बाड़मेर/राजस्थान- बहरहाल बाड़मेर से विधायक हैं मेवाराम जैन और पिछले पन्द्रह बीस बरसों से यहां उनका एकछत्र मेवा राज है ये बात मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी आदर्श स्टेडियम में कई बार स्वीकार कर चुके हैं। राज्य में सरकार चाहे बीजेपी की आए या कांग्रेस की, सरकार विरोधी लहर ही क्यों ना हो या फिर देश भर की मोदी लहर, मेवाराम जैन कांग्रेस के उन मुठ्ठी भर नेताओं में से एक हैं जो अपनी सीट विधानसभा चुनावों में सबसे पहले ही मतगणनाओ के दौरान लगातार निकाल रहे हैं। पड़ोसी जिले जैसलमेर के उलट यहां जिला परिषद से लेकर नगर परिषद तक सब जगहों पर मेवाराम की ही सरकारें हैं। देसी मनोविज्ञान तकनीक को बहुत अच्छे से समझते हैं। ऐसा नहीं है कि लोगों को उनसे छोटी बड़ी शिकायतें नहीं हैं। लेकिन किसकी शिकायत को कब और कैसे दूर करना है, यह मेवाराम जैन को अच्छे से आता है। बाड़मेर जिले सहित अन्य विधानसभाओं के जागरूक लोग कहते हैं- मेवाराम जैन को चुनाव लड़ना आता है। पैसा खर्च करना भी आता है। कहां खर्च करना है, यह भी उन्हें पता है। इन सबके इतर जातीय समीकरण कुछ इस तरह मेवाराम के पक्ष में हैं कि अपनी जाति के महज दो फीसदी वोटों के बावजूद वे बहुत सारी जातियों के वोटों के बूते हर बार अपनी जीत परिणामों के दौरान सबसे पहले ही दर्ज करते हैं। उनको जिताने वाले दूसरे समाजों के लोग ही हैं। मेवाराम जैन की राजनीति का उदय उस दौर में हुआ जब बाड़मेर में तेल का उत्पादन शुरू होने वाला था और यही समय था जब बाड़मेर समृद्धि की अंगड़ाई ले रहा था। 2008 के चुनाव में कांग्रेस के मेवाराम जैन ने बीजेपी की मृदुरेखा चौधरी को 24044 वोटों से हराया। इसी वर्ष प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनकर आई थी। 2013 का चुनाव कांग्रेस के लिहाज से बहुत कठिन था, महज इक्कीस सीटें आई थीं। इस बार बीजेपी ने उनके सामने डॉ.प्रियंका चौधरी को उतारा तो 2008 में हारीं डॉ.मृदुरेखा चौधरी ने राजनीतिक उतार चढ़ाव में आकर निर्दलीय ताल ठोक दी और बीजेपी के 19518 वोट काट दिए। मेवाराम का काम इसी से बन गया और वे करीब
छह हजार वोटों से दुबारा बाड़मेर की जनता के लिए चुन लिए गए। 2018 का चुनाव मेवाराम जैन के लिए अत्यंत आसान हो गया था। इस चुनाव में मेवाराम ने बीजेपी के दिग्गज कर्नल सोनाराम चौधरी को लगभग 33047 वोटों से हराया था। इसकी कहानी यह थी कि 2014 के लोकसभा चुनावों में कर्नल सोनाराम चौधरी को कांग्रेस से बीजेपी में लाकर पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह के सामने मैदान में उतारा गया था। मोदी लहर में उन्होंने जसवंत सिंह को चुनाव हरा दिया था। राजपूत वोटर्स ने 2018 के चुनाव में कर्नल सोनाराम चौधरी की करारी हार सुनिश्चित करने के लिए उमड़कर वोटिंग की। अब फिर चुनाव हैं और तीन चुनाव लगातार जीतने के बाद जहां मेवाराम जैन को जीत को लेकर चिंतित होना चाहिए, वहां चिंता की लकीरें बीजेपी के माथे पर तो स्पष्ट दिखती हैं।
बाड़मेर का नाम अग्रेजी के बी अक्षर से शुरू होता है लेकिन यहां सीडी और फिर ईडी ये नाम आजकल भाजपाई नेताओं की लगभग सभी प्रेस कॉन्फ्रेंस और बाड़मेर दौरे की यात्राओं में छोटे बड़े नेताओं द्वारा ये कहकर ही चर्चाओं के बाजार में अपने आप को मशहूर करने में लगे रहते हैं। भाजपाई नेताओं के अनुसार एक ऐसी सीडी की चर्चा यहां काफी पहले से है जो किसी ने भी आजतक नहीं देखी है लेकिन केंद्रीय मंत्री गजेंद्रसिंह शेखावत के पिछले दिनों बाड़मेर जिले के प्रवास के दौरान दिए गए ओजस्वी भाषणों से लगता है कि कोई सीडी कभी भी आ सकती है और ईडी तो वे चाहें तो कभी भी बाड़मेर आ ही सकती है। हालांकि अब सरकार बनाने के लिए विधानसभा चुनाव सिर पर हैं और अभी तक कुछ भी जादू के पिटारे से बाहर आया नहीं है। फिर भी बडे़ बड़े नेताओं और मंत्रीजी बोलकर गए हैं तो लोगों को लगता है कुछ न कुछ तो जरूर आएगा। सियासत और सीडीओ का मारवाड़ का पुराना संबंध रहा है इसलिए लोग अक्सर चुनावों की चर्चाओं के बीच सीडी को जरूर गाहे बगाहे ले ही आते हैं।
बीजेपी आलाकमान इस बार यहां केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री कैलाश चौधरी को मेवा राम जैन के सामने उतारने की सोच रही है। मेवाराम के खेमे को इसमें भी संभावनाएं दिखती है। अगर कैलाश चौधरी को टिकट दिया जाता है तो टिकट से वंचित प्रियंका चौधरी, मृदुरेखा चौधरी और कर्नल सोनाराम तीन पूर्व प्रत्याशी हो जाएंगे और किसी न किसी एक की बगावत से मेवाराम जैन का काम वैसे ही बन जाएगा। हालांकि बीजेपी नेताओं को उम्मीद है कि कैलाश चौधरी के कद को देखते हुए कोई बागी नहीं होगा लेकिन बगावत की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। बहरहाल, मेवाराम जैन एक सेफ जोन में हैं। उनकी चिंताएं शायद दूसरी ही हैं जो कहीं मतदाताओं को दिखती नहीं हैं।
– राजस्थान से राजूचारण