* सरकार ने आज तक नही ली एेसे सच्चे पर्यावरण प्रेमी की सुध
*केशर सिंह नेगी बीमार दिल्ली के पंत अस्पताल में भर्ती
*बात उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र पाैडी गढ़वाल के विकासखंड रिखणीखाल की
पौड़ी गढ़वाल- उत्तराखंड के पर्यावरण विदित एक ऐसे मसीहा की जिस को न नाम चाहिए न कोई पुरस्कार। जहां सोशल मीडिया के दौर में लोग घर के गमले में 1 किलो आलू उगा कर सोशलमीडिया में पोस्ट करते है कि मैं किसानी सीख रहा हूँ बही मुश्किलों का काम है। मगर मुझे आखिर कामयाबी मिल गई है मेरे किचन गार्डन में 1kg आलू उग गए है। वहीं एक 75 साल का बूढ़ा आदमी हर वक्त पेड़ लगा कर यही कहता है कि वसुंधरा का फर्ज ओर कर्ज अदा कर रहा हूँ।
बात जिला पौड़ी पट्टी बदलपुर रिखणीखाल के तिमल शैण गाँव में जहां तहां आप देखो फ़लदार पेड़ नजर आएंगे। और उन पौधों को खाद पानी देते हुए एक बाबा आप को दिखाई देंगे। सिर में पहाड़ी टोपी कांधे में गमछा मटमैली फ़तगी और दुबला पतला सगरीर उस बाबा का नाम है श्री केशर सिंह नेगी।
श्री केशर सिंह नेगी जी का जन्म 10 मई 1945 को ग्राम तिमल शैण में श्री भजन सिंह जी के घर हुआ। श्री भजन सिंह नेगी गुलाम भारत के मालगुजार थे मगर खुद के परिवार का भरणपोषण सम्भल नही था। नजदीक में मन्दाल नदी होने का कारण ध्याडी का गुजारा बन जाता था। काश्तकारी उन में कूट कूट कर भरी थी सभी ग्रामीणों की तरह वो भी खेती करते और अनाज के बदले सामन खरीदने ढाँकर लेने दुगड्डा जाते। वो अलग बात है कि समय की धारा में काश्तकारी पसीने की तरह सूख गया औऱ शामान के बदले सामन का स्वरूप पैसा रूपी यंत्र ने लेलिया।
श्री केशर सिंह 3 भाइयों में जेष्ठ भाई थे। पिता की आज्ञा से केशर सिंह नेगी जी रिश्तेदारों में पढ़ाई करने नगीना बिजनोर शहर चले गए। 10 वीं तक की पढ़ाई जैसे तैसे बालक केशर सिंह ने नगीना में पूर्ण की। मग़र आजाद भारत के संघर्ष में भला केशर सिंह के परिवार की माली हालत कैसे ठीक रहती रोज गृहयुद्ध और हिन्दू मुस्लिम के झगड़ों ने उन को गाँव की मिट्टी से जोड़ दिया। राजनीतिक उठापटक के जीवन में केशर सिंह अपनी पढ़ाई त्याग गए और वापस अपने परिवार के संग गाँव आगये। छोटे भाई बहिनों के पढाई के खातिर केशर सिंह ने अपनी पढ़ाई को त्याग दिया और वन विभाग ढिकाला में 23₹ महीने की नोकरी करने लगे। मग़र हवा को कौन बांध सका केशर सिंह ने मात्र 8 साल यह नोकरी किया औऱ परिवार की बिगड़ती माली हालत को टेक लगाने लग गए। पिता के दुर्बल शरीर में अब जान कम थी तो भाई बहिनों के स्कूल का बोझ अलग। केशर सिंह बे अपने भाई बहिनों को स्कूल न छोड़ने की सलाह दिया औऱ खुद हल लगाते ध्याडी मजदूरी करते और भाई बहिनों को स्कूल पढ़ाते। अल्प उम्र में ही उन को tb जैसे भयानक बीमारी ने जकड़ दिया। वो दौर था महामारी का जिस को tb हो जाता था वह घर त्याग देता था और मरने का इंतजार करता था।
केशर सिंह ने हार नही मानी और ताड़केश्वर धाम में जाकर अपना डेरा जमा दिया रात दिन योग किया और 3 साल में tb जैसे महामारी को मात देदिया। जब केशर सिंह घर लौटे तो सब दंग थे। ततपश्चात युवा केशर सिंह ने तय किया कि अब सिर्फ कुदरत के लिए जीना है। और पर्यावरण को बचाना है जिस पर्यावरण ने उन को नया जीवन दिया उस पर्यावरण का संरक्षण करना परम् कर्तब्य है। बस उसी दिन से केशर सिंह जी जगह जगह पौधे लगाते है। जंगलों में खालचाल बनाते छुवाय में पंदोला बनाते। आज बगेड़ा,खरका,तिमल शैण बुंगल गड़ी काल्यों अदाली के क्षेत्र में आप को फ़लदार बृक्ष नजर आजायेंगे। भरी गर्मी में केशर सिंह बाल्टी में पानी लिए खरका की चढ़ाई चढ़ते है। पर्यावरण प्रेमी केशर सिंह नेगी अपने बच्चों को भी यही सलाह देते है। आज बच्चे कामयाब हो चुके है मगर पौधा रोपण के लिए हर वर्ष गाँव जरूर जाते है। श्री केशर सिंह के दो छोटे भाई है। एक भाई दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर है दूसरा दिल्ली हाईकोर्ट में वकील। अपने जमाने के श्री केशर सिंह क्षेत्र के सब से पढेलिखे लोगों में शामिल थे मगर परिवार और पर्यावरण संरक्षण की मुहिम ने उन को गाँव से बाहर नही जाने दिया।
श्री केशर सिंह नेगी जी के 2 पुत्र 3 पुत्री है जो अपने अपने क्षेत्र में निपुण है। उन के बच्चे नाती पोते कहते है कि हम ने बचपन्न से अपने घर में नर्सरी देखी है। अनेकों पौधों की प्रजातियां बचाने की मुहिम में हम ने पिताजी को रात दिन मेहनत करते देखा है
उन के बड़े पुत्र का कहना है कि पिताजी ने हम को पौधों की तरह और पौधों को औलाद की तरह पाला है। मैंने पिताजी को कभी सुबह बिस्तर से उठते नही देखा और न रात को सोते वक्त देखा है। हमारे जागने से पहले वो पानी लेकर पौधों की सिंचाई करने निकल जाते थे और रात को घर आते थे।
श्री केशर सिंह नेगी जी ने केला,आम,कठहल,अमरूद,बांस,खडिक, भीमल, आंवला, आड़ू, असिन, कुसुम,के बहुत पौधे लगाए करीब 40 साल से भी ज्यादा वक्त से वो बृक्षारोपण का कार्य कर रहे है। उन का किसी भी पौधे से कोई स्वार्थ नही है न वो पौधा अपने खेत में लगाते है जहां जगह खाली मिला पौधा लगा दिया। जंगल में जहां पौधा देखा उस के लिए छोटी खाल बना देते है। अगल बगल की झाड़ी साफ कर के उस पौधे को खाद देना सुरु कर देते है। आज आलम यह है कि उन के गाँव में बंदर भालू नही है जब कि समूचे क्षेत्र में बंदर बहुत है मगर गाँव में खेती को नुकसान नही देते है। बंदरों को गाँव से बाहर भरपूर फल मिल जाते है ग्रामीण व राहगीरों को भी फल खाने को मिलते है।
श्री केशर सिंह जी कहते है कि बृक्ष आप के सब से अछे मित्र होते है निस्वार्थ भाव से आप को पानी फल फूल छांव देने है और उम्र खत्म होते है लकड़ी भी मिल जाता है। उन से वार्तालाप होते वक्त उन का कहना था कि एक बृक्ष दधीचि के समान त्यागी होता है जब उस जो कगता है कि मालिक को उस की जरूरत नही वो खुद का शरीर त्याग देता है।
आज श्री केशर सिंह नेगी जी बीमार है दिल्ली में उन का उपचार पंत हॉस्पिटल में चल रहा है मगर आज भी वो यही कहते है पौधों को पानी देने का वक्त आगया है। कहीं मेरे लगाए आम सुख तो नही गए या कोई गाय बैल पौध न खा जाए। ऐसे पर्यावरणीय मानव को मेरा कोटि कोटि प्रणाम।
साभार देवेश आदमी
– पौड़ी से इन्द्रजीत सिंह असवाल की रिपोर्ट