आमजन के साथ साथ राजनीतिक दलों को भी गंभीरता से सोचने की जरूरत

रूड़की/हरिद्वार- कोरोना की दूसरी लहर के धीमी पड़ते ही फिर से वही मनमानियां और लापरवाहियां देखी जाने लगी हैं जो पहली लहर के बाद देखी गई थी!तब बाजारों सार्वजनिक स्थानों सार्वजनिक वाहनों शादी ब्याह आदि में लोगों ने जरूरी एहतियाती उपायों पर अमल करना बंद कर दिया था इस बार भी वैसा ही होने लगा है! अब सारे बाजार खुल गए हैं साप्ताहिक मंडियां भी लगने लगी हैं सार्वजनिक वाहन पूरी संख्या के साथ चलने लगे हैं इसमें हाथ धोते रहने नाक मुंह ढंकने तक की जरूरत बहुत सारे लोग नहीं समझते अनेक लोग अब भी कोरोनारोधी टीका लगवाने को लेकर संशय में हैं ऐसे में सरकार की चिंता समझी जा सकती है व्यावसायिक गतिविधियों और लोगों के रोजमर्रा के कामकाज को लंबे समय तक रोक कर संक्रमण पर काबू पाने का प्रयास व्यावहारिक नहीं कहा जा सकता लोगों को खुद अपनी सेहत और जीवन को संकट में पड़ने से बचाने को लेकर सतर्क रहना होगा हर व्यक्ति केवल अपनी चिंता करने लगे तो इस समस्या को रोकने में बड़ी कामयाबी मिल सकती है
मगर लोगों में व्यक्तिगत जागरूकता बनाए रखने के साथ साथ ऐसे आयोजनों पर भी नियंत्रण रखने की जरूरत से इनकार नहीं किया जा सकता जिनसे अर्थव्यवस्था पर सीधा कोई असर नहीं पड़ता खासकर राजनीतिक दलों को इस मामले में गंभीरता से सोचने की जरूरत है कि वे जिस तरह अपना शक्ति प्रदर्शन करने के लिए रैलियां निकालते हैं उससे संक्रमण के प्रसार की अशंका बनी रहती है पिछले दिनों विपक्षी दलों ने कई बार रैलियां अयोजित की। अभी भाजपा देश भर में जन आशीर्वाद यात्रा निकाल रही है जिसमें भारी संख्या में लोग जुट रहे हैं
जिन राज्यों में विधानसभा के चुनाव हैं वहां भी रैलियों का सिलसिला बढ़ता जा रहा है पश्चिम बंगाल विधानसभा और उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनावों का अनुभव अभी लोग भूले नहीं हैं ऐसी राजनीतिक गतिविधियों में लोगों का एक से दूसरे राज्यों में लगातार आना जाना लगा रहता है जिसमें कोरोनोचित व्यवहार की परवाह तक नहीं की जाती इसलिए तीसरी लहर के खतरों को भांपते हुए न केवल आम लोगों बल्कि राजनीतिक दलों पर भी कोरोना नियमों के पालन का कठोर दबाव बने रहना चाहिए।

– रूड़की से इरफान अहमद

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