नवदुर्गा अवतरण और नवरात्रि की महिमा

लखीमपुर खीरी-आज नवरात्रि का दूसरा दिन है और आज सभी जगत जननी माँ दुर्गा भवानी के दूसरे स्वरूप ब्रम्हचारिणी माता की पूजा अर्चना कर रहे हैं।परमशक्ति माता के नौ स्वरूप ही नवरात्रि की महिमा है और सभी स्वरूप की अलग अलग विशेषता है।माता के यह सभी स्वरूप सदमार्ग पर चलने वाले देवताओं के हित में प्रगट हुये हैं और जब भी देवताओं पर असुर अत्याचार पापाचार करते हैं तब तब देवाताओं की पुकार पर माता अपने स्वरूप को प्रगट करके असुरों का विनाश करके धर्म संस्कृति की रक्षा करने आती हैं। नवरात्रि में पढ़ी जाने वाले दुर्गा सप्तशती का पाठ देवी जी की विभिन्न महिमाओं से जुड़ी है जिसे सबसे पहले महर्षि मार्कण्डेय जी को ब्रह्मा जी ने सुनाई थी।देवी जी का पहला अवतरण भगवान विष्णु की मोहमाया के रुप में तब होता है जब विष्णु भगवान के कान की मैल से दो मधु कैटभ नामक दैत्य पैदा होते हैं और ब्रह्मा जी को मारने दौड़ते हैं और उन्हें अपनी जान बचाने के लिए भागकर विष्णु भगवान के पास जाते हैं और उन्हें सोता देखकर महामाया योगनिद्रा का आवाह्वान करते हैं।जगमाता नवदुर्गा का दूसरा अवतरण तब होता है जब असुरराज महिषासुर देवताओं को पराजित करके उन्हें स्वर्ग से भगा देता है और वह ब्रह्मा जी के साथ सहायता के लिए भगवान भोलेनाथ और भगवान विष्णु के पास पहुंचते हैं।भगवान सदाशिव और भगवान विष्णु के साथ देवाताओं के शरीर से निकला तेजपुंज देवी का स्वरूप धारण कर लेता है।भगवान भोलेनाथ व भगवान विष्णु के साथ ही सभी देवता उस देवी को दिव्यास्त्र देते हैं और वहीं देवी महिषासुर और उसकी सेना का विनाश करके देवताओं को उनका खोया साम्राज्य वापस लौटाती हैं।उसी समय देवताओं की विनती पर आदिशक्ति माता देवताओं से खुश होकर वरदान देती हैं कि जब जब वह उनकी याद करेगें तब तब वह उनकी रक्षा करने के लिये आयेगी।इसके बाद जब शम्भु निशुम्भ नामक असुरों न अपने बल पराक्रम और मद से देवताओं को पराजित करके स्वर्ग लोक पर कब्जा करके उनका यज्ञ भाग तक छीन लिया था। उस समय देवी के वरदान को यादकर सभी देवता हिमालय पर जाकर भगवती विष्णुमाया की स्तुति करने लगे।महर्षि मेधा के मुताबिक उसी समय माता पार्वती गंगा स्नान कर रही थी और उसी समय उनके शरीर से प्रकट होकर शिवादेवी बोली कि यह देवता शायद शम्भु निशुम्भ से परेशान होकर मेरी ही स्तुस्ति कर रहे हैं।यही देवी ही कौशिकी या अम्बिका देवी कहलाती हैं और माता पार्वती का काला स्वरूप को ही हिमालय वाली कालिका देवी कहा जाता है।माता का कौशिकी के स्वरूप को ही देखकर असुरराज के दूतों निशुम्भ और चामुण्ड ने अपने राजा से उसकी सुंदरता का बखान करके उसे अपनी रानी बनाने का सुझाव दिया था।असुरों के घमंड को चूर करने के लिये असुरों से युद्ध के दौरान आवश्यकता के अनुरूप जो विभिन्न स्वरूप प्रगट किये वही नवदुर्गा हैं।नवरात्रि देवी शक्ति को प्रदान करके सौभाग्य को बढा़ने वाला होता है और इस दौरान देवी जी के विभिन्न स्वरूपों की विशेषताओं को हासिल करने के लिए विशेष अनुष्ठान भी होते हैं।परमशक्ति की लीला बड़ी अम्परम्पार है और इस सृष्टि का पालन सृजन संहार सब उसी के इशारे पर होता है।जगत जननी माँ दुर्गा जगदम्बा भवानी की इच्छा मात्र उनके विभिन्न स्वरूप और हर स्वरूप की अलग अलग विशेषताएं हैं।नवरात्रि के समय सभी नारियां देवी स्वरुपा हो जाती हैं इसीलिए नवरात्रि अनुष्ठान के समापन अवसर पर नौ कन्याओं को माता के नौ स्वरूप मानकर उनकी पूजा अर्चना करके उन्हें पूड़ी खीर खिलाकर उनके चरण वंदन किये जाते हैं।नवरात्रि की पावन वेला पर एक बार हम फिर से इंटरनेट की दुनिया से जुड़े हजारों लाखों पाठकों शुभचिंतकों अग्रजों को शुभकामनाएं देते हैं और आप सबकी खुशहाली और निरोगी काया के लिये माता के दूसरे स्वरूप से कामना करते हैं।
-अनुराग पटेल,लखीमपुर

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