दिल्ली-लखनऊ हाईवे के किनारे रबड़ फैक्ट्री की खाली जमीन पर लाल मिर्च सुखाने आते है यूपी व उत्तराखंड के व्यापारी

फतेहगंज पश्चिमी, बरेली। दिल्ली-लखनऊ हाईवे के किनारे रबड़ फैक्ट्री के खाली मैदान पर आपको लाल मिर्च के बड़े-बड़े ढेर दिखेंगे। बरेली सहित रामपुर, मुरादाबाद और यहां तक कि उत्तराखंड के व्यापारी इस मैदान मे आकर हजारों टन मिर्च को सुखाकर लाल करते है। इसके बाद बोरियों में भरकर ट्रकों में लोड करके बरेली, दिल्ली और आगरा के मंडियों में ले जाते हैं। यह सिलसिला पिछले करीब 20 साल से चला आ रहा है। आपको बता दे कि बरेली के फतेहगंज पश्चिमी मे संचालित रबर फैक्ट्री 15 जुलाई 1999 को बंद हो गई थी। इसके बाद यहां हाईवे किनारे इस फैक्ट्री की करीब 28 सौ बीघा की जमीन खाली हो गई। जिस पर पहले कंपनी में आने वाले ट्रक खड़े होते थे और लकड़ियों सहित कई अन्य सामान रखे जाते थे। इस मैदान के कुछ हिस्से मे बबूल का जंगल भी था। फैक्ट्री बंद होने के बाद खाली पड़ा यह विशाल मैदान मिर्च कारोबारियों के काम आ रहा है। मीरगंज और फतेहगंज पश्चिमी क्षेत्र मे मिर्च की खेती अधिक होती है। ऐसे मे इस खाली पड़े मैदान पर सबसे पहले यही के व्यापारियों ने किसानों से मिर्च खरीदकर उसे सुखाने का काम शुरू किया। इसके बाद रामपुर, मुरादाबाद और उत्तराखंड से भी मिर्च व्यापारी यहां की जमीन पर मिर्च सुखाने आने लगे। इससे यहां के लोगों को मिर्च सुखाने का रोजगार मिलने लगा। इस काम मे काफी संख्या में स्थानीय महिला और पुरुष कामगार दिनरात जुटे रहते है। मीरगंज के मिर्च कारोबारी अरविंद कुमार बाबू और रामपुर के मैहफूज हुसैन ने बताया कि रबर फैक्ट्री के इस मैदान पर वे पिछले 15 साल से मिर्च सुखाते आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि रामपुर, मुरादाबाद के साथ ही जलालाबााद, बिलासपुर और रुद्रपुर के कारोबारी भी मिर्च सुखाने यही आते हैं। मिर्च को मैदान में फैला दिया जाता है। सूखने पर उसे बड़े कारोबारी लेकर जाते है। इसके बाद उस मिर्च की कुटाई पिसाई करके पैकिंग करके मार्केट में बेचा जाता है। बिलासपुर के मिर्च करोबारी जावेद ने बताया कि किसानों से मिर्च खरीदकर उसे बोरियों में भरकर यहां लाते है। बिलासपुर के आसपास इतनी जगह नही है। जहां मिर्च को फैलाकर बेहतर तरीके से सुखाया जा सके। उन्होंने बताया कि मिर्च को सूखने में करीब 15 दिन का वक्त लगता है। इसके बाद इसे बोरियों में भरकर ट्रकों के माध्यम से दिल्ली और आगरा के मंडी में बेचने के लिए ले जाते हैं। वहां पर कुछ कारोबारी इसे पीसकर पैकेट बनाकर भी बेचते है।।

बरेली से कपिल यादव

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