रिखणीखाल/उत्तराखंड- कार्बेट नेशनल पार्क के सीमावर्ती वन विभाग से सटे गांवों के लोगों को वन्यजीवों द्वारा घायल या मार दिए जाने पर वनरक्षकों की रिपोर्ट के मुताबिक ही स्थानीय पशु-चिकित्सकों दर्शाया बिना स्थलीय निरीक्षण या बिन पशु देखे ही मुआवजे की धनराशि को मेडिकल दे दिया जाता है।जबकि कतिपय यह भी देखा गया है कि वास्तव में बछिया को गाय या उम्र बढ़ा देने से काफ़ी अंतर हो जाता है। अथवा बाघ /गुलदार ने ही मारा है कि नहीं ,पशु जंगल छोड़ दिया था या जानबूझकर बांध दिया था ,चरवाहा साथ था या नहीं ये सब यक्ष प्रदशर्न से रह जाते हैं।इस स्थिति से निपटने हेतु वनविभाग ने पशुपालन का सहारा लिया लेकिन अब तक इस पारदर्शिता पर ग्रहण ही लगता दिख रहा है। पशुपालन विभाग के अधिकारियों/कर्मचारियों के नदारद रहने के कारण भी यह स्थिति बनी हुई है।आलम यह है कि मुआवजा चाहने वाला ले देकर अपना काम निकलवाने की कोशिश करता है जो सरकारी धन का दुरुपयोग व विभाग की गैरजिम्मेदाराना रवैया प्रतीत होता है।ऐसी स्थिति में किसे दोष दिया जाय कौतुहल का विषय है ,क्या कोई विभाग संज्ञान लेगा या यूंही रामभरोसे चलायमान रहेगा ,यह देखना शेष भर है।
बिनीता ध्यानी
रिखणीखाल ।