नेकी के लिए कुर्बानी की सीख देती बकरीद

बरेली। बकरीद (ईद-उल-अजहा) मुसलमानों का प्रमुख पर्व है। इस्लामी साल के दो ईद में से एक बकरीद है, उसे बड़ी ईद भी कहा जाता है जो हज की समाप्ति पर मनाया जाता है। इसे कुर्बानी का पर्व भी कहा जाता है। कुर्बानी का अर्थ रक्षा के लिए सदा तत्पर रहना है। अल्लाह की राह पर अपनी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी दी जाती है। इसका आशय यही है कि नेकी और भलाई के लिए अगर किसी भी प्रकार की कुर्बानी देने की जरूरत पड़ी, तो कुर्बानी देनी चाहिए। हजरत पैगंबर का भी यही आदेश है कि कोई व्यक्ति जिस परिवार, समाज व देश में रहता है। उसकी रक्षा करना धर्म है। इस्लाम धर्म लोगों को नेकी और भलाई का रास्ता दिखाता है। आसमान और जमीन का पैदा करने वाला वही सबसे बड़ा हाकिम और पालनहार है। उसी के कब्जे में सब कुछ है। हमारा मरना जीना सब अल्लाह के लिए ही है। खुदा ने मुहब्बत के रंग में रंग कर दुनिया बनाई, उसमें खुशियों के फूल खिला कर अपनी नेमतों से नवाजा। खुदा ने इंसानों की खुशी के लिए जमीन बनाई। पेड़ पौधे फल फूल और खाने पीने न जाने कितनी चीजें बनाई। उसने जज्बात बनाये ताकि इंसान जेहानी तौर पर खुश रहे। लेकिन इतना कुछ पाकर भी इंसान दुखी है। उसके जिस्म से लेकर रूह तक पर ख्वाहिशों के खराशे हैं। वह जितना ख्वाहिशों के पीछे दौड़ता है उतना ही दुखी होता है। काश वह जानता कि ख्वाहिशों की कुर्बानी में ही खुशी की बेशुमार दौलत है। बकरीद का त्योहार इन्हीं ख्वाहिशों की कुर्बानी देकर जिंदगी में खुशियों के रंग घोलने का प्रतीक है। ईद-उल-अजहा इस्लामी कैलेंडर हिजरी के आखिरी महीने यानी जिलहिज्जा की दसवीं तारीख की मनाई जाती है। हज का मुख्य कार्यक्रम जिलहिज्जा की आठ तारीख से शुरू होकर 5 दिन यानि 12 जिलहिज्जा तक चलता है। 10, 11 और 12 जिलहज्जा को मखसूस शर्तों के साथ अल्लाह की रजा के लिए जानवर काटने को कुर्बानी कहते हैं। दरगाह आला हजरत सुन्नी मरकाजी दारुल इफ्ता के मुफ्ती अब्दुरहीम नश्तर फारुकी ने कहा हदी से पाक में है कुर्बानी के दिनों में अल्लाह के नजदीक कुर्बानी से ज्यादा महबूब कोई अमल नहीं, एक और हदीसे पाक में आया है कि कुर्बानी के लिए जो रकम जानवर पर खर्च होती है। उससे अफजल कोई रकम नहीं। सहाबा एकराम ने पूछा या रसूल अल्लाह कुर्बानी की क्या हकीकत है। हुजूर ने इरशाद फरमाया यह तुम्हारे वालिद हजरत इब्राहिम की सुन्नत है। सहाबा इकराम ने फिर पूछा। हमें इस पर क्या मिलेगा। हुजूर ने इरशाद फरमाया जानवर के हर बाल के बदले एक नेकी। कुर्बानी के लिए भैस, ऊंट, बकरी और दुम्बा बगैर का हुक्म है। नर मेल हो या मादा फीमेल। कुर्बानी का जानवर हर ऐब से पाक होना चाहिए। बड़े जानवरों की उम्र में भैस दो साल, ऊंट 5 साल और बकरा 1 साल का होना चाहिए। इसमें सात लोग शरीक हो सकते हैं। कुर्बानी का वक्त देहात वालों के लिए 10वीं जिलहज्जा बकरीद की सुबह से, 12वीं जिलहज्जा बकरीद की गुरवे आफताब से पहले तक है। अलबत्ता शहर वालों के लिए नमाजे ईद के बाद कुर्बानी करने का हुकुम है। कुर्बानी करने से पहले की दुआ और कुर्बानी करने के बाद की दुआ सोशल मीडिया पर वायरल कर दी है ताकि हम लोगों तक पहुंच सके।।

बरेली से कपिल यादव

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