मारवाड़ री मिठास है आपणे होली रो त्यौहार : राजू चारण

बाड़मेर / राजस्थान- मारवाड़ की सांस्कृतिक राजस्थानी जोधपुर सम्भाग री विरासत और अपणायत की लूंठी परंपरा का शहर है। यहां के बाशिंदों के मिठास भरे शब्दों में सबसे ज्यादा आओ सा, पधारो सा, बिराजो सा के स्वर देशी विदेशी सैलानियों को मिसरी की तरह लगते हैं। रगों के पावन पर्व होली पर भी यहां की खूबसूरत परंपराएं लोगों को इस शहर की ओर अक्सर खींच लाती हैं। इस शहर की आबोहवा में मीठी बोली और मीठे संबंध गंगा जमनी रिवायत की तरह होली के अवसर पर रंगों के साथ मनोरंगों में भी रंग जाते हैं, मिल जाते हैं। यहां होली पर परकोटे में पाच सौ बरसों से गेर गायन की अनूठी परंपरा है। ओ मारवाड़ री मिठास रो त्योहार है सा आपणो होली रो….. वरिष्ठ पत्रकार राजू चारण इस बार भी कई टोलियां गेर गीत गायन करेंगी। होली के त्योहार पर जर्नलिस्ट काउंसिल आफ इण्डिया के राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सलाहकार समिति के सदस्य और वरिष्ठ पत्रकार राजू चारण ने जोधपुर में होली की परंपरा पर लोक संस्कृति के लिए ख्यातिप्राप्त महावीर शर्मा और गुरूदत अवस्थी से विशेष बातचीत की

जानकारी देते हुए वरिष्ठ पत्रकार गुरूदत अवस्थी ने बताया कि आपणे जोधपुर शहर की होली की अपनी विशेषताएं है, जिसका आनंद लेने के लिए आजकल देशी और विदेशी पर्यटक लालायित रहते हैं। जोधपुर की ये शाश्वत सांस्कृतिक परंपराएं आज भी अक्षुण्ण बनी हुई हैं। ऋतुराज बसंत में मौसम में परिवर्तन आता है, उससे खेतों में फसल पक जाती है और रिश्तों में रंग व रस की प्रवृति उद्भूत होती है तो संगीत प्रकृति से सामंजस्य स्थापित करता है। इस अवसर पर गांवों में फाग गाया जाता है,जिसकी एक विशेषता है कि पुरुष स्त्री बन कर नाचता है। हो न हो यह हमारे अद्र्धनारीश्वर की प्रकृतिजन्य प्रवृति है।

इस सम्बन्ध में ज्यादा जानकारी देते हुए वरिष्ठ पत्रकार महावीर शर्मा ने बताया कि इसी के आधार पर शहरों में चग की थाप पर श्लील गाली गायन होता है। यहां गालियों के भी दो प्रकार हैं। पहला-पारिवारिक संबंधों के लिए गालियां महिलाएं गाती हैं और दूसरी- ऋतु परिवर्तन की गालियां उमंग के साथ पुरुष गाते हैं। इन गालियों में सौंदर्यबोध के साथ वे संदेश भी हैं जो सामाजिक परिवर्तनों को स्वीकार करने और उन्हें भावी पीढ़ी तक हस्तांतरित करने में भी समर्थ होते हैं। इनमें अनुप्रास अलंकार और हास्य व्यंग्य के लिए द्विअर्थी शब्दों का भी प्रयोग होता है। यह लोक साहित्य की वह विधा है जो सदियों से हमारे संबंधों को परिपक्व बनाती है।

इस सम्बन्ध में विशेष जानकारी रखने वाले आशिष मेहता ने बताया कि इस अवसर पर रंगों का प्रभाव सूर्य के सातों ही रंग, जो दृष्टि और शरीर शक्ति प्रदान करते हैं, जिसमें लाल रंग ‘इन्फ्रा रेड’ थकान दूर कर उत्साह भर देता है। हमारे यहां मंडोर में राव जी की गेर भी निकलती है। इसमें लोक नृत्य का भी बहुत महत्व है। राजस्थानी नृत्यों में’ढाह पग’ नृत्य से जिंदगी में कभी ब्लड प्रेशर की समस्या नहीं होती है। वहीं मानसिक संतुलन व शारीरिक संतुलन आत्मिक हो जाते हैं, जिसे राजस्थानी भाषा में जोधपुर की पहचान के रूप में अपणायत कहते हैं। होली पर जोधपुर परकोटे में इस बार भी कई जगह श्लील गायन होगा।

– राजस्थान से राजूचारण

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