उत्तराखंड: सेलाकुई क्षेत्र की 50 हज़ार से अधिक आबादी मौत के मुहँ में

उत्तराखंड जनपद देहरादून- “बाज़ कबूतर के बच्चों पर झपटा और उठा कर ले गया, कहानी बुरी है पर सच्ची लगती है। कबूतर बाज़ पर झपटा और बाज़ को मार दिया, कहानी अच्छी है पर विश्वास नही होता।”
जब मृत्यु प्रत्यक्ष सामने खड़ी हो तो कबूतर बाज़ को भी मार सकता है, खासकर तब जब उसके बच्चों का जीवन ख़तरे में हो।
ऐसा ही कुछ निर्णय कर यह लोग भी अपने घर द्वार छोड़ सड़कों पर निकल आये है। सेलाकुई क्षेत्र की 50 हज़ार से अधिक आबादी मौत के मुहँ में सरकार द्वारा धकेल दी गयी है। क्षेत्र के शीशमबाडा में देहरादून नगर निगम के मेयर विनोद चमोली ने कूड़ा निस्तारण केंद्र बनवाया जिसके लिए माननीय उच्चतम न्यायालय के सभी मानक ताक पर रख नियम-कानून की धज्जियां उड़ा दी गयी। निगम को करोड़ो की बंदरबांट कर हैदराबाद की रैमकी कंपनी ने बिना औपचारिता कूड़ा निस्तारण का ठेका हासिल कर लिया। बता दें कि कुछ महीने पहले तक निगम का ट्रेन्चिंग ग्राउंड सहस्त्रधारा रोड पर स्थित था, सोने सी कीमती ज़मीन पर बिल्डरों के खरबों रुपये के आवासीय प्रोजेक्ट चल रहे थे पर दुर्गंध के कारण फ्लैट नही बिक पा रहे थे। बिल्डर लॉबी ने मेयर को साधा और ट्रेन्चिंग ग्राउंड देहरादून से 22 किलोमीटर दूर सेलाकुई में ट्रांसफर करवा दिया, छोटे-बड़े नेता, अधिकारी सब को मोटा पैसा मिला ऐसा आरोप है और सेलाकुई क्षेत्र की मासूम जनता के हिस्से आयी मौत और बीमारी। क्षेत्र के 90% बच्चे आज बीमार है। कूड़ा निस्तारण केंद्र से 24 घंटे जानलेवा गैस निकलती है जो कभी भी भोपाल गैस त्रासदी जैसी बड़ी घटना को निमंत्रण दे सकती है। मरी हुई भैंस हो या कुत्ते सब यही फैंके जाते है जिनसे न जाने कौनसा खाद सरकार तैयार करवा रही है। रोचक बात यह है कि यह क्षेत्र नगर निगम देहरादून के अधीन आता ही नही फिर किस कारण यहां कूड़ा निस्तारण केंद्र खोला गया।
इस प्लांट से मात्र 100 मीटर की दूरी पर क्षेत्र की जीवनदायिनी कही जाने वाली ‘आसन’नदी बहती है जो इस स्थान से लगभग 25 किलोमीटर दूर एशिया का सबसे बड़ा wet land बनाती है जहां प्रतिवर्ष अनेको प्रजाति के विदेशी पक्षी प्रजनन के लिए आते है, दुर्भाग्यवश इस वर्ष प्रदूषण के कारण पक्षी भी नही आये और जो आये वो टिके नही।
समस्या अब विकट रूप ले चुकी है और 50 हज़ार से अधिक आबादी मृत्यु की कगार पर खड़ी है। सरकार मस्त है, विधायक गायब है, सांसद तो आजतक यहां फटकी नही।
दिनकर की कुछ पंगतिया याद आती है,
“हुंकारों से महलों की नींव उखड़ जाती,
सांसो के बल पर ताज हवा में उड़ता है।
जनता की रोके राह समय मे ताव कहाँ
वो जिधर चाहती काल उधर ही मुड़ता है।”
जनता अब सड़कों पर आ चुकि है।
साभार : अमित तोमर
– पौड़ी से इंद्रजीत सिंह असवाल

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