोले, खूब बोले और बेबाक बोले, सीएम त्रिवेंद्र जैसे उत्साही शब्दों से कोई समान्य पाठक नहीं समझ पाया कि यह इंटरव्यू उनकी गाढ़ी कमाई से आने वाले टैक्स के लाखों रुपए देकर सरकार ने महिमामंडन के लिए छपवाया है। इस पेड साक्षात्कार से पहले भी सरकार मुख्यमंत्री के विभागों की उपलब्धियों को पेड न्यूज के माध्यम से छपवा रही है।

तीन दिन पहले १५ मार्च को अमर उजाला कार्यालय में गए मुख्यमंत्री तब वहां पर फेसबुक पर लाइव थे और उस दिन जो बातें अखबार के दफ्तर में हुई, वही तीन दिन बाद विज्ञापन बनाकर अमर उजाला अखबार में छपवाई गई। सामान्य पाठक इस बात को इसलिए नहीं समझ पाए, क्योंकि इसे पूरी तरह खबर की शक्ल में बनाया गया था। मुख्यमंत्री के पांच फोटो लगाकर छपवाए गए इस पेड इंटरव्यू के आखिर में मीडिया सॉल्युशन इनीशिएटिव छापा गया, किंतु इसमें न तो कहीं ये बताया गया कि ये पेड न्यूज है, न इसे यह बताया गया कि ये एक विज्ञापन है। जो साक्षात्कर आज लाखों रुपए देकर छपवाया गया, उसका आधा हिस्सा दो दिन पहले के अखबारों में भी छापा जा चुका है। अर्थात इस सरकार के पास कुछ भी ऐसा बताने के लिए नहीं है और एक बात को बार-बार छपवाने की मजबूरी है। अमर उजाला के इस लाइव इंटरव्यू में गैरसैंण पर मुख्यमंत्री के बयान को अखबार ने नहीं दिखाया, लेकिन पाठक उसे यहां देख सकते हैं कि आखिर गैरसैंण पर मुख्यमंत्री का स्टैंड क्या है।
यह इसलिए भी पेड न्यूज की श्रेणी में आता है, क्योंकि इसमें विज्ञापन देने वाले विभाग का नाम नहीं है, जबकि इसका भुगतान सूचना एवं लोक संपर्क विभाग द्वारा किया जाना है। इसके फोंट व फोंट साइज में भी कोई अंतर नहीं दिखता। न अमर उजाला ने कभी अपने पाठकों को यह बताया कि मीडिया इनीशिएटिव सॉल्युशन से क्या मतलब है। यह न सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की सरासर अवमानना है, बल्कि इसके दायरे में मुख्यमंत्री कार्यालय तथा अखबार दोनों ही आते हैं।
एक वर्ष पूरा होने के उपलक्ष में अमर उजाला अखबार को तकरीबन ४० लाख रुपए, दैनिक जागरण को करीब ३० लाख, हिंदुस्तान को २५ लाख, ईटीवी को ४० लाख रुपए, न्यूज नेशन व न्यूज स्टेट व जी न्यूज को ईटीवी के बराबर, टीवी १०० को २० लाख रुपए और शेष सभी छोटे-छोटे चैनलों को ८ से १० लाख रुपए की पेड न्यूज बांटी गई। कुल मिलाकर पहली वर्षगांठ पर जिस प्रकार करोड़ों रुपए लुटाकर ये पेड न्यूज चलवाई गई, उससे सरकार नैतिक रूप से और सामाजिक रूप से भी कटघरे में आ गई है कि ऐसा प्रचंड बहुमत देकर भी इस राज्य को क्या मिला कि सरकार को रुपए देकर खबरें छपवानी पड़ रही है।
कुछ दिनों पहले दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार के विधायकों ने इसलिए दिल्ली के मुख्य सचिव की पिटाई कर दी थी, क्योंकि मुख्य सचिव ने दिल्ली सरकार द्वारा बनाए गए विज्ञापनों को चलाने से इसलिए मना कर दिया था कि इस तरह के विज्ञापन नहीं चल सकते, किंतु उत्तराखंड सरकार द्वारा टेलीविजन चैनलों और अखबारों में पेड न्यूज चलवाई जा रही है, वह वास्तव में बहुत गंभीर है, क्योंकि एक देश में दो तरह के कानून कैसे हो सकते हैं?

रिपोर्ट- दीपक कश्यप की देहरादून से रिपोर्ट

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