वाराणसी- संकट मोचन संगीत समारोह के मंच पर कत्थक डांस कर लोगों का मन आत्मविभोर किया एक बारगी ऐसा लगा जैसे गोपियां खुद कान्हा से बरजोरी कर रही हों। इसके बाद झूतो की बंदिश पर सुर लगाया। बोल थे- झूलत राधे नंद किशोरा।
इस बंदिश पर बैठकी भाव में उनके नृत्य की एक-एक तिहाइयां प्रतिबिंब की तरह व्यक्त हो रही थीं। अंत में भजन के बोल-भजो से मन लागी सीताराम.. पर नृत्य प्रस्तुति कर दर्शकों का मन मोह लिया गजब आकर्षण का केंद्र रहा दर्शक एकटक देखते ही रह गए। कथक के अनेक रूप देखकर प्रकृति भी सहसा झूम उठी थी। आसमान में काले घने बादल गर्जना कर रहे थे। ठंडी शीतल हवा का चलना शुरू हो गया आपस में पेड़ पत्तियां भी झूमने लगे नजारा कुछ ऐसा ही रहा।
क्या कहती है कत्थक की परिभाषाएं
कत्थक नृत्य उत्तर प्रदेश का शास्त्रीय नृत्य है। कत्थक कहे सो कथा कहलाए। कथक शब्द का अर्थ कथा को चीरते हुए कहा जाता है। प्राचीन काल में कत्थक को सुशीलव नाम से जाना जाता है। कटक राजस्थान और उत्तर भारतीय की नृत्य शैली है। यह बहुत प्राचीन शैली है क्योंकि महाभारत में भी कत्थक का वर्णन किया गया है। मध्यकाल में इसका संबंध कृष्ण कला और नृत्य से था। वर्तमान समय में बिरजू महाराज उसके बड़े व्याख्याता रहे हैं हिंदी फिल्मों में अधिकांश नृत्य इसी शैली पर आधारित होते हैं।
रिपोर्ट- महेश कुमार राय वाराणसी सिटी