स्वयं कष्ट झेलकर प्रजा को सुखी रखना ही राजा का कर्तव्य : उमेशचंद्र ओझा

चन्दौली- खबर चन्दौली जनपद के पीडीडीयू नगर से जहां सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन किया गया उमेशचंद्र ओझा द्वारा कथा के माध्यम से बताया गया साग की पत्ती खिलाकर द्रौपदी ने भगवान को प्रसन्न कर लिया, गजराज जी ने पुष्प देकर, सबरी मां ने फल खिलाकर एवं श्री रन्तिदेव जी ने पानी पिलाकर खुश कर लिया।स्थानीय गल्ला मंडी में आयोजित 7 दिवसीय भागवत कथा के पांचवें दिन श्री श्री अनन्त श्री विभूषित श्री नारायण दास भक्त माली जी महाराज के शिष्य भागवत मर्मज्ञ श्री उमेशचंद्र ओझा ने कथा श्रवण कराते हुये कहा कि राजा रन्तिदेव के राज्य में अकाल पड़ा। उन्होंने अपने खजाने को प्रजा की सेवा में लगा कर स्वयं भूखे प्यासे रहना शुरू कर दिया। 48 दिन तक स्वयं भूखे प्यासे रहने के बाद 49 वें दिन कहीं से भोजन का थाल आया। वह ज्यों ही भोजन करने चले दो याचक एक कुत्ते के साथ याचक भूखा-प्यासा आ गया। तब राजा ने अपना और अपनी पत्नी का भोजन दे दिया।तभी प्यास से छटपटा कर कर उनके दरवाजे पर कुत्ता मूर्छित होकर गिर पड़ा तब उन्होंने कुत्ते को पानी पिला कर तृप्त कर दिया एवं स्वयं मूर्छित होकर गिर पड़े। उनके दरवाजे पर आने वाले अतिथि ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों देवता अपना अपना अपना अपना लोक देना चाहते थे। किंतु राजा रन्तिदेव ने कहा कि मैं समस्त प्राणियों के अंदर प्रवेश कर उनका दुख मैं भोग लूं एवं मुझे जो सुख देना चाहते हैं वह उन दुखी प्राणियों की झोली में डाल दें ताकि वे सुखी हो जायें। एक राजा के कर्तव्य को रन्तिदेव ने अपने चरित्र से दिखलाया है। स्वयं कष्ट झेलकर प्रजा को सुखी रखना यही राजा का कर्तव्य है। राजाओं के बहाने राक्षसों की वृद्धि हो गई थी। कर्म अगर बिगड़ जाये तो वह भी राक्षस की श्रेणी में आते हैं। जो माता-पिता की सेवा नहीं करता, जो संत महात्मा से अपनी सेवा करवाता है एवं जिन देवताओं के हम ऋणी हैं उनको न मानना राक्षस की श्रेणी में आता है। अपने पहले पुत्र को वसुदेव जी कंस के पास ले जाने लगे तो श्री सुकदेव भगवान ने कहा जो संत प्रकृति के होते हैं वह कौन सी ऐसी असहनीय संकट है जो सहन नहीं कर लेता, जो ब्राह्मण विद्वान है वह किसी की आशा में नहीं रहते। जो निकृष्ट प्रकृति का पुरुष है वह कौन सा ऐसा नीच कर्म है जो नहीं कर देता एवं जो धैर्यशाली व्यक्ति है वो कौन सी ऐसी वस्तु है जिसका वह त्याग नहीं कर देते। बसुदेव जी अपने कान्हा को चोरी-छिपे अपने मित्र नंद जी के पास पहुंचाने ले जा रहे हैं। किसी प्राण की रक्षा करने में झूठ बोला जाए,वह झूठ नहीं सत्य के समान सत्य के समान है। पत्नी से हंसी-मजाक में पति झूठ बोल दे, विवाह-शादी में बेटी वाला झूठ बोल दे, जीविका चलाने वाले झूठ बोलते तो हम किसी के प्राण रक्षा में झूठ बोल दे एवं किसी के प्राणरक्षा में झूठ बोल दे वो सत्य के समान होता है।

रंधा सिंह चन्दौली

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