हरिद्वार- गंगा-यमुना के दोआब में स्थित गंगोह शरीफ सूफी-संतों की बदौलत पूरे विश्व को सौहार्द का संदेश देता रहा है। संत बाबा हरि दास और कुतबे आलम गंगोही ने यहीं से समूची दुनिया को इंसानियत का संदेश दिया। माना जाता है कि इनके दरबार से कोई खाली हाथ नहीं जाता। उर्स में बडी संख्या में हिन्दू, सिख व मुस्लिम आते है।
हजरत कुतबे आलम का उर्स 21 जमादी उस्सानी से 25 तक चलता है। इस बार उर्स 10 से 14 मार्च तक चलेगा। शनिवार की देर सायं को कुलशरीफ का आयोजन होगा, इसके बाद शाहअता मंजिल में महफिलें कव्वाली होगी, तमाम दरगाहों को रोशन किया जायेगा। शनिवार की रात में ही हजरत मामू आलाबख्श के आका शेख मौ. सादिक साहब की दरगाह पर सज्जादानशीं इरशाद रब्बानी के जेरे साया सरकारी चादर चढाई जायेगी। 11 मार्च रविवार को अता मंिजल से जुलूस चादर शरीफ लेकर सज्जादानशीं हकीम शाह जफर कुद्दुसी साबरी व नायब सज्जादानशीं आशिम कुद्दुसी दरगाह तक पहुंचेंगे। 12 मार्च को उर्स की मुख्य रस्म जुलूस जुब्बा शरीफ और 13 को हजरत कुतबे आलम के सज्जादानशीं शाह मेहताब आलम तबर्रुकात की जियारत करायेंगे। 14 मार्च को कलौंजी कलेवा वितरण के साथ उर्स सम्पन्न होगा।
संत हरिदास और हजरत कुतबे आलम ने केवल अध्यात्म का ही संदेश नहीं दिया वरन प्रेम, आपसी भाईचारे और साम्प्रदायिक सौहार्द की शिक्षा भी दी। सूफी संतों की मेहरबानी रही कि गदर के दौरान भी यहां का सांप्रदायिक सद्भाव तोडा़ नहीं जा सका। हजरत कुतबे आलम व संत बाबा हरिदास ने लगभग 13 वर्ष तक एक साथ गुजारे। दोनों में रूहानी रिश्ता था। कहते हैं कि हजरत कुतबे आलम अपने जन्मस्थल से अनेक स्थानों की भूमि को पवित्र करते हुए गंगोह आये और बाबा भी अनेक स्थानों पर रहे। सूफी संतों के ढेरों तबर्रुकात यहां संग्रहीत हैं। हजरत कुतबे आलम की लिखी कुरान शरीफ भी यहां है। इब्राहीम लोदी, बाबर व हुमायूं जैसे बादशाह भी उनके मुरीद थे और यहां हाजरी भरने आते थे। हजरत कुतबे आलम का मजार भी हुमायूं ने बनवाया था। उर्स में आये जायरीन जहां हजरत की दरगाह पर हाजरी देकर जियारत करते हैं, वहीं बाबा हरिदास के दर्शन करने जाते हैं। जहां जायरीन हजरत के दरबार में मत्था टेकने पहुंचते हैं, वहीं बाबा के दरबार में पहुंचकर हर वर्ष धर्म ध्वज स्थापित करते हैं।
हजरत कुतबे आलम का जन्म 860 हिजरी (सन 1439 ई.) में बाराबंकी के गांव रादौली में हुआ था। 33 वर्ष यहां रहकर वह 38 वर्ष शाहबाद मार्कंडा (हरियाणा) में रहे तथा शेष 14 वर्ष गंगोह में बिताए। इनका इंतकाल 84 वर्ष की आयु में सन 1523 में हुआ। अंतिम क्षणों में यह अस्वस्थ हो गये, लेकिन इबादत नहीं छोड़ी और नमाज अदा करते हुए शरीर पूरा हो गया। बाबा हरिदास के जन्म के बारे में कोई पुख्ता जानकारी तो नहीं है लेकिन बताते हैं कि इनका जन्म वृंदावन में हुआ था तथा यहां के गांव मैनपुरा में ब्रहमलीन हो गए। हजरत कुतबे आलम बचपन से ही धार्मिक थे। शिक्षा व ज्ञान में इनकी बेहद रुचि थी। हजरत मखदूम साबिर कलियरी के जलाल को जमाल में बदलना इनका बड़ा कारनामा था।
-तसलीम अहमद,हरिद्वार