उत्तराखंड जनपद अल्मोड़ा का बिनसर महादेव शिव मंदिर- अल्मोड़ा शहर से लगभग ३४ किलोमीटर दूर समुद्र तल से लगभग २४१२ मीटर की उंचाई पर स्थित यह विश्व प्रसिद्ध देवालय देवों के देव महादेव को समर्पित है। इतिहासकारों के अनुसार बिनसर या वीरणेश्वर उत्तराखंड के नाग और पौरव शासकों का कुल देवता था जिसे अनंत नाग का अवतार माना जाता है। स्कन्द पुराण के मानस खंड के वीरणेश्वर माहात्म्य में उल्लेख है कि आदि काल में जब ऋषि विश्वामित्र की बड़ी बहिन सत्यवती सशरीर स्वर्ग गई तो वह लोक कल्याण की भावना से प्रेरित होकर महा नदी कौशिकी या कोसी के रूप में अवतरित हुई। कोसी नदी के तट पर विश्वामित्र के आश्रम और बिनसर महादेव का उल्लेख महाभारत के वन पर्व में भी किया गया है।
११वीं से १८वीं शताब्दी तक यह चन्द राजाओं की राजधानी रहा था। चन्द शासक कल्याण चन्द चतुर्थ ने इसे अपना ग्रीष्म कालीन आवास बनाया और यहां 45 फिट ऊँचे भव्य शिवालय का निर्माण करवाया। इसके समीप ही 46 वर्ग किलोमीटर में विस्तृत बिनसर वन्य जीव विहार या अभयारण्य स्थित है। बिनसर गढ़वाली भाषा का शब्द है- जिसका अर्थ नव प्रभात या नई सुबह है। यहां से अल्मोड़ा शहर का अत्यंत मनोरम दृश्य, कुमाऊं की पहाडियां और हिमालय की हिमाच्छादित धवल पर्वत चोटियां दिखाई देतीे हैं। बिनसर महादेव से हिमालय की केदारनाथ, चौखंबा, त्रिशूल, नंदा देवी, नंदाकोट और पंचाचूली चोटियों की ३०० किलोमीटर विस्तृत श्रृंखला दिखाई देती है।
बिनसर महादेव मंदिर चारों तरफ से घने देवदार के वनों से घिरा हुआ है। मंदिर के गर्भगृह में शिव पुत्र भगवान गणेश, गौरी और महेशमर्दिनी की प्रतिमा स्थापित है। महेशमर्दिनी की प्रतिमा पर मुद्रित देवनागरी लिपि में मंदिर का संबंध नौवीं शताब्दी से बताया गया है। यहां हर साल जून के महीने में बैकुंठ चतुर्दशी के अवसर पर मेला लगता है। मेले में महिलाएं पूरी रात भर अपने हाथ में दिए लेकर सन्तान प्राप्ति के लिए आराधना करती हैं। माना जाता है कि श्री बिनसर महादेव अपने सच्चे भक्तों की मनोकामना अवश्य पूरी करते हैं।
-पौड़ी से इन्द्रजीत सिंह असवाल की रिपोर्ट