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राजनीतिक दलों का मकसद सिर्फ चुनाव जीतना?

पूर्णिया/बिहार- देश बदल रहा है, देश की राजनीति बदल रही हैं , लोगो की सोच बदल रहे हैं। जीने का तजुर्बा बदल रहा है। पर शायद एक चीज लोगो को नही दिखती।न नेता बदल रहे है और न ही उनकी पार्टी, सभी को देश से ज्यादा सत्ता का लोभ और लालच सता रही है। चाहे किसी की भी सरकार हो चुनाव जीतने के लिए एक ही राग अलापते है। समाज को बांट कर किस तरह की राजनीति का सबूत देना चाहते। कभी जाति के नाम पर कभी धर्म के नाम पर कभी गरीब के नाम पर तो कभी किसान के नाम पर , अलग अलग नारे अलग अलग कविता , जो लिखते है उनकी तो अच्छी कमाई हो जाती हैं अगर कोई फंस जाता हैं तो वो है देश की भोली भाली जनता । “सबका साथ सबका विकास” पर अभी तक लोग उम्मीद लगाए बैठे है और सोच रहे है किसका साथ और किसका विकास , बेरोजगारी गई नही, काला धन आया नही, आतंकबाद रुका नही, गैस और पेट्रोल के दाम घटे नही , ऐसे हजारों सवाल है जो जनता का दिल और मन झकझोर रहा है, पर सामने आके बोले कौन । समाज की आवाज को बुलंद करने के लिए हम पत्रकार है पर वो भी डरे और सहमे हुए। सत्ता में बैठे लोगों से सवाल पूछना इस देश के हर नागरिक का अधिकार है। पर सत्ता के नशे में चूर ये लोग सबकी बोलती बंद करके रखे है। अगर किसी भी सरकार का सही आकलन करना है तो पता कीजिये कि देश मे लोगो को और मीडिया को कुछ भी बोलने के लिए स्वतंत्र है या नही और नही है तो समझ लिए की कुछ तो गडबड़ हैं और मीडिया सब कुछ जानते हुए भी अगर सच बोलने से डरते हैं तो फिर झूटी खबर देख कर या पढ़ कर क्या फायदा , वक़्त तो ऐसा अभी चल रहा है कि PMO में बैठे लोग ही निर्णय कर रहे कि क्या खबर चलना है , अच्छा होता वो लोग ही न्यूज़ चैनलों में बैठ कर न्यूज़ ऑडिट कर लेते।

मतलब देश मे जब चुनाव का समय आ जाये , तो बस किसी एक मुद्दे को जोर से हवा देना ही राजनीति पार्टी का काम राह जाता है। हिन्दू मुस्लिम समुदाय के लोगो के बीच भड़काऊ भाषण देना ही अंतिम विकल्प रह जाता है। अब देश मे लोग बस इतनी सी राजनीतिक दलों की ओछी मंशा को समझ नही पाते है। और वापस उन्ही के राग में राग मिला लेते है। वो कौन सी जुमले है हमारे देश के प्रधानमंत्री के जो उन्होंने पूरे कर दिए।क्या 15लाख सबके खाते में आ गए। क्या बेरोजगारी खत्म हो गए । बेरोजगारी की बात करे तो इनके कार्य काल मे बेरोजगारी की प्रतिशत लगभग 3 से बढ़ कर 6 तक पहुंच गए। शिक्षा में सुधार हो गया, स्वास्थ और दवाइयां की समुचित व्यवस्था हो पाई। सारी सड़के अच्छी हो गई , अपराध की घटना कम हो गए। बलत्कार बंद हो गया। जो जमीन की हकीकत है वो पहले भी इसी प्रकार थी आज भी उसी प्रकार से है। नोटबन्दी हो गई देश इतनी बड़ी घटना को बर्दाश्त कर ली। GST आ गए, देश की आर्थिक स्थिति में भूकंप मच गया। पर क्या इससे क्या कोई आम पर प्रभाव पड़ा , GST आने से क्या दवा के दाम घट गए, इलाज करवाना आसान हो गया, खाने के चावल दाल, तेल सब्जी के दाम घट गए। मतलब एक आम आदमी जो रोज कमाता है और रोज खाता है उसके जीवन मे कुछ बदलाव आया, नहीं ।

पूर्णिया से शिव शंकर सिंह की रिपोर्ट

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