तीन दिवसीय इंटरफेथ सम्मेलन का आयोजन:कर्बला मज़लूम की हिमायत एवं शांति और न्याय का अमरो अमिट आंदोलन


लखनऊ- अन्याय, अत्याचार, अपराध, आतंक और बुराइयों के मुजस्समे और क्रूर शासक यज़ीद ने आज से लगभग साढ़े चौदह सौ वर्ष पूर्व 10 मोहर्रम 61 हिजरी को मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन अ.स, उनके परिवार और साथियों को जिसमें 80 साल के बूढ़े से ले कर 6 महीने का मासूम बच्चा भी शामिल था, कर्बला के तपते हुए मैदान में बे जुर्मो खता तीन दिन का भूखा प्यासा सिर्फ इस लिए शहीद करवा दिया था क्योंकि इमाम हुसैन ने यज़ीद जैसे क्रूर खलीफा को मानने और उसके रास्ते का अनुसरण करने से साफ इंकार कर दिया था l क्योंकि इमाम हुसैन अच्छी तरह जानते थे कि यज़ीद उन्ही बुराइयों का मुजस्समा हैं जिन बुराइयों को ख़त्म करने के लिए उनके नाना मोहम्मद साहब और उनके पिता हज़रत अली अ.स ने हर तरह की कुर्बानियां दी थीं और इस्लाम उन सभी बुराइयों को मिटाने और अमनो इंसाफ कायम करने के लिए आया था, यही वजह है कि जैसे ही इमाम हुसैन अ.स पर यज़ीद को खलीफा मान कर उसकी बैयत करने का दबाओ बनाया गया इमाम हुसैन अ.स ने अपना घर और वतन मदीना यह कह कर छोड़ दिया कि
” मैं अपने नाना (मोहम्मद साहब) के अनुयाइयों की इस्लाह के लिए निकल रहा हूं, मेरा इरादा है कि लोगों को अच्छे कामों का हुक्म दूं, उन्हें बुराइयों से रोकूं और अपने नाना मोहम्मद साहब और अपने पिता अली के रास्ते पर चलूं”
इमाम हुसैन अ.स ने स्पष्ट कर दिया कि वह यज़ीद जैसे बुराइयों के मुजस्समें और क्रूर शासक की बात कभी नहीं मानेंगे और अपने नाना मोहम्मद साहब और पिता हज़रत अली अ.स की तरह हर तरह का त्याग और बलिदान देने के लिए निकल रहे हैं इमाम हुसैन अ.स ने जो संकल्प मदीने में लिया था उसे अपनी, अपने परिवार वालों और अपने पवित्र साथियों की जान दे कर कर्बला के मैदान में पूरा कर दिया । कर्बला की उसी दर्दनाक घटना की याद मोहर्रम के महीने में हर साल अजादारी एवं ताज़ियादारी की शक्ल में मनाई जाती है और सड़कों पर जुलूस निकाल कर कर्बला की दर्दनाक घटना के बारे में दुनिया वालों को अवगत कराया जाता है । कर्बला के मैदान में इमाम हुसैन अ.स द्वारा पेश की गई अत्यंत दर्दनाक कुर्बानियों के विभिन बिंदुओं पर प्रकाश डालने के लिए हिंदुस्तान की सबसे बड़ी धार्मिक संस्था तनज़ीमुल मकातिब गोलागंज लखनऊ ने 22,23 और 24 जुलाई को “कर्बला मज़लूम की हिमायत एवं शांति और न्याय का अमरो अमिट आंदोलन” के शीर्षक पर पहली बार तीन दिवसीय इंटरफेथ सम्मेलन आयोजन किया है जिसमें ऊपर दिए गए शीर्षक के अंतरगत बहुत से शीर्षक भी दिए गए हैं, जिन पर देशभर से विभिन्न धर्म के धर्मगुरु एवं बुध्दिजीवी अपने अपने विचार प्रकट करेंगे।
कर्बला मज़लूम की हिमायत एवं शांति और न्याय का अमरो अमिट आंदोलन जैसा शीर्षक इस लिए चुना गया है क्योंकि शांति और न्याय मानवता और समाज की आवश्यकताओं में से सबसे अहम आवश्यकता है इस लिए इस पर लगातार प्रकाश डालते रहना ज़रूरी है।
जैसा कि हम सब जानते हैं कि इस्लाम के मायने ही पीस और शांति के हैं और यह भी कटु सत्य है कि पीस और शांति! जस्टिस और न्याय के बिना कायम ही नहीं हो सकती यही वह बुनियादी कारण है की न्याय और शांति से मोहब्बत करने वाले हालात चाहे कितने ही खराब क्यों न हों वह अपने अपने तरीके से पीस और न्याय यानी अमन और इंसाफ कायम करने की कोशिश में लगे रहते हैं और हालात की परवाह कभी नहीं करते, वह अच्छाइयों को फैलाने और बुराइयों को खत्म करने के प्रयास में निरंतर जुटे रहते हैं और हर तरह का त्याग और बलिदान देने को भी तैयार रहते हैं ताकि समाज में शांति और न्याय कायम रहे। मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन अ.स ने अपने नाना और पिता के शांति और न्याय की इस्लामी और इंसानी तहरीक को आगे बढ़ाने के लिए इस्लाम के भेस में छिपे हुए बुराइयों के मुजस्समे यज़ीद जैसे क्रूर और आतंकी शासक को जिसके सामने सब के सब खामोश हो गए थे और जिसने इमाम हुसैन के सामने यह शर्त रख दी थी कि वह उसे खलीफा मान कर उसकी बैयत करे और उसका अनुसरण करे वर्ना उनका सर काट कर दरबार में पेश किया जाए। इमाम हुसैन ने उसके जवाब में साफ साफ एलान कर दिया कि मुझ जैसा उस (यज़ीद) जैसे की कभी बैयत नही कर सकता यानि कभी यज़ीद और यज़ीद जैसों को अपना खलीफा स्वीकार नहीं कर सकता इमाम हुसैन अच्छी तरह जानते थे कि यज़ीद और यज़ीद जैसे बुराइयों के मुजस्समें को खलीफा मान कर उसका अनुसरण करना ज़िल्लत की ज़िंदगी है और जिल्लत की जिंदगी से इज्जत की मौत बेहतर है। यही वजह थी की इमाम हुसैन ने शांति और न्याय कायम करने के लिए अपने घर के मर्दों, औरतों और छोटे छोटे बच्चों के साथ अपना घर और वतन छोड़ दिया यह सब देख कर भी ज़्यादा तर मदीने वाले खामोश रहे, इमाम हुसैन मक्के पहुंचे मक्के में भी उन्हे खुफिया कत्ल करने के लिए यज़ीदी सिपाही पहुंच गए मगर मक्के वालों ने भी साथ नहीं दिया कूफे वालों ने साथ देने के लिए ख़त लिख कर ज़रूर बुलाया, 18000 कूफ़ियों ने साथ देने का पक्का वादा भी करा मगर यज़ीद के गवर्नर इब्ने ज़ियाद ने जैसे ही दबाव बनाया कूफे वालों ने इमाम हुसैन के दूत को जिनका नाम मुस्लिम बिन अक़ील था जो इमाम हुसैन के चचेरे भाई भी थे जिन्हें इमाम हुसैन अ.स ने ही कूफे वालों के पास भेजा था यज़ीद के गवर्नर की दहशत और आतंक से कूफे वालों ने उन्हें अकेला छोड़ दिया और अपने अपने घरों में दुबक कर बैठ गए जिसके कारण इमाम हुसैन के दूत मुस्लिम और उनके दो मासूम बच्चों को यज़ीदी फौज ने बे दर्दी से क़त्ल कर डाला इमाम हुसैन जो मक्के से कूफे आ रहे थे उन्हे कूफे पहुंचने से पहले ही यज़ीदी फौज ने कर्बला के मैदान में घेर लिया और फिर उन सबको तीन दिन तक भूखा प्यासा रख कर शहीद कर दिया शहीदों के सर काट कर लाश पर घोड़े दौड़ाए और ज़िन्दा बची औरतों, बच्चों और बीमार बेटे को क़ैद कर के शहीदों के कटे हुए सरों के साथ आतंकी शासक यज़ीद के दरबार में पेश किया गया जहां उसने यह कहते हुए अपनी फतेह का जश्न मनाया की काश बद्र और ओहद में मारे जाने वाले मेरे बाप दादा और खानदान वाले ज़िन्दा होते तो बहुत खुश होते कि मैने मोहम्मद के खानदान का क्या बुरा हश्र किया है l यज़ीद ने इस्लाम धर्म का मज़ाक उड़ाते हुए यह भी कह डाला कि न कोई वही आई थी और न किताब मोहम्मद ने हुकूमत हासिल करने के लिए सिर्फ एक ढोंग रचा था यज़ीद ने अपने शब्दों से साबित कर दिया की वह और उसका परिवार इस्लाम के भेस में छिपा हुआ इस्लाम दुश्मन था जो सत्ता के लिए इस्लाम धर्म का चोला ओढ़े हुए था।
इमाम हुसैन ने मदीना छोड़ने से पहले अपने संदेश में यह स्पष्ट कर दिया था कि मैं जंग के लिए नहीं बल्कि शांति और न्याय और अमन के लिए निकल रहा हूँ मैं अच्छाइयों को फैलाने और लोगों को बुराइयों से रोकने के लिए अपना घर बार छोड़ रहा हूँ l उन्होंने कर्बला के मैदान में अपने अंतिम समय में यज़ीदी फौज से पूछा कि तुम लोग मुझे क्यों क़त्ल करना चाहते हो आखिर मैने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है मेरा क्या कुसूर है जो तुम लोग मुझे कत्ल करना चाहते हो उन लोगों ने जवाब दिया
” तुम्हारे पिता अली के बुग्ज़ में” क्योंकि इमाम हुसैन के पिता हज़रत अली अ.स को भी शांति और न्याय कायम रखने के जुर्म में ही एक आतंकी हमले के द्वारा मस्जिदे कूफा में सुबह की नमाज़ अदा करते वक़्त हमला कर के ज़ख्मी कर दिया गया था जिसकी वजह से 2 दिन बाद उनकी शहादत हो गई थी। क्योंकि हज़रत अली भी बुरे लोगों के मुकाबले में शांति, न्याय और अच्छाईयां कायम करते और इस्लाम के भेस में छिपे इस्लाम दुश्मनों को लगातार बेनकाब किया करते थे इस लिए उन्हें आतंकी हमले से शहीद किया गया। इमाम हुसैन अ.स क्योंकि अपने नाना और अपने पिता के रास्ते पर चल रहे थे इस लिए वह भी अपने पिता हज़रत अली अ.स के दुश्मनों के रास्ते की सबसे बड़ी रुकावट बन गए थे।
क्योंकि यज़ीद और यज़ीदी हुकूमत भी न्याय और शांति की बदतरीन दुश्मन थी जिसकी वजह से यज़ीद हज़रत अली और इमाम हुसैन का कट्टर दुश्मन था । इसी लिए यज़ीद ने तख्ते खिलाफत पर बैठते ही सबसे पहले यही शर्त रखी की सब लोग यज़ीद को खलीफा मान कर उसके रास्ते का अनुसरण करें क्योंकि इमाम हुसैन ने उस शर्त को ठुकराते हुए एलान कर दिया ऐसा करना उनकी निगाह में ज़िल्लत की ज़िंदगी है उससे अच्छा इज़्ज़त की मौत है।
इमाम हुसैन ने जो कुछ कहा था कर्बला के मैदान में उसे कर के दिखा दिया।
शांति और न्याय कायम करने के लिए कर्बला के मैदान में दी गई उसी दर्दनाक कुर्बानियों के विभिन्न बिंदुओं पर प्रकाश डालने एवं समाज में हर हाल में शांति और न्याय कायम करने के प्रयास के लिए ही यह तीन दिवसीय सम्मेलन जिसका शीर्षक कर्बला मज़लूम की हिमायत एवं शांति और न्याय का अमरो अमिट आंदोलन आयोजित किया जा रहा है।
हर धर्म और हर वर्ग से संबंध रखने वालों से आशा की जाती है की वह इसमें सम्मिलित होने का कष्ट अवश्य ही करेंगे।

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