बेटे के जिले का पुलिस मुखिया होने के बावजूद एसएसपी अभिषेक यादव के माता-पिता गुड़गांव में स्वयं ही खाना बनाकर खाने को मजबूर हैं। लॉकडाउन के दौरान बुजुर्ग मां-बाप का अकेले रहना उन संस्कारों की मजबूती है, जो उन्होंने अपने बेटे को दिए। जब सब अपनों से मिलने का कोई न कोई रास्ता तलाश रहे हैं, उस समय जिले का पुलिस मुखिया होने के बावजूद एसएसपी सुबह-शाम फोन पर ही अपने मां-बाप की कुशलता पूछ कर लाखों लोगों की ओर से कोरोना के खिलाफ जंग लड़ रहे हैं।
जिला कोरोना वायरस के हमले को झेल रहा है। इस जंग में सबसे आगे आकर पुलिस ने मोर्चा संभाला हुआ है। संक्रमण के मोर्चे पर जंग का नेतृत्व एसएसपी अभिषेक यादव कर रहे हैं। कोरोना से अलग तरीके की जंग लड़ रहे एसएसपी जनपद के करीब 33 लाख लोगों को इस महामारी से बचाने में सफल रहे हैं। आखिर इस समर्पण, कर्तव्य परायणता और अनुशासन के संस्कार उन्हें कहां से मिले? जाहिर है जिस भट्ठी में यह लोहा तपकर कुंदन बना वो है एमएस यादव दंपती। पिता एमएस यादव व माता ने अभिषेक को कर्तव्य पालन का पाठ पढ़ाया। आम तौर से अभिषेक यादव अपने माता-पिता को साथ ही रखते हैं, लेकिन 24 मार्च को जब प्रधानमंत्री ने लॉकडाउन की घोषणा की तो वे दोनों बुजुर्ग गुड़गांव स्थित अपने निवास पर थे। जिले का पुलिस मुखिया होने के नाते एसएसपी अभिषेक यादव के लिए यह बहुत आसान था कि लॉकडाउन के दौरान गुड़गांव में फंसे अपने माता-पिता को अपने पास बुला लेते। उनकी गाड़ी शायद ही कहीं रुक पाती, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। इसके पीछे मां-बाप की दी हुई वह सीख थी जो उन्हें आज भी नियम, अनुशासन तथा कर्तव्य का अहसास कराती है। लॉकडाउन के दौरान मां-बाप के गुड़गांव में फंसे होने के सवाल पर एसएसपी कहते हैं कि पहले दिन से ही उनके पास हजारों लोग फोन पर अपने बच्चों, मां-बाप तथा रिश्तेदारों के दूसरे शहरों में फंसे होने की बात कह चुके हैं, लेकिन उन्होंने नियम व परिस्थिति के आधार पर ही कोई भी अनुमति दी। उन्होंने बताया कि गुड़गांव में अकेले ही रहने को मजबूर उनके मां-बाप ने ही उन्हें ऐसे ही संस्कार दिए। सवाल करते हैं कि यदि अपने मां-बाप को परेशान देख वह उन्हें गुड़गांव से बुला लेते तो अपने जनपद के लोगों से लॉकडाउन का पालन किस आधार पर करा पाते