डॉ.योगेन्द्र ने बनाई आयुर्वेदिक एबीसीडी, अब पढ़ेंगे ए से अश्वगंधा और बी से बहेड़ा

बरेली- आजकल नवाचारी युग में युवक एक से एक नये कार्यों को अंजाम दे रहे हैं। इसी श्रृंखला में दिल्ली के डॉ योगेन्द्र भारद्वाज का नाम और जुड़ गया है, जिन्होंने आयुर्वेदिक वर्णमाला बना दी है, जिसमें अब छात्र ए से एप्पल नहीं, बल्कि ए से अश्वगंधा और बी से बिभीतिकी (बहेड़ा) को पढ़ेंगे। अकादमिक क्षेत्र में होने वाला यह एक विशेष नवाचार है, जिसको पढ़कर छात्र अपनी जीवनचर्या में आयुर्वेद को शामिल करेंगे, साथ ही भारतीय ज्ञान परम्परा के अनुसार आयुर्वेदिक विज्ञान का संरक्षण भी होगा।
कोरोना के दौरान लोगों ने आयुर्वेद को दिल से अपनाया है। अकादमिक विचार के अनुसार – आयु की रक्षा करने वाला शास्त्र आयुर्वेद कहलाता है, जैसाकि आयुर्वेद का प्रामाणिक ग्रन्थ चरकसंहिता कहता है- आयुर्विद्यते यस्मिन् शास्त्रे स आयुर्वेदः। आज के समय में लगभग प्रत्येक मनुष्य ने “स्वास्थ्य ही धन है” ये पङ्क्ति किसी न किसी संदर्भ में अवश्य ही सुनी होगी। इस पंक्ति का मतलब है कि व्यक्ति को इस लोक में अपने स्वास्थ्य का अधिक ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि स्वस्थ शरीर ही दीर्घायु देने का मुख्य कारक है।
डॉ योगेन्द्र भारद्वाज ने ऐसा करने के पीछे का कारण अपनी प्राचीन ज्ञान परम्परा का आधुनिक युग में अनुप्रयोग करना बताया, क्योंकि हमारे ग्रन्थों में विज्ञान भरा पड़ा है, किन्तु वर्तमान समय में उसका उपयोग करना आवश्यक है। वे कहते हैं कि जब हम किसी मेडिकल स्टोर पर जाकर सौंदर्य प्रसाधन का सामान खरीदते हैं, तो हम नीम, एलोबेरा, हल्दी आदि से युक्त उत्पाद खरीदने को लालायित रहते हैं, किन्तु आधुनिक जीवन की दौड़ में हम उस परम्परा को भूलते जा रहे हैं। इसलिए, जब हम एच है हल्दी और और एम से मकोय के गुण-दोषों से रूबरू होंगे, तो निश्चित रूप से हम अपनी दिनचर्या में सुधार करेंगे। वर्तमान में अपनी भारतीय ज्ञान परम्परा (IKS) का संरक्षण व उसका आधुनिक अनुप्रयोग अत्यावश्यक है। राष्ट्रीय शिक्षानीति-2020 भी मुख्य रूप से इसी विचार पर केंद्रित है। दिल्ली विवि, जेएनयू, इलाहाबाद विवि जैसे शिक्षण संस्थान भी आज आयुर्वेद को केन्द्रित करते हुए नये-नये कोर्स तैयार कर रहे हैं।
डॉ योगेन्द्र ने आगे बताया कि यह आयुर्वेदिक वर्णमाला अंग्रेजी वर्णमाला पर आधारित है, किन्तु उसके अक्षरों को भारतीयता केंद्रित रखा गया है, जैसे- एन अक्षर से नीम या जे अक्षर से जीरा। अंग्रेजी वर्णमाला के 26 अक्षरों के आधार पर 26 आयुर्वेदिक औषधियों के द्वारा यह वर्णमाला बनाई गई है। इस वर्णमाला में उक्त 26 औषधियों के गुणों का भी वर्णन किया गया है, जिसमें प्रत्येक औषधि में सर्वश्रेष्ठ पांच (5) गुणों का समावेश है। छात्र इन औषधियों को सामान्य रूप से जानेंगे भी और उनका अध्ययन करके आयुर्वेदिक बायोलॉजी, आयुष मंत्रालयाधीन अनेक शोधकार्यों के प्रति प्रवृत्त भी होंगे। इसके साथ-साथ इस वर्णमाला में प्रत्येक औषधि के न्यूनतम तीन (3) फोटो को भी दिया गया है, जिससे छात्र व आम जनमानस उसके मूल स्वरूप को पहचान सके। क्योंकि, आज के समय में हम अपने सामान्य जनजीवन में अनेक औषधियों को देखते तो हैं, लेकिन उनका नाम नहीं जानते हैं और इसीलिए हम उनके संरक्षण-संवर्द्धन के बारे में भी नहीं सोचते हैं। जब छात्र व आमजन इस वर्णमाला को समझेंगे, तो वे रोजमर्रा की जिंदगी में इनका अधिकतम प्रयोग करके अपने जीवन को स्वास्थ्यकर व खुशहाल बना सकेंगे। जल्द ही इसकी प्रकाशित प्रतिलिपि आम जनमानस को सुलभ होगी।
चूंकि, डॉ योगेन्द्र भारद्वाज ने संस्कृत में बरेली के एक वैदिक गुरुकुल से पारंपरिक शिक्षा प्राप्त करते हुए दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विवि (एमए/एमफिल/पीएचडी) तक का सफर तय किया है। उन्होंने जेएनयू (दिल्ली) से संस्कृत, आयुर्वेदिक बायोलॉजी और पर्यावरण विज्ञान को समन्वित रूप से केन्द्र में रखते हुए राष्ट्रीय शिक्षानीति-2020 के अनुरूप अन्तर्वैषयिक उपागम (इन्टरडिसिप्लिनरी अप्रोच) आधारित शोधकार्य सम्पन्न किया है। आयुर्वेद के क्षेत्र में डॉ योगेन्द्र भारद्वाज का अमेरिका से एक रिसर्च आर्टिकल (2020) भी प्रकाशित किया जा चुका है तथा “पर्यावरण और संधारणीय विकास” (2021) नाम से दिल्ली के विद्यानिधि प्रकाशन से उनकी एक पुस्तक भी प्रकाशित हो चुकी है। वर्तमान में डॉ योगेन्द्र दिल्ली के मालवीय नगर स्थित सीनियर सेकेंडरी स्कूल में संस्कृत के शिक्षक पद पर कार्यरत हैं।

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