नालासोपारा प्रकरण में प्रविष्ट किए गए आरोपपत्र के विषय में सनातन संस्था की भूमिका

राजस्थान/जयपुर- ‘क्षात्रधर्म साधना’ ग्रंथ में ‘हिन्दू राष्ट्र’ शब्द का उल्लेख है ही नहीं; ‘एटीएस’ के तथ्यहीन आरोप !

नालासोपारा स्फोटक प्रकरण में कल मुंबई आतंकवाद विरोधी पथक ने (‘एटीएस’ ने) आरोपपत्र दर्ज करने जो प्रसिद्धिपत्रक प्रसिद्ध किया है, वह अत्यंत हास्यास्पद, सदोष और निषेधजनक है । यदि प्रसिद्धिपत्रक इतना सदोष है, तो प्रत्यक्ष में आरोपपत्र कितना सदोष होगा, इसकी कल्पना कर सकते हैं । इस आरोपपत्र के प्रमुख आरोपों के विषय में हम हमारी भूमिका यहां दे रहे हैं, ऐसा सनातन संस्था के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. चेतन राजहंस ने कहा है ।

1. आरोप : जांच के दौरान सनातन संस्था एवं हिन्दू जनजागृति समिति तथा कुछ अन्य तत्सम संगठनों के सदस्य इस प्रकरण में बंदी बनाए गए हैं ।

वस्तुस्थिति : हमने इस प्रकरण में 26 अगस्त 2018 को पत्रकार परिषद लेकर तथा इससे पहले भी 4 प्रसिद्धिपत्रकों द्वारा बंदी बनाए गए आरोपियों में से कोई भी सनातन संस्था का साधक नहीं है, यह स्पष्ट किया था । इसमें से सर्वश्री वैभव राऊत, सुधन्वा गोंधळेकर, श्रीकांत पांगारकर एवं अविनाश पवार के स्वतंत्र संगठन हैं और वे संस्था के हिन्दू-संगठन के कार्यक्रमों में अथवा आंदोलनों में कभी-कभी सहभागी हुए थे; परंतु उन्होंने कभी भी सनातन संस्था के साधक अर्थात सनातन संस्था के मार्गदर्शनानुसार साधना नहीं की है । शेष 5 लोगों के नाम तो उन्हें बंदी बनाए जाने के बाद हमने पहली बार ही सुने । जांच तंत्रों को ज्ञात है कि इसमें कुछ अन्य संगठनों के सदस्य हैं । ऐसा होते हुए भी जानबूझकर उन संगठनों के नाम न लेकर केवल ‘हिन्दू धर्म का प्रचार एवं हिन्दू राष्ट्र-जागृति के लिए कार्य करते हैं’, ऐसा कहकर सनातन संस्था एवं हिन्दू जनजागृति समिति के नाम घोषित किए जाते हैं ! इससे सनातन संस्था एवं हिन्दू जनजागृति समिति को बदले की भावना से लक्ष्य बनाने का प्रयास स्पष्ट दिखाई देता है । इससे पहले के प्रकरणों में जो जो सनातन संस्था के साधक थे, उन्हें कभी भी संस्था ने अमान्य नहीं किया है । क्योंकि वे हमारे ही थे; परंतु इस प्रकरण में जो हमारे साधक नहीं हैं, उनके नाम लेकर सनातन संस्था को लक्ष्य बनाने का प्रयत्न निषेधजनक है ।

*2. आरोप : इन सदस्यों ने सनातन संस्था के ‘क्षात्रधर्म साधना’ पुस्तक में किए गए उल्लेख अनुसार हिन्दू राष्ट्र के उद्देश्य से प्रेरित होकर आपस में मिलकर समविचारी युवकों की आतंकी टोली बनाई ।

वस्तुस्थिति : सनातन संस्था के ‘क्षात्रधर्म साधना’ ग्रंथ में ‘हिन्दू राष्ट्र’ शब्द ही नहीं है । इसलिए यह ग्रंथ पढकर हिन्दू राष्ट्र के उद्देश्य से प्रेरित होना, यह कहना सरासर झूठ है । इसीसे आरोपपत्र कितना सदोष है, यह ध्यान में आता है । ‘क्षात्रधर्म साधना’ ग्रंथ में हिन्दू धर्म के श्रीमद्भगवद्गीता, महाभारत, रामायण आदि अनेक महान धर्मग्रंथों के वचन, श्‍लोक आदि के संदर्भ दिए गए हैं । तथा यह ग्रंथ लगभग 20 वर्ष पूर्व प्रकाशित किया गया था और पिछले 10 वर्ष से मांग के अभाववश पुनर्मुद्रित नहीं किया गया; परंतु जांचतंत्रों का झूठापन सिद्ध करने के लिए हमने इस ग्रंथ का पुनर्मुद्रण करने का निर्णय लिया है और शीघ्र ही सभी के लिए उपलब्ध कराया जाएगा ।

एटीएस’ कहती है, ‘क्षात्रधर्म साधना’ ग्रंथ पढकर कोई हत्या अथवा आतंकवादी कृत्य कर रहे थे; जबकि लाखों हत्याएं और सैकडों बम-विस्फोट करनेवाले जिहादी आतंकवादी और सहस्रों निघृण हत्याएं करनेवाले नक्सलवादी कौनसे ग्रंथ पढकर ये कृत्य करते हैं, क्या यह बताने का साहस ‘एटीएस’ दिखाएगी ?

3. आरोप : पुणे में दिसंबर 2017 में हुए ‘सनबर्न फेस्टीवल’को विरोध करने के लिए देसी बम, पेट्रोल बम, अग्निशस्त्र, पथराव आदि द्वारा खून-खराबा करना था ।

वस्तुस्थिति : इस प्रकरण में कुछ हिन्दुत्वनिष्ठों को अगस्त 2018 में बंदी बनाया गया । ‘सनबर्न फेस्टीवल’ दिसंबर 2017 में हुआ था । इस फेस्टीवल का हम पिछले 3 वर्षों से वैधानिक मार्ग से विरोध कर रहे हैं । इसमें सनबर्न के आयोजकों ने कानून का उल्लंघन कैसे किया, शासन का कितना करोड कर डुबाया, गैरकानूनी रूप से कितनी वनसंपदा नष्ट की, मद्यबंदी घोषित गांव में कैसे मद्यपान किया गया, नशीले पदार्थों के सेवन से कितने युवकों की मृत्यु हो गई, ध्वनिमर्यादा होते हुए भी आवाज कितने डेसिबल था आदि विषय में बडी मात्रा में जनप्रबोधन किया गया । इसके साथ सांस्कृतिक हानि हुई, वह अलग ! इस आंदोलन में ग्रामीणों ने अगुआई की । इन 3 वर्षों के वैध आंदोलनों में कहीं खून-खराबा तो दूर की बात है, कुछ अयोग्य कृत्य भी नहीं हुआ । ऐसे में सीधे बम-विस्फोट का षड्यंत्र रचने का आरोप करना, सरासर झूठ है । षड्यंत्र रचने का आरोप करनेवाले, वास्तव क्या है, इसके बारे में कब बोलेंगे ?

4. मराठी प्रसिद्धिपत्रक में कहा गया है कि आरंभ में 12 में से 9 लोगों को बंदी बनाया और 3 लोग फरार; परंतु अंत में 12 लोगों के नाम देकर उन्हें बंदी बनाए जाने की बात कही है । सदोष प्रसिद्धिपत्रक, सदोष आरोपपत्र एवं सदोष जांच कैसे होती है, इसका यह उदाहरण है ।

इस प्रकरण में आरोपपत्र प्रविष्ट किया गया है, ऐसा केवल प्रसिद्धिपत्रक मिला है । वास्तव में आरोपपत्र हमें नहीं मिला है । उसमें क्या है, यह देखकर आगे की विस्तृत भूमिका बाद में प्रस्तुत करेंगे । इन आरोपों से कांग्रेस शासन ने मालेगांव बमविस्फोट के निमित्त से ‘भगवा आतंकवाद’ का षड्यंत्र रचा; परंतु यह असफल होता दिखाई दे रहा है । अब पुनः एक बार ‘भगवा आतंकवाद’ सिद्ध करने के लिए सनातन संस्था एवं हिन्दू जनजागृति समिति को बलि का बकरा बनाया जा रहा है और ‘मालेगांव भाग 2’ यह कथानक रचा जा रहा है । कर्नाटक की कांग्रेस सरकार कर्नाटक एस.आई.टी. को साथ लेकर आगामी चुनावों की पृष्ठभूमि पर पुनः ‘भगवा दहशतवाद’ के मुद्दे पर वातावरण कलुषित करने का प्रयास कर रही है और कर्नाटक एस.आई.टी.की सूचनाआें के आधार पर ही महाराष्ट्र ‘एटीएस’ ने यह कार्रवाई की है, यह सभी जानते हैं । फिर भी न्यायव्यवस्था पर हमारा पूरा विश्‍वास है और न्यायालय में अभियोग चलाने का धैर्य जांच तंत्र दिखाए, हम अपनी निर्दोषता न्यायालय में शीघ्र ही सिद्ध करेंगे, ऐसा भी श्री. राजहंस ने कहा है ।

पत्रकार दिनेश लूणिया

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