बरेली। मुसलमानों के पवित्र रमजान महीने के बाद अल्लाह द्वारा उनके लिए इनाम के तौर पर ईद दिया गया है। ईद-उल-फितर मुस्लिम समुदाय के लिए हर्षोल्लास का कारण बन कर आता है लेकिन लॉक डाउन में ईद का हर्षोल्लास सब खत्म हो गया है। दरगाह आला हजरत प्रमुख मो. सुब्हान रजा खान ने ईद उल फितर की मुबारबाद दी है। उन्होंने मुसलमानों से ईद को भाईचारे से मनाने की अपील की है। उनका कहना है कि लॉकडाउन में घरों में रहकर ईद को सादगी के साथ मनाएं। दरगाह सज्जादानशीन मुफ्ती अहसन मियां ने कहा अल्लाह की तरफ से बंदों को 30 रोजे का इनाम ईद के तौर पर दिया है। दरगाह से जुड़े नासिर कुरैशी ने बताया कि ईद की मौके पर रविवार को सज्जादानशीन मुफ्ती अहसन रजा कादरी ने कहा कि पूरे तीस रोजा का इनाम अल्लाह अपने बन्दों को ईद के रूप में देता है। उन्होंने कहा कि इस दिन अल्लाह की तरफ से नवाजिश और इनामात होते है, जिन्होंने पूरे महीने अपने आप को रजा-ए-इलाही हासिल करने के लिए खाने पीने और दूसरी चीज़ों से अपने आप को रोके रखा। अब उनके लिए अल्लाह की तरफ से ये दिन अता किया जाता है। जो खुशी और मुसर्रत से भरपूर होता है। उन्होंने आगे कहा कि ईद हमे इस बात की भी दर्स (शिक्षा) देती है कि अपने रब की रजामंदी और खुशनूदी के लिए अल्लाह की इबादत करें। ईद उल फितर मजहबी त्योहार के साथ ही इंसानियत (मानवता) का भी त्योहार है। ये उन एहसासों का त्योहार है जो इंसानियत के लिए बेहद जरूरी है। सेवाइयों में लिपटी मोहब्बत की मिठास का त्यौहार ईद-उल-फितर भूख-प्यास सहन करके एक महीने तक सिर्फ खुदा को याद करने वाले रोजेदारों को अल्लाह का इनाम है। मुसलमानों का सबसे बड़ा त्यौहार कहा जाने वाला यह पर्व न सिर्फ हमारे समाज को जोडने का मजबूत सूत्र है बल्कि यह इस्लाम के प्रेम और सौहार्द भरे संदेश को भी पुरअसर ढंग से फैलाता है। इस्लाम बताता है कि आपकी दौलत सिर्फ आप ही की नही है, अगर उसकी जरूरत आपके भाइयों, बहनों, रिश्तेदारों और पड़ोसियों को है तो वो उनकी भी है। इसलिए मजहब ए इस्लाम मे जकात और फितरा का हुक्म साहिबे निसाब मुसलमान को दिया। ताकि लोग गरीबों का ख्याल रखें। नासिर कुरैशी ने बताया कि ईद की नमाज दरगाह पर दरगाह प्रमुख समेत वही लोग अदा करेंगे जितने लोग अब तक अदा करते आ रहे है। बाकी लोग अपने अपने घरों में रहकर चाशत की नमाज अदा करें।।
बरेली से कपिल यादव