उत्तराखंड- प्रखंड रिखणीखाल के अंतर्गत तैड़िया गांव जो कार्बेट नेशनल पार्क के वन कानूनी दंश झेल रहा है,न यहां विकास हो पाया न विस्थापन ।
वर्ष 1999से अब तक सरकार, विभाग व शासन की हीलाहवाली ने गांव को आज बंजर करने में कोर कसर नहीं छोड़ी,आलम यह है कि अधिकांश परिवार रोजी रोटी और बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य आदि बुनियादी सुविधाओं की चाह में गांव छोड़ कर चले जाने पर मजबर हुए।
निरंतर जंगली जानवरों के आतं के तथा भय ने जीवन नारकीय बना दिया। विस्थापन का झुनझुना थमाने का आश्वासन देने वाली सरकारों ने जमीन दिखाई,सपने दिखाए और अपनी बात पर मनाने की हठ से लोगों का मन वचन और कर्म से कुंठाग्रस्त कर दिया।वर्ष 2006/007,2011/12,2015/16में खूब वार्ताओं का दौर भी चला लेकिन सहमति के बावजूद भी शासनस्तरीय वार्ताओं का नं होना मंशा पर सवालिया निशान लगाता है।लगभग 56हैक्टेयर में बसे गांव का भैंसाडाबर जिसे तैड़िया प्रथम व वर्तमान गांव द्वितीय वन विभागीय नक्शे में शामिल है जो कोर जोन से लगा है। कोटद्वार-धुमाकोट मोटरमार्ग से पूरब की ओर घने जंगलों के बीच पांच किलोमीटर दूर स्थित होने पर गांव आधुनिकता की दौड़ में आज भी आदमयुगीन जीवन जीने को जूझ रहा है। क्षेत्र पंचायत सदस्य कर्तिया बिनीता ध्यानी का कहना है कि जब केंद्र सरकार ने राज्य सरकार से कोर जोन तथा बफर जोन में स्थित 48 गांवों की स्थिति स्पष्ट करने को पालिसी बनाने को कहा है जिसका अभी तक कोई प्रत्युत्तर नहीं आया है।उसके बाद ही गांव का भाविष्यिक निर्धारण होगा।
डॉ ए.पी. ध्यानी , विस्थापन एवं पुनर्वास संघर्ष समिति तैड़िया का कहना है कि यदि गांव तक सड़क जाती है और उसे पर्यटन विभाग से पर्यटक स्थल घोषित किया गया तो गांव की रमणीकता को देखते हुए वह चर्चित और रोजगार देने वाला गांव बन सकेगा।,जबकि वहां होमस्टे को बढ़ावा दिया जाए।
– बिनीता ध्यानी,उत्तराखंड