बरेली। सात संदूकों में भरकर दफ्न कर दो नफरतें आज इंसां को मोहब्बत की जरूरत है बहुत। लॉकडाउन के चलते बरेली की आयशा के घर लखनऊ की शिवांगी जिस तरह से रह रही हैं उसे देखकर मशहूर शायर बशीर बद्र की ये पंक्तियां याद आ जाती हैं। लगभग दो महीने से बरेली में रह रहीं शिवांगी अब परिवार का हिस्सा बन चुकी हैं। जीआईसी में शिक्षक नईम अहमद का परिवार सिटी सब्जी मंडी में रहता है। उनकी छोटी बेटी आयशा अहमद की दोस्त शिवांगी सिंह 12 मार्च को लखनऊ से बरेली आई थी। शिवांगी को 21 मार्च को दिल्ली में आइलेट्स टेस्ट देना था। आयशा इस टेस्ट को पहले ही पास कर चुकी हैं। इसलिए शिवांगी उनसे टिप्स लेने आई थी। लॉकडाउन के कारण वह न दिल्ली जा सकी और न लखनऊ अपने घर। 25 अप्रैल से रमजान शुरू हो गए। घर के सभी सदस्य रोजा रख रहे हैं। ऐसे में शिवांगी सहरी और इफ्तार के लिये रसोई में अपना पूरा योगदान दे रही हैं। वह रोजे रख तो नही रही मगर उनकी दिनचर्या रोजेदार जैसी ही है। वैसे शिवांगी वृन्दावन योजना लखनऊ मे अपने परिवार के साथ रहती है। उनके पिता अरुण कुमार सिंह लखनऊ में एडिशनल डिस्ट्रिक्ट को-ऑपरेटिव ऑफिसर के पद पर कार्यरत है। शिवांगी का परिवार पहले बरेली में ही रहता था। शिवांगी और आयशा जीपीएम स्कूल में साथ साथ पढ़ी हैं। सबके लिए देना है मोहब्बत का पैगाम बीटेक फूड टेक्नोलॉजी की छात्रा शिवांगी कहती हैं कि आयशा के घर पर रहते लगभग दो महीने हो गए। कभी लगा ही नहीं कि मैं अपने घर पर नहीं हूं। रोज साथ में ही इफ्तार और सहरी में शरीक होती हूं। मुझे हैरानी होती है कि लोग कैसे धर्म के नाम पर लड़ते रहते हैं। मैं सभी को मोहब्बत का पैगाम देना चाहती हूं। वहीं नईम अहमद कहते हैं कि आयशा अब हमारे परिवार का हिस्सा बन गई हैं। लॉकडाउन खत्म होने पर जब वो अपने घर जाएगी तो हमें अच्छा भी नहीं लगेगा।।
बरेली से कपिल यादव