दिल्ली- आज गांधी पीस फाउंडेशन, दिल्ली में सेंट मारिया बरेली की कक्षा 2-B की 7 वर्षीय छात्रा भाविता खटवानी को उनके अद्वितीय लेखन के लिए सम्मानित किया गया। यह सम्मान टोकियो जापान से आईं प्रतिष्ठित लेखिका डॉ. रमा पूर्णिमा शर्मा द्वारा प्रदान किया गया।
इस अवसर पर डॉ. रमा पूर्णिमा शर्मा की लिखी पुस्तक ‘मां जैसा कोई नहीं’ का विमोचन भी किया गया। यह पुस्तक मां और बच्चों के बीच के अनमोल संबंधों को दर्शाने वाली कहानियों का संग्रह है, जिसमें विभिन्न उम्र और पृष्ठभूमि के लोगों ने अपनी माताओं के साथ बिताए यादगार लम्हों को साझा किया है। इन्हीं कहानियों में से एक कहानी 7 वर्षीय भाविता खटवानी की है, जिसने अपनी मां के साथ घटी एक छोटी लेकिन भावुक घटना को बड़े ही सरल और जीवंत शब्दों में व्यक्त किया।
भाविता की कहानी ने मोहा सबका मन
भाविता ने अपनी कहानी में एक दिन बारिश में खेलने की जिद और उसकी मां की ममता का वर्णन किया। उसने लिखा कि कैसे उसकी मां ने उसके बीमार पड़ने पर उसकी देखभाल की और डांटने के बजाय अपनी ममता का परिचय दिया। इस घटना ने भाविता को मां की बात मानने का महत्व सिखाया।
भाविता की इस कहानी ने वहां मौजूद सभी का दिल जीत लिया। छोटी सी उम्र में इतनी गहरी सोच और अपनी भावनाओं को शब्दों में उतारने की उसकी कला को खूब सराहा गया। साथ ही, भाविता की रुचि पेंटिंग में भी है, जो उसकी रचनात्मकता को और अधिक निखारती है।
सम्मान और कार्यक्रम की विशेषताएं
भाविता की इस उपलब्धि के लिए डॉ. रमा पूर्णिमा शर्मा ने उसे एक प्रमाणपत्र देकर सम्मानित किया। इस गर्व भरे क्षण में भाविता के पिता, पंकज खटवानी ने यह सम्मान स्वीकार किया और डॉ. रमा पूर्णिमा शर्मा की पुस्तक ‘मां जैसा कोई नहीं’ के माध्यम से समाज को एकजुट करने के उनके प्रयास की प्रशंसा की।
यह पुस्तक अपने अनोखे विचार और विषयवस्तु के लिए Exclusive World Records में भी दर्ज की गई है, जिसके तहत इसे “International Collection of Thought on Single Theme: Maa Jaisa Koi Nahi” का खिताब दिया गया।
कार्यक्रम का महत्व
यह आयोजन न केवल मां और बच्चों के बीच के बंधन को उजागर करने का एक प्रयास था, बल्कि समाज में सकारात्मक सोच और संबंधों की महत्ता को बढ़ावा देने का एक महत्वपूर्ण कदम भी था। भाविता जैसे छोटे बच्चों से लेकर अनुभवी लेखकों तक, सभी ने अपने-अपने तरीके से मां के प्रति अपनी भावनाओं को व्यक्त कर इस पुस्तक को अद्वितीय बनाया है।
भाविता खटवानी की इस उपलब्धि ने न केवल उसके परिवार को गर्वित किया, बल्कि यह संदेश भी दिया कि छोटी उम्र में भी बड़ी सोच और संवेदनशीलता से समाज पर गहरी छाप छोड़ी जा सकती है।