*माँ गंगा की अविरलता के लिए हरिद्वार में चल रहे ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद जी के अनशन के 82 दिन पूर्ण होने पर काशी में गंगा प्रेमियों ने गंगा तट पर धरने द्वारा सत्याग्रह किया
*गंगा बलिदानी संत स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद जी की मांगो पर विचार के लिए सरकार से की गयी अपील
*गंगा को बांधो की बेड़ियों से मुक्त करने की इच्छाशक्ति दिखानी होगी
वाराणसी- माँ गंगा की अविरलता एवं निर्मलता के लिए तथा हिमालयी क्षेत्र में बड़ी बांध परियोजनाओं, वन कटाव एवं पत्थर खनन के विरोध में मातृसदन हरिद्वार के स्वामी गोकुलानन्द जी एवं स्वामी निगमानंद जी तथा काशी के बाबा नागनाथ जी ने जीवन बलिदान कर दिया. प्रसिद्ध पर्यावरण विज्ञानी प्रो. जी.डी. अग्रवाल (स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद सरस्वती) जी ने भी विगत 11 अक्टूबर को 112 दिन के अनशन के बाद जीवन त्याग दिया. उनकी ही मांगो को लेकर अनशन कर रहे संत गोपालदास जी का 6 दिसम्बर से कुछ पता नही चल रहा है. मातृसदन के एक और संत, ब्रह्मचारी आत्मबोधानन्द जी 24 अक्टूबर से हरिद्वार में अनशन पर है और उनकी स्थिति दिनों दिन बिगडती जा रही है, उनके अनशन के समर्थन में देश भर के गंगाप्रेमी अलग अलग स्थानों पर धरना एवं अनशन कर रहे है. इस क्रम में काशी के गंगा प्रेमियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अस्सी घाट पर सांकेतिक धरना देकर सत्याग्रह किया।
ब्रह्मचारी आत्मबोधानन्द जी के अनशन का रविवार को 82 वां दिन था और उनके स्वास्थ्य में दिनों दिन गिरावट हो रही है. माँ गंगा की अविरलता एवं निर्मलता के लिए बांधों एवं खनन के विरोध में किये जा रहे साधू संतो के बलिदान के प्रति उत्तराखंड और केंद्र सरकार की उदासीनता से गंगाप्रेमियों में निराशा है।
सत्याग्रह के अवसर पर उपस्थित वक्ताओं ने कहा कि गंगा सहित सभी सहायक नदियों को स्वस्थ, अविरल और निर्मल बनाने के लिए प्रभावी प्रयास किये जांय और बलिदानी संत स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद जी की एवं उनके बलिदान के क्रम में तपस्यारत आत्मबोधानंद जी की मांगो को तत्काल संज्ञान में लेते हुए ठोस कदम उठाने की इच्छाशक्ति दिखाएँ. यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी. एक के बाद एक संतो का बलिदान व्यर्थ नही जाने पाए इसका संकल्प हर भारतवासी को लेना होगा.
वक्ताओं ने आगे कहा कि बांधों, हिमालयी क्षेत्र में वन कटाव, पत्थर खनन, प्रदूषण और अतिदोहन के कारण नदियों का जीवन नष्ट हो रहा है, हमे नदियों को जीवंत मानकर उनके अधिकार के संघर्ष को तेज करना होगा. गंगा एवं उसकी तमाम नदियों सहित कुंडों, लालाबो एवं अन्य जलस्रोतो के पुनर्जीवन के लिए हम केवल सरकारी योजनाओ के भरोसे बैठे नही रह सकते, इन योजनाओं से नदियों को पुनजीवित करना कदापि संभव नही होगा, आम जनता और जन प्रतिनिधियों की सक्रिय और इमानदारी पूर्ण भागीदारी से ही नदियों को समृद्ध और स्वस्थ बनाया जा सकता है.
अध्यक्षता करते हुए गांधीवादी चिन्तक राम धीरज भाई ने कहा कि बांधों ने माँ गंगा का गला अवरुद्ध कर रखा है, बांधों से मुक्ति ही गंगा की दशा में सुधार का एकमात्र कारगर उपाय है. बड़ी बाँध परियोजनाओं को तत्काल बंद करने के लिए सर्कार को निर्णय लेना चाहिए।
धरने के माध्यम से महामहिम राष्ट्रपति, केंद्र सरकार और उत्तराखंड की राज्य सरकार से अपील की गयी कि स्वामी जी के जीवन पर आसन्न खतरे को देखते हुए तत्काल उनसे वार्ता की जाय और उनकी मांगों पर सहृदयता पूर्वक विचार प्रारम्भ किया जाय।
धरने में प्रमुख रूप से वल्लभाचार्य पाण्डेय, चेतन उपाध्याय, कपीन्द्र तिवारी, डा. आनंद प्रकाश तिवारी, डा. इन्दू पाण्डेय, दीन दयाल सिंह, जागृति राही, डा. अनूप श्रमिक, विशाल त्रिवेदी, सुरेश राठौर, महेंद्र, हरिश्चन्द्र बिंद, सुरेश प्रताप सिंह, रामधीरज भाई, त्रिलोचन शास्त्री, मुन्ना राय, राकेश सरोज, नीलम पटेल, दीपक पुजारी, आदि प्रमुख रूप से शामिल रहे।
रिपोर्टर-:महेश पाण्डेय के साथ (राजकुमार गुप्ता) वाराणसी