राज्य सरकार बने या केंद्र सरकार तैड़िया गांव को तो फुट भर विकास की रही दरकार…

उत्तराखंड/पौड़ी गढ़वाल- प्रखंड रिखणीखाल के सीमांत गांव व कॉर्बट नेशनल पार्क के अंदर बसे ५६हेक्टेयर भूभाग के ग्राम सभा कांडा के अभिन्न अंग तैड़िया को अब तक के सभी निर्वाचित सांसद या विधायकों ने वोट बैंक के अलावा और कुछ विकास या विस्थापन के झुनझुने को भुनाने तक ही सीमित समझा। अब तक आलम यह है कि यहां के लगभग एक सौ पच्चीस मतदाताओं के मतों का भी किसी को मलाल नहीं रहा।एक ही पिता की संतान का यह गांव पूर्वजों के अनुसार तेरहवीं शताब्दी में यहां परदादा सुरमणि ने यहां बसागत की।मूलरूप से पशुपालन व खेती से आजीविका चलानेवाले सुरमणि के बाद मैसी व कफरू ने वर्तमान तैड़िया वह भैंसें, गाय बांधने की जगह भैंसाडाबर को विकसित किया। कालांतर में छछरण,ल्वड्या,गस्किल,बैड़ाटूंडू,अमखोली,नवाड़,ढौंर,डांड,कंदरण,कंदुल़,सिमलखेत,ख्यूणीख्यात,उमराखोली,सकन्यूमल़ा,खोल़ी,दधौड़ा,जेठनूं आदि पीढ़ी दर जरूरत के हिसाब से खेतीयुक्त बनते गये।कुनबा बढ़ाने के साथ ही वनाधारित जीवनशैली में आज तक छठी सातवीं पीढ़ी में आते आते फिर खेत कूरी रौदड्या वह काली झाड़ी के आगोश में हैं।वर्ष १९९२ में पार्क सीमांत र्गत निवसित गांवों धारा,झिरना व कोठीरौ के लिये व २००५/०६ में वन गूर्जरों की नीत्यानुरुप विस्थापन योजना का प्रस्ताव वन विभाग द्वारा ग्रामीणों के समक्ष रखा गया। गांव में ग्राम विस्थापन समिति जो विस्थापन एवं पुनर्वास संघर्ष समिति बनी,शासन व वन विभाग द्वारा टाल-मटोल की नीति चलती रही, कैबिनेट में मामला नहीं आ पाया जिसके कारण स्पष्ट नीति नहीं बन पायी।०७/०३/२०१८ की निदेशक काटारि, डीएफओ व विधायक के साथ ग्रामीणों की बैठक में सहमति बनी लेकिन शासन में उस पर आयोजित तीन बैठकों में से अधिकारियों की अनुपस्थिति ग्रामीणों का आज तक जी का जंजाल बन कर रह गई है। वर्तमान में गांव में विकास के नाम पर दो सीसी मार्ग हैं, पंपिंग योजना हांफ रही है, पंचायत विभाग से मात्र कुछ ही शौचालय , विद्युतीकरण के मामले में पीएमओ व सूचनाधिकार से मुश्किल से सोलर पैनल अब तक २६ पहुंचे हैं। जबकि परिवार लगभग चालीस हैं। समाजसेविका बिनीता ध्यानी का कहना है कि लोगों ने वन कानून एवं वन्य जीवों के आतंक से क्षुब्ध होकर खेती-बाड़ी से मुख मोड़ दिया है वहीं लहसुन प्याज ,राई मूलीकी क्यारियों तक सीमित कर दिया है,यदि शासन सत्ता विस्थापन नहीं कर सकती तो झूठे आश्वासन छोड़ गांव में बिजली-पानी,सड़क व जीवन जीने के मौलिक अधिकारों के अनुरूप सारी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाय।

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