करवाचौथ : सुहागिन महिलाएं कब और कैसे करें पूजा

फतेहगंज पश्चिमी, बरेली। करवा चौथ के व्रत का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। सुहागिन महिलाओं के लिए यह व्रत सभी व्रतों में सबसे खास है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी को करवाचौथ का व्रत किया जाता है। यदि दो दिन चन्द्रोदय व्यापिनी या दोनों ही दिन न हो तो पहले दिन वाली चन्द्रोदय ही लेनी चाहिए। इस वर्ष 4 नवंबर को चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी तिथि एवं मृगशिरा नक्षत्र पूरे दिन रहेगा। इस दिन महिलाएं दिन भर भूखी-प्‍यासी रहकर अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती है। यही नहीं कुंवारी लड़कियां भी मनवांछित वर के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। इस दिन प्रात: 6:36 बजे के बाद सर्वाथसिद्धी योग आरम्भ होगा जो कि पूर्ण रात्रि रहेगा। इसमें चन्द्रोदय होगा, जोकि शुभ रहेगा। ज्योतिषाचार्य ने बताया कि प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को गणेश जी और चंद्रमा का व्रत किया जाता है, पर इसमें सर्वाधिक महत्व है करवाचौथ का। इस दिन सुहागिन स्त्रियां अटल सुहाग, पति की दीर्घायु, स्वास्थ्य एवं मंगलकामनाएं के लिए व्रत करती हैं यह व्रत सौभाग्य और शुभ संतान देने वाला होता है। नवविवाहिताऐं विवाह के पहले वर्ष से ही ये व्रत प्रारम्भ करती हैं। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चौथ को चन्द्र देवता की पूजा के साथ-साथ शिव-पार्वती और स्वामी कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है। शिव-पार्वती पूजा का विधान इसलिए माना गया है कि जिस प्रकार शैल पुत्री पार्वती ने घोर तपस्या करके भगवान शंकर को प्राप्त कर अखण्ड सौभाग्य प्राप्त किया है, वैसा ही उन्हें भी प्राप्त हों, वैसे भी गौरी का पूजन कुंवारी कन्याओं और विवाहित महिलाओं के लिए विशेष महात्मय माना जाता है। इस दिन कुंवारी कन्यायें गौरा देवी का पूजन करती हैं। महाभारत काल में पाण्डवों की रक्षा हेतु द्रोपदी ने यह व्रत किया था। बुधवार की सुबह महिलाएं सुख सौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रत महं करिष्ये पति, पुत्र-पौत्र तथा सुख सौभाग्य की इच्छा का संकल्प लेकर यह व्रत आरंभ करती हैं। व्रत में शिव-पार्वती, कार्तिकेय, गणेश तथा चन्द्रमा का पूजन करके अर्ध्य देकर ही जल, भोजन ग्रहण करना चाहिए। चन्द्रोदय के कुछ पूर्व एक पटले पर कपड़ा बिछाकर उस पर मिट्टी से शिवजी, पार्वती जी, कार्तिकेय जी और चन्द्रमा की छोटी-छोटी मूर्तियां बनाकर अथवा करवाचौथ के छपे चित्र लगाकर कर पटले के पास पानी से भरा लोटा और करवा रख कर करवाचौथ की कहानी सुनी जाती है, कहानी सुनने से पूर्व करवे पर रोली से एक सतिया बनाकर उस पर रोली से 13 बिन्दियां लगाई जाती हैं, हाथ पर गेहूं के 13 दाने लेकर कथा सुनी जाती है और चांद निकल आने पर उसे अर्ध्य देकर महिलाएं भोजन करती हैं। चन्द्रमा निकलने से पूर्व पूजा स्थल रंगोली से सजाया जाता है तथा एक करवा टोटीदार उरई की पांच या सात सींक डालकर रखा जाता है, करवा मिट्टी का होता है, यदि पहली बार करवाचौथ चांदी या सोने के करवे से पूजा जाये तो हर बार उसी की पूजा होती है, फिर रात्रि में चन्द्रमा निकलने पर चन्द्र दर्शन कर अर्ध्य दिया जाता है। चन्द्रमा के चित्र पर निरन्तर धार छोड़ी जाती है तथा सुहाग और समृद्धि की कामनी की जाती है तथा पति व बुजुर्गों के चरण स्पर्श कर बने हुये पकवान प्रसाद में चढ़ाये जाते हैं। व्रत पूर्ण होने पर उनका प्रसाद पाते हैं।
करवा चौथ की तिथि और शुभ मुहुर्त
करवा चौथ व्रत का समय: 4 नवंबर 2020 को सुबह 06 बजकर 35 मिनट से रात 08 बजकर 12 मिनट तक।
कुल अवधि: 13 घंटे 37 मिनट
पूजा का शुभ मुहुर्त: 4 नवंबर की शाम 05 बजकर 34 मिनट से शाम 06 बजकर 52 मिनट तक।
कुल अवधि: 1 घंटे 18 मिनट।
करवा चौथ के दिन चंद्रोदय का समय: रात 08 बजकर 12 मिनट।

बरेली से कपिल यादव

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *