लम्बी दूरी की रेलगाड़ियों और हवाई सेवा शुरू करने की इच्छा कब होगी पूरी ……❓

बाड़मेर/राजस्थान- बाड़मेर जिला मुख्यालय से देश के अन्य राज्यों में रहने वाले हमारी भारत पाकिस्तानी सरहदों पर सुरक्षा व्यवस्थाओं में तैनात भारतीय सेना के जवानों ओर उनके परिवारजनों के साथ साथ नेताओं की सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले प्रवासी राजस्थानियों के लिए लम्बी दूरी की रेलगाड़ियों ओर हवाई सेवाओं को शुरू करने के लिए केन्द्र सरकार ओर हमारे राजनीतिक दलों के नेताओं की हठयोग के कारण ही नहीं शुरू हो रही है क्योंकि आजादी से लेकर आजकल दुबई, अबूधाबी
बनने को आतुर बाड़मेर जिले की विश्व स्तर पर मजबूत पहचान बन गईं है लेकिन देश के राजनीतिक आकाओं ने अपने ही क्षेत्र में लोगो को आवागमन करने के साधन मुहैया नहीं कराने के कारण धक्के खाने के लिए मजबूर कर दिया है l

आजादी से पहले भारतवर्ष में सेवा करने वाले ब्रिटिश अधिकारियों को इंग्लैंड लौटने पर सार्वजनिक पद की महत्वपूर्ण पदों पर जिम्मेदारी नहीं दी जाती थी। उनका तर्क यह था कि उन्होंने एक गुलाम राष्ट्र पर शासन किया है जिसकी वजह से उनके दृष्टिकोण और व्यवहार में फर्क आ गया होगा। अगर उनको यहां ऐसी जिम्मेदारी दी जाए, तो वह आजाद ब्रिटिश नागरिकों के साथ भी उसी तरह से ही व्यवहार करेंगे जैसा भारतवर्ष के लोगों के साथ में ।

इस बात को समझने के लिए नीचे दिया गया वाक्यांश जरूर पढ़ेंगे, एक ब्रिटिश महिला जिसका पति ब्रिटिश शासन के दौरान पाकिस्तान और भारत में एक सिविल सेवा अधिकारी था। महिला ने अपने जीवन के कई साल भारत के विभिन्न हिस्सों में बिताए। अपनी वतन वापसी पर उन्होंने अपने संस्मरणों पर आधारित एक सुंदर पुस्तक लिखी।

महिला ने लिखा कि जब मेरे पति एक जिले के डिप्टी कमिश्नर थे तो मेरा बेटा करीब चार साल का था और मेरी बेटी एक साल की थी। डिप्टी कलेक्टर को मिलने वाली कई एकड़ में बनी एक विशालकाय हवेली में रहते थे। सैकड़ों लोग डीसी के घर और परिवार की सेवा में लगे रहते थे। हर दिन पार्टियां होती थीं, जिले के बड़े बड़े जमींदार हमें अपने शिकार कार्यक्रमों में आमंत्रित करने में गर्व महसूस करते थे, और हम जिसके पास जाते थे, वह इसे
अपना सम्मान मानता था। हमारी शान और शौकत ऐसी थी कि ब्रिटेन में महारानी और शाही परिवार को भी ऐसा शानौ शौकत बड़ी मुश्किल से मिलती होगी।

रेलगाड़ी में यात्रा के दौरान डिप्टी कमिश्नर के परिवार के लिए नवाबी ठाट से लैस एक आलीशान कंपार्टमेंट आरक्षित किया जाता था। जब हम रेलगाड़ी में चढ़ते तो सफेद कपड़े वाला ड्राइवर दोनों हाथ बांधकर हमारे सामने खड़ा हो जाता और यात्रा शुरू करने की अनुमति मांगता। अनुमति मिलने के बाद ही रेलगाड़ी चलने लगती।

एक बार जब हम यात्रा के लिए रेलगाड़ी में सवार हुए, तो परंपरा के अनुसार, ड्राइवर आया और अनुमति मांगी। इससे पहले कि मैं कुछ बोल पाती, मेरे बेटे का किसी कारण से मूड खराब हो गया था। उसने ड्राइवर को रेलगाड़ी न चलाने को कहा। रेलगाड़ी ड्राइवर ने हुक्म बजा लाते हुए हुए कहा, जो हुक्म छोटे सरकार। कुछ देर बाद स्टेशन मास्टर समेत पूरा स्टाफ इकट्ठा हो गया और मेरे चार साल के बेटे से भीख मांगने लगा, लेकिन उसने रेलगाड़ी को चलाने से मना कर दिया. आखिरकार, बड़ी मुश्किल से, मैंने अपने बेटे को कई चॉकलेट के वादे पर रेलगाड़ी चलाने के लिए राजी किया, और यात्रा शुरू हुई।

कुछ महीने बाद, वह महिला अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलने यूके लौट आई। वह जहाज से लंदन पहुंचे, उनकी रिहाइश वेल्स में एक काउंटी मेथी जिसके लिए उन्हें रेलगाड़ी से यात्रा करनी थी। वह महिला स्टेशन पर एक बेंच पर अपनी बेटी और बेटे को बैठाकर टिकट लेने के लिए चली गई।लंबी कतार के कारण बहुत देर हो चुकी थी, जिससे उस महिला का बेटा बहुत परेशान हो गया था। जब वह रेलगाड़ी में चढ़े तो आलीशान कंपाउंड की जगह फर्स्ट क्लास की सीटें देखकर उस बच्चे को फिर गुस्सा आ गया। रेलगाड़ी ने समय पर यात्रा शुरू की तो वह बच्चा लगातार चीखने-चिल्लाने लगा। “वह ज़ोर से कह रहा था, यह कैसा उल्लू का पट्ठा रेलगाड़ी का ड्राइवर है है। उसने हमारी अनुमति के बिना रेलगाड़ी चलाना शुरू कर दी है। मैं पापा को बोल कर इसे जूते लगवा लूंगा।”

महिला को बच्चे को यह समझाना मुश्किल हो रहा था कि “यह उसके पिता का जिला नहीं है, यह एक स्वतंत्र देश है। यहां डिप्टी कमिश्नर जैसा तीसरे दर्जे का सरकारी अफसर तो क्या प्रधानमंत्री और राजा महाराजाओं को भी यह अख्तियार नहीं है कि वह लोगों को उनके अहंकार को संतुष्ट करने के लिए अपमानित कर सके lआज यह स्पष्ट है कि हमने अंग्रेजों को जरूर खदेड़ दिया है। लेकिन हमने गुलामी को अभी तक देश बदर नहीं किया।

आज भी हमारे कई सरकारी विभागों में कलेक्टर, डिप्टी कमिश्नर, एसपी, मंत्री, सलाहकार और राजनेता अपने अहंकार को संतुष्ट करने के लिए आम लोगों को घंटों सड़कों पर मिलने के लिए परेशान करते रहते हैं। इस गुलामी से छुटकारा पाने का एक ही बेहतर तरीका है कि सभी पूर्वाग्रहों और विश्वासों को एक तरफ रख दिया जाए और सभी प्रोटोकॉल लेने वालों का विरोध किया जाए।नहीं तो पन्द्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी को झंडा फहराकर और मोमबत्तियां जलाकर लोग खुद को ही धोखा देते हैं की हम आजाद हैं और उन्हें मिलने वाले प्रोटोकॉल को ना कहें।

– राजस्थान से राजूचारण

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