*न फनकार तुझसा तेरे बाद आया
भोपाल- आज सुरों के सरताज आवाज़ के जादूगर मौसिक़ी के शहंशाह प्लेबैक गायको के बादशाह द लीजेंड महान और अमर गायक मो.रफी साहब की 39वी पुण्यथिति हैं आज ही के दिन यानि 31 जुलाई 1980 को रफी साहब ने इस फानी दुनिया को हमेशा हमेशा के लिए अलविदा कह दिया था रफी साहब के बिना भारतीय संगीत की कल्पना भी नही की जा सकती हैं रफी हिंदुस्तानी संगीत की आत्मा हैं और अगर आत्मा निकल जाए तो शरीर किसी काम का नही रहता हैं।
रफ़ी साहब की पैदाइश और बचपन:-
रफी साहब का जन्म 24 दिसंबर 1924 को पाकिस्तान के कोटला सुल्तान सिंह में हुआ था रफी साहब को बचपन से ही गाने का शोक था लेकिन रफ़ी साहब के घर मे संगीत का शोक किसी को भी नही था रफी साहब के वालिद साहब धार्मिक प्रवति के थे बचपन रफी साहब जब 6 साल के थे तो वो अपने वालिद की दुकान पर बैठा करते थे उसी दौरान एक फ़कीर दुकान के सामने से गाते हुए भीख मांगता था रफी साहब उस फकीर के पीछे पीछे जाते और उसके गाने को गौर से सुना करते थे जब फ़कीर गाँव की सरहद से निकल जाता तो रफी साहब फ़कीर के गाए हुए गाने को अकेले में गाते थे जब रफी साहब के बड़े भाई अब्दुल हमीद साहब को अपने छोटे भाई के गाने के शोक को पता चला तो उनके भाई रफी साहब को लेकर संगीत के उस्तादों अब्दुल वाहिद साहब और पंडित जीवनलाल जैसे संगीत के माहिर लोगो के पास संगीत सीखने के लिए रफी साहब को ले गए।
पहला लाइव स्टेज प्रोग्राम:-
रफी साहब की उम्र उस समय 15 साल की होगी जब उनके भाई रफी साहब को एक प्रोग्राम में ले गए थे और ये प्रोग्राम था उस ज़माने के मशहूर गायक कुंदन लाल सहगल का हुआ यूं की लाहौर रेडियो स्टेशन पर कुंदनलाल सहगल का प्रोग्राम रखा गया था दूर दूर से लोग सहगल को सुनने लाहौर रेडियो स्टेशन आये थे अचानक लाहौर रेडियो स्टेशन की लाइट चली गई और कुंदनलाल सहगल ने बिना माइक के गाने से इनकार कर दिया था भीड़ बेकाबू हो रही थी लोग अपने चहेते गायक सहगल को सुनने के लिए बेकरार हो रही थी तो रफी साहब के बड़े भाई अब्दुल हमीद साहब ने लाहौर स्टेशन के कर्मियों से बात करते हुए कहाकि जब तक लाइट नही आ जाती तब तक आप मेरे छोटे भाई रफी को स्टेज पर गाने का मौका दे लाहौर रेडियो स्टेशन के कर्मचारियों के पास कोई चारा भी नही था तो रफी साहब को गाने की इजाज़त दे दी। रफी साहब ने बिना माइक के जब गाना शुरू किया तो रफी की आवाज़ सुनते ही पब्लिक बिल्कुल खामोश हो गई और रफी की आवाज़ पर झूमने लगी उस प्रोग्राम में उस जमाने के मशहूर संगीतकार जोड़ी श्याम,सुंदर भी आए थे उनको रफी साहब की आवाज़ बहुत पसंद आई थी और उन्होंने रफी साहब को मुंबई आने का न्योता दिया तो इस तरह ये रफी साहब का पहला स्टेज शो था।
फिल्मो में पहला ब्रेक:-
मुम्बई आने पर रफी साहब को सबसे पहला ब्रेक एक पंजाबी फिल्म गुलबलोच के गाने मेरी हीरिये,मेरी सोनिये से मिला ये रफी साहब का पहला गाया हुआ गाना था। हिंदी फिल्मों में उस दौर में रफी को इक्का,दुक्का गाने मिलते थे लेकिन जो भी मिलते थे वो रफी साहब की आवाज़ में जबरदस्त हिट होते थे रफी साहब का लता मंगेशकर के साथ गाया हुआ गाना यहां बदला वफ़ा का बेवफाई के सिवा क्या हैं पहला हिट गाना था लेकिन फिर भी रफी साहब को वो मुकाम नही मिल रहा था जिसके वो हकदार थे ऐसे में रफी साहब की प्रतिभा को पहचाना था सबसे पहले संगीत सम्राट नोशाद ने नोशाद ने रफी साहब को सबसे फ़िल्म पहले आप मे गाने का मौका दिया इसके बाद अनमोल घड़ी फ़िल्म में तेरा खिलौना टूटा बालक गाना गवाया था मेला फ़िल्म में ये ज़िन्दगी के मेले ज़बरदस्त हिट हुआ था उसके बाद नोशाद साहब ने फ़िल्म अंदाज़ जिसमे दिलीप कुमार,राजकपूर और नरगिस ने अभिनय किया था इस फ़िल्म का भी एक गाना लोग इन्ही अदाओ पर ही तो फिदा होते हैं जो रफी साहब ने लता मंगेशकर के साथ गाया था और फ़िल्म में राजकपूर और नरगिस पर फिल्माया था खासा हिट हुआ था। लेकिन फिर वो फ़िल्म आई जिसका रफी साहब को इंतज़ार था और ये फ़िल्म थी बैजू बाबरा। संगीतकार नोशाद बैजू बाबरा के गाने पहले अपने चहेते गायक तलत महमूद से गवाना चाहते थे लेकिन नोशाद साहब को तलत महमूद की ध्रूमपान की आदत पसंद नही आई तो नोशाद ने तलत महमूद की जगह बैजू बाबरा के गाने रफी साहब से गवाए बैजू बाबरा एक म्यूज़िकल फ़िल्म थी और इसके सारे गाने ज़बरदस्त तरीके से सुपरहिट हो गए खासकर ओ दुनिया के रखवाले गाने ने तो हिंदुस्तान में तहलका मचा दिया था इसके अलावा तू गंगा की मौज में जमना का धारा और लता व शमशाद बेगम के साथ गए गीत दूर कोई गए धुन ये सुनाए और झूले के पवन में डोले बाहर तथा एक भजन मन तड़पत हरि दर्शन को आज बहुत ही लोकप्रिय हुए थे औए बैजू बाबरा के गानों के बाद रफी साहब ने जो उड़ान पकड़ी फिर वो उड़ान उनकी मौत पर ही थमी। पचास और साठ के दशक में सिर्फ और सिर्फ रफी साहब ही छाए हुए थे रफी साहब ने लगभग हर संगीतकार के लिए गाया जैसे श्याम सुंदर,नोशाद चित्रगुप्त,सलिल चौधरी,अनिल विश्वास,शंकर जयकिशन,लक्ष्मीकांत प्यारेलाल,कल्याणजी आनंजी,ओ पी नैयर,रवि,मदन मोहन,ख़य्याम और गुलाम मोहम्मद जैसे चोटी के संगीतकारों के साथ गाने गाकर गीतों को अपनी आवाज़ से अमर कर दिया हैं। रफी साहब की आवाज़ का सबसे सही इस्तेमाल मेरी नज़र में 5 संगीतकारों ने किया हैं और ये संगीतकार हैं नोशाद,शंकर जयकिशन,मदन मोहन,रवि और ओ पी नैयर ये 5 संगीतकार हैं जिसने रफी साहब की आवाज़ को उनके अंदाज़ को एक नया आयाम दिया।
फ़िल्म फेयर अवार्ड:-
रफी साहब को 6 बार सर्वश्रेष्ठ गायक के फ़िल्म फेयर अवार्ड नवाज़ा गया। 1960 में फ़िल्म चौहदवीं के चाँद के गीत चौहदवीं का चांद हो या आफताब हो के लिए पहला फ़िल्म फेयर अवार्ड मिला इसके बाद 1961 में फ़िल्म ससुराल के गीत तेरी प्यारी,प्यारी सूरत को किसी की नज़र न लगे के लिए दूसरा फ़िल्म फेयर अवार्ड मिला इसके बाद 1964 में फ़िल्म दोस्ती के गीत चाहूंगा में तुझे सांझ सवेरे के लिए तीसरा अवार्ड दिया गया और फिर 1966 में फ़िल्म सूरज के गीत बहारों फूल बरसाओ मेरा मेहबूब आया हैं के लिए चौथा अवार्ड इसके बाद 1968 में फ़िल्म ब्रह्मचारी के गीत दिल के झरोखे में तुझको बिठाकर के लिए पांचवा अवार्ड और अंतिम फ़िल्म फेयर अवार्ड फ़िल्म हम किसी से कम नही के गीत क्या हुआ तेरा वादा के लिए मिला इसके अलावा भारत सरकार ने 1965 में रफी साहब को पद्मश्री सम्मान से नवाजा था रफी साहब ने अपने गायन के सफर में 26 हज़ार से ज्यादा गीतों को अपनी आवाज़ देकर अमर कर दिया हैं और सबसे ज्यादा गीतों को गाने का रिकार्ड भी रफी साहब के नाम हैं रफी साहब ने अपनी ज़िंदगी का आखरी गीत निर्देशक जे ओमप्रकाश की फ़िल्म आसपास के लिए गाया था इस गाने के बाद ये मशहूर और मकबूल आवाज़ 31 जुलाई 1980 को हमेशा हमेशा के लिए खामोश हो गई।
लेकिन रफी साहब के गाए गीतों से रफी साहब आज भी अपने करोड़ो संगीत प्रेमियों के दिलो में ज़िन्दा हैं और हमेशा रहेंगे।
इस महान गायक ने हर मूड के गाने अपने बेहतरीन अंदाज़ में गाए चाहे वो रोमांटिक गीत हो या दर्द भरे नगमे में ग़ज़ल हो भजन हो अल्हड़पन से भरे नटखट गाने हो कॉमेडी गीत हो हर तरह का गीत रफी साहब की आवाज़ पाकर अमर हो गया।
तुम मुझे यूं भुला न पाओगे जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे संग,संग तुम भी गुनगुनाओगे।
– तस्लीम बेनकाब कलेक्शन
साभार