उत्तराखंड ! गैरसैण के साथ पहाड के अन्य ज्वलंत मुद्दों पर 7 अप्रैल काे हल्द्वानी में बैठक

उत्तराखंड/पौड़ी गढ़वाल-गैरसैण स्थाई राजधानी संघर्ष समिति व समन्वय समित का उत्तराखंड के क्रान्तिकारियाें काे अभिवादन. जैसा आप सभी जानते हैं आजकल पूरा पहाड़ स्थायी राजधानी के सवाल पर मुखर है। गैरसैंण में लंबे समय तक आंदोलन-अनशन के साथ पिछले दिनों विधानसभा का घेराव, बंद, चक्का जाम के अलावा कई कार्यक्रम किये गये। सरकार ने जनता की इस बैचेनी को समझने के बजाय लगातार उलझाने की कोशिश की है। हमारा आंदोलन जारी है। गैरसैंण को स्थायी राजधानी घोषित किये जाने तक जारी रहेगा। इसमें लगातार लोग जुड़ने लगे हैं। पहाड़ की जनता गैरसैंण के आलोक में उत्तराखंड के उन तमाम सवालों का उत्तर भी खोजने लगी है जिन्होंने पिछले 18 सालों में यहां जनविरोधी नीतियों के चलते लोगों को पहाड़ से खदेड़ने को मजबूर किया है। जनता इस बात को समझने लगी है कि गैरसैंण विकास के विकेन्द्रीकरण का रास्ता है। इसे पाने के लिये हमें गैरसैंण के साथ उन सभी सवालों के हल ढूंढने होंगे जो इस पहाड़ी राज्य की अस्मिता के साथ जुड़े हैं। पिछले महीने 10-11 मार्च को गैरसैंण में इन्हीं बातों को लेकर एक महापंचायत हुई थी। इसमें तय किया गया था कि गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने और इसके आलोक में बेहतर राज्य के सपने को पूरा करने के लिये पूरे राज्य में अभियान चलाया जाना चाहिये। इसके लिये समान विचारधारा वाले दलों, संगठनों और व्यक्तियों के बीच संवाद कर एक साथ चलने का रास्ता निकाला जाना चाहिये। इसके समन्वय की जिम्मेदारी गैरसैंण आंदोलन से जुड़े पत्रकार साथी चारु तिवारी को सौंपी गई। इसके संरक्षक जनसरोकारों से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और नैनीताल समाचार के संपादक राजीवलोचन शाह बनाये गये। इस बीच गैरसैंण में आंदोलन तेज हो गया। हम सब लोग वहीं लगे रहे। इस समन्वय समिति के लिये जो बैठक होनी थी वह नहीं हो पायी। समन्वय समिति को विस्तार देने के लिये एक बैठक का आयोजन दिनांक 7 अप्रेल, 2018 (शनिवार) को हल्द्वानी में किया गया है। इस बैठक में उत्तराखंड के जनपक्षीय मुद्दों को संगठनात्मक रूप से आगे ले जाने पर विचार किया जायेगा। इस बैठक में आपकी उपस्थिति प्रार्थनीय है।
बैठक में निम्न मुद्दों पर व्यापक आंदोलन चलाने के लिये विचार-विमर्श किया जायेगा-

1. स्थायी राजधानी गैरसैंण के लिये आंदोलन की रणनीति।

2. उत्तराखंड के जमीनों को बचाने के लिये धारा- 371 और हिमाचल की तर्ज पर भूमि कानून की धारा-18 को लागू किया जाये।

3. उत्तराखंड की जमीनों की पैमाइश कर ठोस भू-प्रबंधन कानून लाया जाये।

4. राज्य में संविधान के 73वें और 74वें संशोधन के अनुसार ठोस पंचायतीराज एक्ट आना चाहिये, जिसमें ग्राम सरकार की कल्पना साकार की जा सके।

5. राज्य में लोकसभा और विधानसभा का परिसीमन जनसंख्या की जगह क्षेत्रफल के आधार पर किया जाये। उत्तराखंड में कम से कम 106 विधानसभा सीटें होनी चाहिये।

6. राज्य में जिलों का नया परिसीमन कर नये जिले सृजित किये जायें।

7. प्राकृतिक संसाधनों पर पहला अधिकार स्थानीय लोगों का होना चाहिये।

8. बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं को तुरंत बंद किया जाये और पंचेश्वर जैसे विनाशकारी बांधों को बनने से रोका जाय।

9. राज्य में लगातार बंद हो रहे स्कूलों और पीपीपी मोड पर दिये जा रहे अस्पतालों की नीति तुरंत बंद होनी चाहिये। शिक्षा और स्वास्थ्य के लिये मानकों की आड़ में जनता से छल बंद होना चाहिये।

10. राज्य में राजस्व के नाम पर शराब को बढावा देने वाली नीति का विरोध।

इन मुद्दों के अलावा और भी सवालों पर बातचीत होगी।

साथियो, राज्य बनने के इन 18 सालों में जिस तरह सत्तासीन लोगों ने हमारे सपनों पर तुषारापात किया है, उसका प्रतिकार करने का समय आ गया है। इन तमाम समस्याओं और पलायन का कारण नीतिजनित है। इसका समाधान भी नीतियों से ही होगा। दुर्भाग्य से नीतियों के अभाव में लगातार पहाड़ खाली हो रहे हैं। एक तरह से पहाड़ हमारे हाथ से निकल रहा है। पहाड़ की अस्मिता के साथ नई चुनौतियां खड़ी हो गयी हैं। वे तनकर और मजबूती के साथ हमारे अस्तित्व को लीलने के लिये घात लगा रही हैं। हमें पहाड़ से खदेड़ने के पूरे इंतजाम किये जा रहे हैं। एक बार हम सब लोगों को खुली आंखों और संवेदनशीलता के साथ पहाड़ को देखने की जरूरत है। पहाड़ की पीड़ा को समझना होगा और उसे इस हालात में ले जाने वालों को चिन्हित भी करना होगा। इसके लिये हमें एक साथ नीतियों और संघर्ष में कुछ समय साथ चलना होगा। ऐसा किया जा सकता है। तो आइये, हल्द्वानी में बैठकर इन तमाम सवालों से लड़ने का रास्ता निकालते हैं। पहाड़ के लोगों में जिस तरह की बैचेनी है उसे समझते हुये उत्तराखंड के नवर्निर्माण की लड़ाई को शुरू करना ही होगा। एकता और समझ के साथ।

सहयाेग: माेहित

– पौड़ी गढ़वाल से इंद्रजीत सिंह असवाल

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