उत्तराखंड: जानें भगवान बदरीनाथ की आरती किसने लिखी

उत्तराखंड-अब सचमुच प्रश्न बड़ा विकट खड़ा हो गया है क्योंकि अभी तक हम सभी यही जानते समझते थे कि भगवान् बदरीनाथ की आरती नन्दप्रयाग के बदरुद्दीन ने लिखी है जो पोस्टमास्टर थे और होली के गीत इत्यादि भी गाया करते थे लेकिन हिंदुस्तान समूह के चमोली गढवाल प्रमुख वरिष्ठ पत्रकार क्रान्ति भट्ट की खोज की गयी पांडुलिपि ने इस बात पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है कि आखिर यह आरती लिखी तो लिखी किसने है?
पवन मंद सुगंध शीतल हेम मंदिर शोभितम…
नामक इस आरती के बारे में लिखने से पूर्व कुछ हैरतअंगेज खुलासे सामने आये हैं जो साबित करते हैं कि कर्णप्रयाग और वर्तमान में नंदप्रयाग में अवस्थित वह परिवार जन्मजात मुस्लिम नहीं था जिसे इस आरती से जोड़ा जाता है. मुझे बचपन का वह इत्तेफाक आज तब याद आ गया जब केदारनाथ विधायक व तहलका के पूर्व पत्रकार मनोज रावत से इस सम्बन्ध में लम्बी वार्ता हुई. तब उन्होंने बताया कि इन लोगों के पूर्वज गौड़ ब्राह्मण थे जो कल्जीखाल व्लाॅक जिला पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)के किमोली-फळदा गॉव से पथभ्रष्ट होकर यहाँ आ बसे हैं.
यकीनन यह सुनकर मुझे मेरा वह बचपन वापस आ गया जब मैंने बाल्यकाल में भीमल की सोटी से अपने पिताजी की मार खाई थी वह इसलिए कि मैं “ फळदा गॉव के किसी मुसाफिर को अन्य लड़कों के साथ गाँव के बड़े भाइयों के कहने पर यह कहकर चिढा रहा था – हे भुला हे भुला, कखो कु! बल फळदा कु! बल सिंग लीजा बळदा कु!”
( हे भाई हे भाई कहाँ का! बोले फळदा (गाँव का नाम). बोले सींग लेजा बैल का!
दरअसल हम इस बात से अनजान थे कि फलदा गाँव में मुस्लिम बाहुल्य जाति के लोग भी रहते हैं. और इसीलिए हमसे बड़े गाँव के भाई लोग उन्हें हमारे माध्यम चिढाने का इसलिए प्रयास कर रहे हैं कि वे गाय भैंस का मांस भक्षण करने वाले हैं.
मार खाने के बाद सांयकाल में पिताजी जब मरहम लगाने आये तो उन्होंने मुझे यह किस्सा सुनाया था कि फलदा गाँव जो कि हमारे ही विकास खंड कल्जीखाल में पड़ता है वहां खान जाति के मुसलमान रहते हैं और इस बात से चिढ़ते हैं जिसे तुम कह रहे हो. तब मैंने मासूमियत से पूछा था कि मुसलमान भी तो इंसान होते हैं फिर उनसे ऐसा भेदभाव क्यों! पिताजी ने कहानी सुनाते हुए कहा कि किमोली गाँव के हम ब्राह्मणों के ही कुल के एक पढ़े लिखे व्यक्ति हुए पंडित मनु गौड़ ! जिनका पूरा कुनवा बेहद शाकाहारी व पूजा पाठ वाला रहा ! उन्हें उस काल में खान जाति की एक खूबसूरत कन्या पसंद आ गयी और जब यह बात फैली तब उनके पिता ने उन्हें गाँव निकाला कर दिया. मनु गौड़ पढ़ा लिखा था इसलिए ब्रिटिश काल में अंग्रेजों के छावनी क्षेत्र जहरीखाल के पोस्ट ऑफिस में उनकी नौकरी लग गयी. बदनामी की आंच वहां तक पहुंची तब वे अपनी पत्नी को लेकर चमोली जिले में जा बसे.
केदारनाथ विधायक मनोज रावत से जब बदरीनाथ आरती पर चर्चा हुई तब उन्होंने जानकारी दी थी कि यह बात प्रकाश में आने के बाद कि बदरीनाथ भगवान् की आरती किसी मुस्लिम बदरुद्दीन ने लिखी है। उन्हें तहलका से फोन आया कि इस पर एक शोध पूर्ण लेख प्रस्तुत करो. उन्होंने बताया कि नन्दप्रयाग के बदरुद्दीन के परिवार के गयासुद्दीन और …से इस सम्बन्ध में जब उन्होंने जानकारी लेनी चाहि तब आधी अधूरी जानकारी मिली इसलिए मुंबई में उनके चचाजान कमरुद्दीन जो कि मुंबई हाई कोर्ट में सीनियर अधिवक्ता थे उन्होंने बताया कि उनके पूर्वज पौड़ी में कल्जीखाल के पास किमोली फलदा से आकर पहले चमोली बसे फिर नन्दप्रयाग जो कि पूर्व में गौड़ ब्राह्मण थे।आज भी उनकी वंशावली मनुगौड़ के नाम से शुरू होती है.
तार से तार जुड़े और चमत्कार हो गया. जो कहानी मेरे पिताजी ने बाल्यकाल में मुझे सुनाई थी वह लगभग एक सी प्रतीत होती है.क्योंकि आज भी असवालस्यूं पट्टी के किमोली गाँव में गौड़ ब्राह्मण हैं व फलदा गाँव में खान मुसलमान! यानि सचमुच ही बदरुद्दीन के पूर्वज गौड़ ब्राह्मण थे!
वरिष्ठ पत्रकार क्रान्ति भट्ट द्वारा बदरीनाथ की आरती सम्बन्धी पांडुलिपि ने जहाँ यह प्रश्न खड़ा कर दिया है कि क्या यह आरती सतेराखाल के ठाकुर मालगुजार धन सिंह जी ने 1889 में लिखा । जिसमें संवत् भी अंकित है। आखिर क्या है वास्तविकता !
वहीँ विधायक मनोज रावत कहते हैं कि उनके पास हो सकता है आज भी वह आवाज रिकॉर्ड हो जिसमें मनु गौड़ के पौत्र वयोवृद्ध अधिवक्ता कम्रुद्द्दीन की एक घंटा हुई वार्ता रिकॉर्ड है जिसमें उन्होंने कहा है कि चमोली बसने के कुछ समय बाद ही मनु गौड़ के दो पुत्र जो कि मुस्लिम माँ होने के बाद बदरुद्दीन और नसुरुद्दीन कहलाये बदरुद्दीन पोस्ट मास्टर बन गए जबकि नसुरुद्दीन दिन भर भटकते रहते थे. और उन्हीं ने यह आरती लिखी है.
प्रश्न अभी भी मुंह उठाये वहीें खड़ा है कि आखिर आरती लिखी किसने है. प्रथम दृष्टया तो लगता है कि आरती सतेराखाल के ठाकुर मालगुजार धन सिंह जी ने 1889 में लिखा । लेकिन उस पांडुलिपि के अंत में एक सपोर्टिंग कागज़ पांडुलिपि पर अलग से कागज़ चिपकाकर उसमें कुछ मिटाने की कोशिश की है. ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि उस दौर में जब यह आरती आम चलन में आई और प्रसिद्ध हो गयी तब इसके नामों में छेड़छाड़ की गयी या फिर सचमुच यह आरती मालगुजार ठा. धन सिंह द्वारा लिखी गयी है. अगर ऐसा है तो उसकी धुन तैयार किसने की!
यहाँ प्रमाणिकता को आधारभूत मानकर कहा जाय तो आरती लिखना व उसे स्वरबद्ध करना सिर्फ एक व्यक्ति का कार्य नहीं हो सकता. क्योंकि आरती शुरूआती दौर पर राधेश्याम धुन पर प्रचलन में आई जोकि गढ़वाली रामलीलाओं में गाई बजाई जाती है.
मनु गौड़ के पुत्र बदरुद्दीन जो कि पोस्ट ऑफिस में पोस्ट मास्टर थे तब हिन्दू लोक त्यौहारों में बढ़चढ़कर हिस्सा लेते थे और रामलीला में संगीत मास्टर का कार्य भी करते थे. हो न हो इसकी धुन कम्पोज करने के कारण यह आरती उन्हीं की लिखी कहलाई हो ?
लेकिन केदार नाथ विधायक मनोज रावत का कहना है कि वरिष्ठ अधिवक्ता कमरुद्दीन से मिली जानकारी से ज्ञात हुआ कि यह आरती नसुरुद्दीन जोकि उन्ही के पूर्वज थे द्वारा लिखी गयी है. भले ही आज भी उनके खानदान में बदरुद्दीन नामक एक पौत्र है. मनोज रावत वरिष्ठ अधिवक्ता कमरुद्दीन से टेलीफोनिक वार्ता कि चर्चा करते हुए कहते हैं कि कमरुद्दीन ने उन्हें बताया कि एक बार वे विकट परिस्थितियों में ऐसे उलझ गए थे कि उन्हें कुछ सुझाई नहीं दे रहा था तब उनके सपने में पीताम्बर धारी ब्यक्ति आया और उसने उन्हें गायत्री मंत्र जाप करने को कहा. भला मुस्लिम परवरिश में पला बढ़ा मैं कैसे गायत्री मंत्र का जाप जानता. तब मैंने एक हिन्दू मित्र से इस सम्बन्ध में कहा कि वह मुझे गायत्री मंत्र सिखाये लेकिन उसने मेरा मजाक उड़ाया इसलिए मैं झिझक के मारे उस से लिखवा नहीं पाया. लेकिन जब दुसरे दिन भी वही पीताम्बरधारी फिर मेरे सपने में आये तब मैंने बहुत अर्ज करके उस से गायत्री मंत्र लिखवा ही लिया और जब मैंने उस मंत्र को पढ़ना शुरू किया तो मुझे लगा जैसे यह मंत्र वह पहले भी कई बार जाप चुका हो.
कमरुद्दीन ने यह भी बताया कि उनकी माँ कहती थी कि हमारा बूढा मालाजाप करता था. अब जबकि वे लोग पूर्णत: मुस्लिम व्यवहारों में ढळ गए हैं तब यह सब छूट गया है. लेकिन आज भी वे अपने वंशजों को विकास खंड कल्जीखाल के किमोली-फलद गाँव से आये मनु गौड़ ब्राह्मण की संतान मानते हैं.
यह तो सर्वथा सत्य है कि किमोली गाँव में गौड़ ब्राह्मण रहते हैं और यह भी कि फलद गाँव में खान मुस्लिम! जिनके गठजोड़ में धर्म से बाहर किये गए मनु गौड़ ने हिन्दू धर्म छोड़ा और मुस्लिम हो गए. भले ही यहाँ विधायक मनोज रावत बताते हैं कि वरिष्ठ अधिवक्ता कमरुद्दीन ने यह बताया था कि जहरीखाल में नौकरी कर रहे मनु गौड़ को क्षय रोग हो गया था जिस से घर वालों ने उन्हें गाँव से बेदखल कर दिया और जहरीखाल के ही एक खान परिवार ने उनकी देख रेख की. बाद में जिनकी लड़की से मनु गौड़ ने शादी कर ली. लेकिन गाँव किमोली असवालस्यूं क्षेत्र के बूढ़े बुजुर्ग भी वही बताते हैं जो मेरे पिताजी ने मुझे बचपन में बताया था कि उस युग में ब्राह्मण जाति का व्यक्ति यदि किसी अन्य जाति में शादी कर देता था तब उसे बेदखल कर दिया जाता था. मनु गौड़ ने तो फलदा गाँव की खान जाति की मुस्लिम युवती से शादी की थी.
बहरहाल बद्रीनाथ की आरती में मालगुजार ठा. धन सिंह का नाम लिखा होना भले ही प्रमाणिकता हो लेकिन पांडुलिपि में चिपकी चिप्पी थोड़ा बहुत तो संदेह पैदा करती ही है कि यह आरती क्या सचमुच एक ही ब्यक्ति द्वारा लिखी गयी थी. और अगर ऐसा था तब मालगुजार ठा. धन सिंह का नाम लोगों की जुबान पर क्यों नहीं था और ना ही नसुरुद्दीन का ! बदरुद्दीन को ही इस आरती का लेखक क्यों अब तक माना गया. अब यही शोध का बिषय है. लेकिन इतना तो तय है कि नंदप्रयाग में बसे ये मुस्लिम हिन्दू गौड़ ब्राह्मण मनु गौड़ की संतति हैं.उत्तराखंड: जानें भगवान बदरीनाथ की आरती किसने लिखी

उत्तराखंड: मंनोज इष्टवाल जी द्वारा शोध परक लेख:
अब सचमुच प्रश्न बड़ा विकट खड़ा हो गया है क्योंकि अभी तक हम सभी यही जानते समझते थे कि भगवान् बदरीनाथ की आरती नन्दप्रयाग के बदरुद्दीन ने लिखी है जो पोस्टमास्टर थे और होली के गीत इत्यादि भी गाया करते थे लेकिन हिंदुस्तान समूह के चमोली गढवाल प्रमुख वरिष्ठ पत्रकार क्रान्ति भट्ट की खोज की गयी पांडुलिपि ने इस बात पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है कि आखिर यह आरती लिखी तो लिखी किसने है?
पवन मंद सुगंध शीतल हेम मंदिर शोभितम…
नामक इस आरती के बारे में लिखने से पूर्व कुछ हैरतअंगेज खुलासे सामने आये हैं जो साबित करते हैं कि कर्णप्रयाग और वर्तमान में नंदप्रयाग में अवस्थित वह परिवार जन्मजात मुस्लिम नहीं था जिसे इस आरती से जोड़ा जाता है. मुझे बचपन का वह इत्तेफाक आज तब याद आ गया जब केदारनाथ विधायक व तहलका के पूर्व पत्रकार मनोज रावत से इस सम्बन्ध में लम्बी वार्ता हुई. तब उन्होंने बताया कि इन लोगों के पूर्वज गौड़ ब्राह्मण थे जो कल्जीखाल व्लाॅक जिला पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)के किमोली-फळदा गॉव से पथभ्रष्ट होकर यहाँ आ बसे हैं.
यकीनन यह सुनकर मुझे मेरा वह बचपन वापस आ गया जब मैंने बाल्यकाल में भीमल की सोटी से अपने पिताजी की मार खाई थी वह इसलिए कि मैं “ फळदा गॉव के किसी मुसाफिर को अन्य लड़कों के साथ गाँव के बड़े भाइयों के कहने पर यह कहकर चिढा रहा था – हे भुला हे भुला, कखो कु! बल फळदा कु! बल सिंग लीजा बळदा कु!”
( हे भाई हे भाई कहाँ का! बोले फळदा (गाँव का नाम). बोले सींग लेजा बैल का!
दरअसल हम इस बात से अनजान थे कि फलदा गाँव में मुस्लिम बाहुल्य जाति के लोग भी रहते हैं. और इसीलिए हमसे बड़े गाँव के भाई लोग उन्हें हमारे माध्यम चिढाने का इसलिए प्रयास कर रहे हैं कि वे गाय भैंस का मांस भक्षण करने वाले हैं.
मार खाने के बाद सांयकाल में पिताजी जब मरहम लगाने आये तो उन्होंने मुझे यह किस्सा सुनाया था कि फलदा गाँव जो कि हमारे ही विकास खंड कल्जीखाल में पड़ता है वहां खान जाति के मुसलमान रहते हैं और इस बात से चिढ़ते हैं जिसे तुम कह रहे हो. तब मैंने मासूमियत से पूछा था कि मुसलमान भी तो इंसान होते हैं फिर उनसे ऐसा भेदभाव क्यों! पिताजी ने कहानी सुनाते हुए कहा कि किमोली गाँव के हम ब्राह्मणों के ही कुल के एक पढ़े लिखे व्यक्ति हुए पंडित मनु गौड़ ! जिनका पूरा कुनवा बेहद शाकाहारी व पूजा पाठ वाला रहा ! उन्हें उस काल में खान जाति की एक खूबसूरत कन्या पसंद आ गयी और जब यह बात फैली तब उनके पिता ने उन्हें गाँव निकाला कर दिया. मनु गौड़ पढ़ा लिखा था इसलिए ब्रिटिश काल में अंग्रेजों के छावनी क्षेत्र जहरीखाल के पोस्ट ऑफिस में उनकी नौकरी लग गयी. बदनामी की आंच वहां तक पहुंची तब वे अपनी पत्नी को लेकर चमोली जिले में जा बसे.
केदारनाथ विधायक मनोज रावत से जब बदरीनाथ आरती पर चर्चा हुई तब उन्होंने जानकारी दी थी कि यह बात प्रकाश में आने के बाद कि बदरीनाथ भगवान् की आरती किसी मुस्लिम बदरुद्दीन ने लिखी है। उन्हें तहलका से फोन आया कि इस पर एक शोध पूर्ण लेख प्रस्तुत करो. उन्होंने बताया कि नन्दप्रयाग के बदरुद्दीन के परिवार के गयासुद्दीन और …से इस सम्बन्ध में जब उन्होंने जानकारी लेनी चाहि तब आधी अधूरी जानकारी मिली इसलिए मुंबई में उनके चचाजान कमरुद्दीन जो कि मुंबई हाई कोर्ट में सीनियर अधिवक्ता थे उन्होंने बताया कि उनके पूर्वज पौड़ी में कल्जीखाल के पास किमोली फलदा से आकर पहले चमोली बसे फिर नन्दप्रयाग जो कि पूर्व में गौड़ ब्राह्मण थे।आज भी उनकी वंशावली मनुगौड़ के नाम से शुरू होती है.
तार से तार जुड़े और चमत्कार हो गया. जो कहानी मेरे पिताजी ने बाल्यकाल में मुझे सुनाई थी वह लगभग एक सी प्रतीत होती है.क्योंकि आज भी असवालस्यूं पट्टी के किमोली गाँव में गौड़ ब्राह्मण हैं व फलदा गाँव में खान मुसलमान! यानि सचमुच ही बदरुद्दीन के पूर्वज गौड़ ब्राह्मण थे!
वरिष्ठ पत्रकार क्रान्ति भट्ट द्वारा बदरीनाथ की आरती सम्बन्धी पांडुलिपि ने जहाँ यह प्रश्न खड़ा कर दिया है कि क्या यह आरती सतेराखाल के ठाकुर मालगुजार धन सिंह जी ने 1889 में लिखा । जिसमें संवत् भी अंकित है। आखिर क्या है वास्तविकता !
वहीँ विधायक मनोज रावत कहते हैं कि उनके पास हो सकता है आज भी वह आवाज रिकॉर्ड हो जिसमें मनु गौड़ के पौत्र वयोवृद्ध अधिवक्ता कम्रुद्द्दीन की एक घंटा हुई वार्ता रिकॉर्ड है जिसमें उन्होंने कहा है कि चमोली बसने के कुछ समय बाद ही मनु गौड़ के दो पुत्र जो कि मुस्लिम माँ होने के बाद बदरुद्दीन और नसुरुद्दीन कहलाये बदरुद्दीन पोस्ट मास्टर बन गए जबकि नसुरुद्दीन दिन भर भटकते रहते थे. और उन्हीं ने यह आरती लिखी है.
प्रश्न अभी भी मुंह उठाये वहीें खड़ा है कि आखिर आरती लिखी किसने है. प्रथम दृष्टया तो लगता है कि आरती सतेराखाल के ठाकुर मालगुजार धन सिंह जी ने 1889 में लिखा । लेकिन उस पांडुलिपि के अंत में एक सपोर्टिंग कागज़ पांडुलिपि पर अलग से कागज़ चिपकाकर उसमें कुछ मिटाने की कोशिश की है. ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि उस दौर में जब यह आरती आम चलन में आई और प्रसिद्ध हो गयी तब इसके नामों में छेड़छाड़ की गयी या फिर सचमुच यह आरती मालगुजार ठा. धन सिंह द्वारा लिखी गयी है. अगर ऐसा है तो उसकी धुन तैयार किसने की!
यहाँ प्रमाणिकता को आधारभूत मानकर कहा जाय तो आरती लिखना व उसे स्वरबद्ध करना सिर्फ एक व्यक्ति का कार्य नहीं हो सकता. क्योंकि आरती शुरूआती दौर पर राधेश्याम धुन पर प्रचलन में आई जोकि गढ़वाली रामलीलाओं में गाई बजाई जाती है.
मनु गौड़ के पुत्र बदरुद्दीन जो कि पोस्ट ऑफिस में पोस्ट मास्टर थे तब हिन्दू लोक त्यौहारों में बढ़चढ़कर हिस्सा लेते थे और रामलीला में संगीत मास्टर का कार्य भी करते थे. हो न हो इसकी धुन कम्पोज करने के कारण यह आरती उन्हीं की लिखी कहलाई हो ?
लेकिन केदार नाथ विधायक मनोज रावत का कहना है कि वरिष्ठ अधिवक्ता कमरुद्दीन से मिली जानकारी से ज्ञात हुआ कि यह आरती नसुरुद्दीन जोकि उन्ही के पूर्वज थे द्वारा लिखी गयी है. भले ही आज भी उनके खानदान में बदरुद्दीन नामक एक पौत्र है. मनोज रावत वरिष्ठ अधिवक्ता कमरुद्दीन से टेलीफोनिक वार्ता कि चर्चा करते हुए कहते हैं कि कमरुद्दीन ने उन्हें बताया कि एक बार वे विकट परिस्थितियों में ऐसे उलझ गए थे कि उन्हें कुछ सुझाई नहीं दे रहा था तब उनके सपने में पीताम्बर धारी ब्यक्ति आया और उसने उन्हें गायत्री मंत्र जाप करने को कहा. भला मुस्लिम परवरिश में पला बढ़ा मैं कैसे गायत्री मंत्र का जाप जानता. तब मैंने एक हिन्दू मित्र से इस सम्बन्ध में कहा कि वह मुझे गायत्री मंत्र सिखाये लेकिन उसने मेरा मजाक उड़ाया इसलिए मैं झिझक के मारे उस से लिखवा नहीं पाया. लेकिन जब दुसरे दिन भी वही पीताम्बरधारी फिर मेरे सपने में आये तब मैंने बहुत अर्ज करके उस से गायत्री मंत्र लिखवा ही लिया और जब मैंने उस मंत्र को पढ़ना शुरू किया तो मुझे लगा जैसे यह मंत्र वह पहले भी कई बार जाप चुका हो.
कमरुद्दीन ने यह भी बताया कि उनकी माँ कहती थी कि हमारा बूढा मालाजाप करता था. अब जबकि वे लोग पूर्णत: मुस्लिम व्यवहारों में ढळ गए हैं तब यह सब छूट गया है. लेकिन आज भी वे अपने वंशजों को विकास खंड कल्जीखाल के किमोली-फलद गाँव से आये मनु गौड़ ब्राह्मण की संतान मानते हैं.
यह तो सर्वथा सत्य है कि किमोली गाँव में गौड़ ब्राह्मण रहते हैं और यह भी कि फलद गाँव में खान मुस्लिम! जिनके गठजोड़ में धर्म से बाहर किये गए मनु गौड़ ने हिन्दू धर्म छोड़ा और मुस्लिम हो गए. भले ही यहाँ विधायक मनोज रावत बताते हैं कि वरिष्ठ अधिवक्ता कमरुद्दीन ने यह बताया था कि जहरीखाल में नौकरी कर रहे मनु गौड़ को क्षय रोग हो गया था जिस से घर वालों ने उन्हें गाँव से बेदखल कर दिया और जहरीखाल के ही एक खान परिवार ने उनकी देख रेख की. बाद में जिनकी लड़की से मनु गौड़ ने शादी कर ली. लेकिन गाँव किमोली असवालस्यूं क्षेत्र के बूढ़े बुजुर्ग भी वही बताते हैं जो मेरे पिताजी ने मुझे बचपन में बताया था कि उस युग में ब्राह्मण जाति का व्यक्ति यदि किसी अन्य जाति में शादी कर देता था तब उसे बेदखल कर दिया जाता था. मनु गौड़ ने तो फलदा गाँव की खान जाति की मुस्लिम युवती से शादी की थी.
बहरहाल बद्रीनाथ की आरती में मालगुजार ठा. धन सिंह का नाम लिखा होना भले ही प्रमाणिकता हो लेकिन पांडुलिपि में चिपकी चिप्पी थोड़ा बहुत तो संदेह पैदा करती ही है कि यह आरती क्या सचमुच एक ही ब्यक्ति द्वारा लिखी गयी थी. और अगर ऐसा था तब मालगुजार ठा. धन सिंह का नाम लोगों की जुबान पर क्यों नहीं था और ना ही नसुरुद्दीन का ! बदरुद्दीन को ही इस आरती का लेखक क्यों अब तक माना गया. अब यही शोध का बिषय है. लेकिन इतना तो तय है कि नंदप्रयाग में बसे ये मुस्लिम हिन्दू गौड़ ब्राह्मण मनु गौड़ की संतति हैं.

साभार-मंनोज इष्टवाल जी द्वारा शोध परक लेख

-पौड़ी से इन्द्रजीत सिंह असवाल

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