गरौठा/ झांसी- कस्बे में इन दिनों छोटे-छोटे बच्चे अपना एवं अपने परिवार का पेट भरने के लिए कचरे के ढेरों में कांच की बोतल प्लास्टिक की बोतलें एवं प्लास्टिक और लोहे का अन्य सामान ढूंढते नजर आते हैं।
यह बच्चे सुबह से शाम तक अपना और अपने घर का गुजारा करने के साथ ही दो जून की रोटी के लिए खेलने कूदने व पढ़ाई लिखाई की उम्र में कचरे के ढेरों में अपना भविष्य ढूंढते नजर आते हैं।
यह बच्चे सुबह से शाम तक कूड़े के ढेरों में शराब की खाली बोतलें प्लास्टिक का सामान निकालते निकालते सिर्फ सो पचास रुपये के लिए अपना जीवन कचरे के ढेरों में ही बिता देते।
राज्य सरकार एवं शिक्षा विभाग ने गरीब परिवार के बच्चों को पढ़ाई की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए आरटीई के तहत 25% गरीब परिवार के बच्चों को निजी स्कूलों में निशुल्क पढ़ाने एवं मिड डे मील योजना के तहत निशुल्क खाना सरकारी स्कूलों में दिया जाता है।
लेकिन सभी योजनाओं के बाद भी शिक्षा विभाग के अधिकारियों को कचरा बीनते बच्चे दिखाई नहीं देते हैं।
शासन द्वारा सर्व शिक्षा अभियान के तहत करोड़ों रुपया खर्च हो रहा है लेकिन इसका कहीं सकारात्मक असर नहीं दिखाई दे रहा है।
जिन बच्चों को पढ़ने के समय स्कूल में होना चाहिए वे सड़कों पर कचरा बीनते नजर आ रहे हैं।
– मुबीन खान,झांसी