इस पत्थर के बर्तनों में खुद जम जाता है दही

राजस्थान- जैसलमेर के एक छोटे से गाँव के पत्थर में मौजुद हैं चमत्कारी गुण. ये एक ऐसा पत्थर है जिसे दूध में डालने अथवा इस पत्थर के बरतन में दूध रखने से ही दही जम जाती है. केवल भारत ही नहीं अब तो विदेशों में भी बढ़ रही है इस नायाब पत्थर की मांग :

हमारी दुनियाँ में अजीबोग़रीब चीजों की कोई कमी नहीं है. इन में से कुछ चीजों की वैज्ञानिक पुष्टि भी हो चुकी है लेकिन कुछ चीजें ऐसी भी हैं जिन की आज तक कोई वैज्ञानिक व्याख्या नहीं मिल सकी है.

आज हम आप को एक ऐसी चीज के बारे में बताने जा रहे हैं जिस के बारे में जान कर आप हैरत में पड़ जाएंगे. दही हम सब को पसंद है. सेहत के लिए भी दही काफी लाभदायक है.

गर्मी के मौसम में तो दही हर घर की जरूरत बन जाती है. सेहत के साथ-साथ त्वचा के लिए भी दही बहुत उपयोगी है. लगभग हम सभी के घर में दही जमाई जाती है.

हालांकि तमाम कोशिशों के बावजूद दुकान जैसी दही घर में नहीं जम पाती है. कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें दही जमाने की प्रक्रिया के बारे में अच्छे से पता तक नहीं होता है. ऐसी स्थिति में हम यही सोचते हैं कि काश कोई ऐसी प्रक्रिया या चीज होती जिस से कि ये काम और भी आसान बन जाता.

जी-हाँ, जैसलमेर से करीब 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हाबुर गांव में ये पत्थर पाया जाता है. इस पत्थर को स्वर्णगिरि के नाम से भी जाना जाता है. स्वर्णगिरी पत्थर का उपयोग खुबसूरत बर्तनों को बनाने में भी किया जाता है. इस की उपयोगिता के चलते देश-विदेश से लोग इसे खरीदकर ले जाते हैं. जामन न होने की स्थिति में इस पत्थर को दूध में डाल कर आसानी से दही जमाया जा सकता है.

दूध में इस पत्थर को डालने के 14 घंटे के बाद दूध, दही में बदल जाता है. कुछ लोग इसे चमत्कार मानते हैं. लेकिन विज्ञान इस की अलग परिभाषा देते हुए कहता है कि इस में बायो केमिकल अमीनो एसिड, फिनायल एलीनिया और रिफ्टोफेन टायरोसीन मौजुद है जो दूध को दही में तब्दील करने की क्षमता रखता है. ऐसा कहा जाता है कि हजारों साल पहले ये जगह समंदर से घिरी हुई थी. धीरे-धीरे समुद्र के सूख जाने की वजह से यहां उपस्थित समुद्री जीव जीवाश्व में बदल गए. इस के बाद यहां पहाड़ों का निर्माण होने लगा. इस के बाद पत्थरों से खनिजों का निर्माण भी शुरू होने लगा.

– साभार सोशल मीडिया

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