पूर्णिया/बिहार- बिहार में विकास की जितनी भी बात कर ले चाहे किसी की भी सरकार रही ही पर शिक्षा व्यवस्था में रत्ती भर भी सुधार नही है। प्राथमिक शिक्षा से लेकर विश्वविद्यालय तक के हालात एक जैसे है। बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या बनी हुई हैं। ना तो युवा के लिए अच्छी शिक्षा व्यवस्था है , और ना ही अच्छी नौकरी की जुगाड़ , सबसे ज्यादा हालात तो पूर्णिया, कटिहार , किशनगंज, सहरसा, मधेपुरा, सुपौल के युवाओं के खराब है जहां की सारे कॉलेज भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय ,मधेपुरा के अधीन आते है। और इसका आलम यह है कि 3 साल की स्नातक की डिग्री यहाँ के छात्रों को 5 से 6 साल में भी पूरी नही होती हैं। जिस कारण लाखो छात्र मानसिक परेशानी के शिकार हो रहे है। न तो वो अच्छे प्रतियोगिता परीक्षा में भाग ले सकते है और ना ही उनकी समाज मे कोई पूछ रह जाती है। दिन पर दिन छात्रों की हालत बिगड़ती जा रही हैं। मधेपुरा विश्वविद्यालय की हालत 1990 से लेकर आज 2018 तक इन 28 वर्षों में कुछ नही बदला , बस बदला हैं तो यहाँ के V.C और बदल ही रहे है। छात्र बदल गए । सरकार बदल गई । पर विश्वविद्यालय की हालत जस की तस है। 2016 -2019 कि स्नातक पार्ट 1 की परीक्षा अभी तक नही हुई है और न ही इसकी कोई सूचना है।
माहौल ऐसा है। कि लाखो छात्र बिहार से निकल कर अन्य राज्यों में अपनी पढ़ाई करने को मजबूर है। और जो छात्र मध्यम वर्गों के परिवार से आते है जिनकी आमदनी कम होती है। वो लोग यहीं की शिक्षा व्यवस्था में फस कर रह जाते है। यहीं कारण है कि यहाँ के छात्रों को न तो उचित शिक्षा मिल पाती है और न ही नौकरी। बस मिल जाती है तो 6 सालो बाद एक स्नातक की डिग्री जो किसी काम का नही रह जाती है।
ये हालात सिर्फ पूर्णिया या कोशी सीमांचल के नही है बिहार की लगभग सारे विश्वविद्यालयों का आलम एक जैसा ही है।
बिहार की इस राजनीति में चाहे वो किसी की भी सरकार का हो बलि का बकरा युवा और छात्र बन रहे हैं। सरकार जितनी भी पीठ थपथपा ले लेकिन आज भी इन छात्रों के हालातो में कोई सुधार नहीं हुआ है।
-शिव शंकर सिंह,पूर्णिया/ बिहार