बरेली। त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को लेकर गांव की सियासत अब चरम पर है। अब अपनी-अपनी जीत पक्की करने के लिए नेता मैदान मे उतर आए हैं। वे दिन-रात मेहनत कर प्रचार कर रहे हैं। लेकिन इस बार गांव के चुनाव में सोशल मीडिया भी अहम भूमिका निभा रहा है। दावेदारों से लेकर उनके समर्थक तक सोशल मीडिया पर जमकर प्रचार कर रहे हैं। एक शब्द मे कहें तो त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में भी लोकसभा चुनाव की तरह सोशल मीडिया के द्वारा प्रचार किया जा रहा है। ग्राम प्रधान से लेकर जिला पंचायत सदस्य तक के दावेदार सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहे हैं। ये दावेदार सुबह लेकर देर रात सुप्रभात-शुभरात्रि का मैसेज भी मतदाताओं तक भेज रहे हैं। यहां तक कि अधिकांश संभावित उम्मीदवार गांव-क्षेत्र को विकसित कराने के दावे भी सोशल मीडिया के माध्यम से कर रहे हैं। इसके अलावा सोशल मीडिया पर आरोप-प्रत्यारोप और जुबानी जंग भी जारी है। खुद को आगे बताने में कोई भी कोर-कसर छोडने को तैयार नहीं है। इन दिनों गांव की सियासत भी खूब दिलचस्प हो गई है। अधिकांश संभावित दावेदारों के समर्थकों ने वाट्सअप और फेसबुक पर ग्रुप बना लिए हैं। इसके लिए वे ग्रुप के द्वारा ही अपने-अपने नेता का प्रचार कर रहे है। साथ ही समर्थक वाट्सएप पर अपने ग्रुप से अधिकतम लोगों को जोड़ रहे है ताकि मतों का आंकलन या अनुमान सही प्रकार से कर सके। इन ग्रुपों में जैसे ही कोई समर्थक अपने पक्ष वाले प्रत्याशी की जीत का दावा करता है। वैसे ही अन्य दावेदार व उनके समर्थक इस पर कटाक्ष कर रहे हैं। खास बात यह है कि इस ग्रुप में समर्थक दूसरे प्रत्याशियों की नाकामियों के बारे में भी सूचनाएं शेयर करते है। त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव केलिए वर्ष 2015 की आरक्षण प्रक्रिया को आधार मानते हुए नये सिरे से आरक्षण लागू होने के हाईकोर्ट के आदेश के बाद चुनावी प्रक्रिया में मस्त दावेदारों के घरों में सन्नाटा सा पसरा हुआ है। दावेदारों के सारे समीकरण फेल होते दिखाई दे रहे है। नये सिरे से आरक्षण प्रक्रिया लागू होने पर चुनाव में किस्मत अजमाने का मन बना चुके रहे दावेदारों में इस बात को लेकर खलबली है कि किस वार्ड में किसे आरक्षित सीट होगी इसको लेकर असमंजस्य बना हुआ है। गांव की सरकार चुनने के लिए दावेदारों केसामने आरक्षण की प्रक्रिया जटिल बनी हुई है। दो मार्च को आरक्षण प्रक्रिया जारी होने केबाद महिला प्रधानों को ज्यादा तरजीह दी गई थी। चार सौ से ज्यादा महिला प्रधानों प्रत्याशियों को चुना जाना तय था। आरक्षण प्रक्रिया नये सिरे से लागू होने के बाद कई महीने से चुनावी तैयारी में लगे राजनीतिक धुरंधरों के हौंसले पस्त होते दिखाई दे रहे है। जिस कारण दावेदारों के घरों में लोगों का आना जाना बन्द हो गया है। बैठकों पर सन्नाटा पसरने केसाथ ही वर्तमान में प्रधान, सदस्य पद पर आसीन दावेदारों में इस बार आरक्षण लागू होने के बाद वह चुनाव में लड़ पाएंगे। इसको लेकर असमंजस्य की स्थिति बनी हुई है।
बरेली से कपिल यादव