हमारे समाज में एकता नहीं देखकर आज़ मन व्याकुल हुआ : देवल बाईसा

राजस्थान/बाड़मेर – सौराष्ट्र से पांच दिवसीय देवियां दर्शन यात्रा के दौरान आज़ महात्मा इशरदासजी चारण छात्रावास बाड़मेर के प्रांगण में देवल बाईसा ने कड़े शब्दों में कहा कि हमारे चारण समाज में एकता को नहीं देखकर मेरा मन व्याकुल हो उठा है, धरती पर ईश्वर ने क्रोध, द्वेष भावना के लिए नहीं भेजा है आपको आप देवी-देवताओं की ओलाद है, उनके वंशज हैं,इस बात पर कभी गौर करें की लोग आपको देवीपुत्र के नाम पर जानते हैं।

मनुष्य के जीवन में संगठन का बड़ा महत्व है। अकेला मनुष्य शक्तिहीन होता है, जबकि संगठित होने पर उसमें शक्तियां आ जाती है। संगठन की शक्ति से मनुष्य बड़े-बड़े कार्य भी आसानी से कर सकता है। संगठन में ही मनुष्य की सभी समस्याओं का हल है। जो परिवार और समाज संगठित होता है वहां हमेशा खुशियां और शांति बनी रहती है और ऐसा देश तरक्की के नित नए सोपान तय करता है। इसके विपरीत जो परिवार और समाज असंगठित होता है वहां आए दिन किसी न किसी बात पर कलह, झगड़े होती रहती है जिससे वहां हमेशा अशांति का माहौल बना रहता है।

संगठित परिवार, समाज और देश का कोई भी बड़े से बड़ा दुश्मन कुछ नहीं बिगाड़ सकता, जबकि असंगठित होने पर दुश्मन जब चाहे आप पर हावी हो सकता है। संगठन का प्रत्येक क्षेत्र में विशेष महत्व होता है, जबकि बिखराव किसी भी क्षेत्र में अच्छा नहीं होता है। संगठन का मार्ग ही मनुष्य की विजय का सच्चा मार्ग है। यदि मनुष्य किसी गलत उद्देश्य के लिए संगठित हो रहा है तो ऐसा संगठन हमारे लिए अभिशाप है, जबकि किसी अच्छे कार्यों के लिए संगठन वरदान साबित होता है। प्रत्येक धर्म ग्रंथ संगठन और एकता का संदेश देते हैं। कोई भी धर्म आपस में बैर करना नहीं सिखाता है। सभी धर्मों में कहा गया है कि मनुष्य को परस्पर प्रेमपूर्वक वार्तालाप करना चाहिए। मनुष्य जब एकमत होकर कार्य करता है तो संपन्नता और प्रगति को प्राप्त करता है। संगठन में प्रत्येक व्यक्ति का विशेष महत्व होता है इसलिए जब मनुष्य संगठित होकर कोई कार्य करता है तो उसके परिणाम में विविधता देखने को मिलती है। जिस तरह प्रत्येक फूल अपनी-अपनी विशेषता और विविधता से किसी बगीचे को सुंदर व आकर्षित बना देते हैं उसी तरह मनुष्य भी अपनी-अपनी विशेषता और योग्यता से किसी भी कार्य को नया आयाम प्रदान कर सकते हैं।

यह भी संभव नहीं है कि किसी विषय पर सभी व्यक्तियों का मत एक जैसा ही हो, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति किसी विषय या समस्या को अपने नजरिये से ही देखता है और इसी आधार पर उसका समाधान भी खोजता है, लेकिन जब बात संगठन की आती है तब मनुष्य को वही करना चाहिए जिससे ज्यादा से ज्यादा हमारे समाज के लोगों का भला हो। संगठन में प्रत्येक मनुष्य को अपनी व्यक्तिगत भावनाओं पर नियंत्रण करना होता है इसलिए संगठन में व्यक्ति को शारीरिक तौर पर ही नहीं, बल्कि मानसिक व बौद्धिक रूप से भी समर्पित होना पड़ता है।

– राजस्थान से राजूचारण

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