बिहार- मध्यकालीन सामंती व्यवस्था के कारण समाज में आई सांस्कृतिक बुराइयों के खिलाफ सतत अभियान चलाए जाने की जरूरत है । कहने को तो हम 21वीं सदी में रह रहे हैं, लेकिन लाखों लोग ऐसे हैं जिनकी सोच विशेषकर नारियों के प्रति अभी भी मध्ययुगीन है । मध्ययुगीन सामाजिक जड़ता और कुरीतियों के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी जानी है । इस लड़ाई में संस्कृति कर्मियों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है । यह लड़ाई किसी भौगोलिक खंड को जीतने के लिए नहीं है बल्कि मन को जीतने के लिए है । भ्रूण हत्या, कम उम्र में लड़कियों का विवाह और दहेज प्रथा जैसी समस्याएं लोगों के दिमाग में है । और इन समस्याओं को लोगों के दिमाग से ही निकालना होगा । गायक, लेखक-पत्रकार, शिक्षक, नाट्यकर्मी और कलाकार सबको अपनी-अपनी जिम्मेदारियों को अच्छी तरह से निभाना होगा । यह कहना है बिहार की प्रसिद्ध लोक गायिका डॉ नीतू कुमारी नवगीत का । एक भेंट वार्ता में डॉ नीतू कुमारी नवगीत ने कहा कि उन्होंने बिटिया है अनमोल रतन एल्बम के माध्यम से बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के संदेश को आगे बढ़ाते हुए बाल विवाह, दहेज प्रथा भ्रूण हत्या और महिलाओं पर अत्याचार की समाप्ति के लिए आवाज उठाया है । इस एल्बम का एक गीत या रब हमारे देश में बिटिया का मान हो, जेहन में बेटों जितना ही बेटी की शान हो, को लोगों ने काफी पसंद किया है । इसी तरह दहेज प्रथा की खिलाफत और लड़कियों को पढ़ाने के लिए उन्होंने सारी लड़कियों के मन के भाव को स्वर दिया है : पढ़-लिख के लेबई जिंदगी संवार बाबा, सहबई ना हम दहेजवा के मार बाबा । उन्होंने कहा कि अत्याचार अनाचार और भेदभाव के खिलाफ लगातार आवाज उठाई जानी चाहिए । प्रतिरोध का स्वर मजबूत होता है । कलाकारों का दायित्व होता है कि वह एक बेहतर समाज की रचना में योगदान दें । लेकिन कई आंचलिक कलाकार द्विअर्थी गानों के माध्यम से सस्ती लोकप्रियता हासिल करने में जुड़े हैं । यह ठीक नहीं है । गंदे गीतों से किशोर और युवाओं के मन पर प्रतिकूल असर पड़ता है और वह हिंसा की ओर उन्मुख होते हैं । यह देख कर दुख होता है कि दुर्गा पूजा और सरस्वती पूजा के विसर्जन के जुलूस में भी हमारे बच्चे अश्लील गीतों पर नाच गान करते हैं । इनसे बचना जरूरी है । तमाम तरह के प्रदूषणों में सांस्कृतिक प्रदूषण सबसे खतरनाक होता है । किसी बड़ी साजिश के तहत बिहार की संस्कृति को प्रदूषित करने का भी अभियान चला हुआ है । अपनी संस्कृति को सहेजने समेटने और आगे बढ़ाने का दायित्व हम सबका है । जिसने अपनी संस्कृति की रक्षा नहीं की, समय उनकी रक्षा नहीं करता ।
-नसीम रब्बानी ,पटना/ बिहार