प्राईवेट स्कूल बाले डाल रहे हैं अभिवावकों की जेब पर डांका

शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश सरकार ने अपना रुख किया स्पष्ट ,अब देखना होगा कि जिला स्तरीय के जनप्रतिनिधि क्या करते हैं।शाहजहांपुर। इस समय का सबसे अगर कोई ज्वलंत मुद्दा है तो निजी स्कूलों में फीस की मनमानी का।काफी लंबे समय से सामाजिक संगठन आंदोलन कर रहे हैं ,कुछ समाजसेवी अपनी आवाज को इस मनमानी के विरुद्ध बुलंद कर रहे हैं परंतु निजी स्कूलों की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ना कहीं न कहीं पर प्रशासनिक और जनता के द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधियों के प्रति संशय अवश्य पैदा करता है। आखिर क्या कारण है क्यों नहीं संगठनों की आवाज को सुना जा रहा है ?शिक्षा दी जा रही है या फिर पूरी तरीके से व्यवसाय किया जा रहा है। हर वर्ष किताबों को बदलना क्या न्याय संगत है? गरीब लोगों ने भी सपना देखा है वह अपने बच्चों को अच्छे स्कूलों में पढ़ाई करवाएं। पहले लोग अपने से सीनियर की पुरानी किताबें खरीद लेते थे लेकिन व्यवसायीकरण के कारण पुरानी किताबों को तो भूल ही जाइए क्योंकि नई किताबों में 50 से लेकर 60 प्रतिशत कमीशन विद्यालय प्रबंधन तंत्र का होता है जिसके कारण बुक सेलर मजबूर हैं। जूते,मोजे और ड्रेस पर कमीशन बांधने लगे है क्या यही है शिक्षा ?क्या ऐसी शिक्षा से होगा छात्रों का विकास ?क्या ऐसी शिक्षा के मिलने से भारत बनेगा विश्व गुरु, इस प्रकार की शिक्षा से राष्ट्र निर्माण कैसे हो सकता है? लगातार आंदोलन होने से, लगातार धरना प्रदर्शन होने से संगठनों की आवाज उत्तर प्रदेश शासन तक पहुँच गई है जिसके कारण उत्तर प्रदेश सरकार ने निजी स्कूलों की सालाना फीस वृद्धि का फार्मूला तय कर दिया और उस फार्मूले के तहत निजी स्कूल पिछले सत्र के शुल्क का 5% जोड़ते हुए हर साल इतनी ही फीस बढ़ा सकेंगे ।साथ ही साथ कैबिनेट का फैसला है कि किताबें जूते-मोजे खरीदने के लिए किसी भी अभिभावक को बाध्य नहीं किया जाएगा ।कैबिनेट ने एक महत्वपूर्ण फैसला किया है कि 5 साल से पहले यूनिफार्म नहीं बदली जाएगी। यह फैसला उत्तर प्रदेश सरकार ने पारित कर दिया परंतु अब देखना यह होगा कि जिले स्तर पर बैठे विधायक जिन्हें जनता ने चुना है कि वह जनता की समस्या का निराकरण कितना करते हैं। उनके द्वारा प्रशासन से कैसे उत्तर प्रदेश सरकार कैबिनेट के फैसले को अनुपालन में ला पाते हैं ?बहुत ही बड़ा प्रश्न है क्योंकि जनता ने जिन्हें चुन कर भेजा है अब उनका नैतिक दायित्व बनता है कि कैबिनेट के फैसले को प्रशासनिक अधिकारियों से सही तरीके से करवाएं ताकि सरकार की छवि खराब न हो ।सूत्रों से पता चला है कि इसमें सभी का अपना एक तय हो जाता है जिसके कारण सामाजिक संगठन हुंकार भरते रहते हैं और निजी विद्यालय तन्त्र अपना कार्य करते रहते हैं और वही बात है कि “अपनी -अपनी ढपली अपना अपना राग “अब देखते है कि धरातल पर कैबिनेट के फैसले धराशाई होते हुए नजर आते हैं या नही।आज कृष्णाराज कृषि एवं किसान कल्याण राज्यमंत्री के परिवहन /सड़क प्रतिनिधि सुबोध कुमार मिश्रा ने जिलाधिकारी को संबोधित ज्ञापन अपर जिलाधिकारी को सौंपा प्रार्थना पत्र के माध्यम से उन्होंने कहा कि निजी स्कूलों की मनमानी के चलते अभिभावकों का लगातार खुलेआम आर्थिक शोषण किया जा रहा है अच्छी शिक्षा के नाम पर स्कूल वाले अभिभावकों से भारी फीस लेकर अपनी जेबें भर रहे हैं ।जब विद्यालय वाले ड्रेस निर्धारित कर देते हैं तो दोबारा बदलने का क्या तरीका है ,किताबों का सिलेबस हर बार क्यों चेंज किया जाता है? उन्होंने पत्र के माध्यम से बताया है कि इससे अभिभावकों में गहरा रोष व्याप्त होता जा रहा है और कहीं न कहीं सरकार की फजीहत होती है।

संवाददाता ब्रजलाल कुमार शाहजहांपुर

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