हाल ही में सम्पन्न हुई जीएसटी परिषद की बैठक में लिए गये निर्णयों को हम कैसे भी पूरी तरह सही नहीं ठहरा सकते हैं। हां, कुछ निर्णय कर प्रणाली के राजस्व हित में कहे जा सकते हैं, यह हम अच्छी प्रकार से समझते हैं कि सरकारी विभाग में बैठे उच्चाधिकारीगण ‘राजस्वहित’ को लेकर बहुत चिंतित रहते हैं जीएसटी दर बढ़ाये जाने का राजस्वहित में नहीं कहा जा सकता, जैसे लेकिन खाद्यान्न वस्तुओं पर जीएसटी बढ़ाने को कहीं से भी औचित्यपूर्ण नहीं है। इसी प्रकार अन्य वस्तुओं पर भी जीएसटी करों की वृ(ि को भी पूरी तरह से सही नहीं ठहराया जा सकता।
हम यह भी समझ सकते हैं कि जीएसटी परिषद प्रतिमाह राजस्व वृ(ि को लेकर गंभीरता से प्रयास कर रही है इसीलिए विभिन्न वस्तुओं पर जीएसटी की वृ(ि की परन्तु हम लगातार पत्राचार के माध्यम से सुझाव देते आ रहे हैं कि जीएसटी प्रणाली एवं जीएसटीएन में व्यापक सुधारीकरण करते हैं तो निश्चितरुप से राजस्व में इतनी वृ(ि होगी जितनी सरकार अपेक्षा भी नहीं करती। हम यह भी कहते हैं कि जिस देश की आबादी 136 करोड़ की है परन्तु प्रश्न उठता है कि जितनी संख्या में आयकर रिटर्न दाखिल हो रहे हैं, साथ ही जीएसटी प्रणाली के अन्तर्गत पंजीकृत व्यापारी व्यापार कर रहे है और प्रति माह राजस्व प्राप्त हो रहा है, क्या सरकार इस संख्या से संतुष्ट है?
जीएसटी परिषद की बैठक में खाद्यान्न वस्तुओं पर लगाया जीएसटी कर पूरी तरह से गलत है। एक तरफ तो जीएसटी में सरकार ने जीएसटी में खाद्यान्न वस्तुआंे को ‘करमुक्त’ कर दिया लेकिन पिछले दरवाजे से पैक्ड खाद्यान्न वस्तुओं पर कर लगाना औचित्यपूर्ण नहीं है।
लेकिन हम एक जागरुक नागरिक होने के नाते अवश्य ही कहना चाहते हैं कि देश की व्यापारिक ग्रोथ, व्यापारिक स्थिति अत्याधिक चिंतजनक है क्योंकि हमारे देश में व्यापार-उद्योग को विकास हेतु कोई योजना बनाना और लागू करना राजनीतिक क्षेत्र में अभिशाप माना जाने लगा है।
अभी पिछले दिनों कर जानकारी में प्रकाशित मेरा लेखा पढ़ा था कि 60 से 75 साल पुराने कानून व्यवस्था आज के दौर में कितने सार्थक और समर्थ तो देश की जीडीपी में अपेक्षाकृत वृ(ि कर सके। इस बारे में यूट्ब वीडियो (karjankari) भी कही थी। मैं इस बिन्दु को इस लिए उठा रहा हूं कि जीएसटी एवं अन्य कानूनों में पंजीकृत व्यापारियों व करदाताओं के लिए punishment & harassments की व्यवस्था भरपूर है लेकिन कहीं भी Promotion & Protection नहीं है। मैं अपने इस तर्क के समर्थन में कह सकता हूं कि 2017 में लागू एवं प्रभावी माल एवं सेवाकर अधिनियम, का धरातल 1944 को सेन्ट्रल एक्साइज कानून है और दूसरा धरातल 1962 में बना कस्टम एक्ट। अब आप स्वयं विचार करें क्योंकि मेरे प्रश्न 1944 और 1962 में देश की आबादी क्या थी? दूसरा प्रश्न है कि उस समय भारत में व्यापारिक आंकड़ा क्या था? तीसरा प्रश्न है कि 1944 और 1962 में भारत का जीडीपी क्या थी?
अब आप स्वयं ही विचार करें, कि 1944 एवं 1962 का समय, काल एवं परिस्थिति का मुकाबला 2017 में किया जा सकता है?
मैंने अपने कई लेखों में हमेशा से लिखा रहा हूं कि हमारे देश के अर्थशास्त्री व नीति निर्मातागण कोई भी कानून बनाते हैं अथवा कोई योजना, उसका धरालत व सोच पुरानी नीति के आधार को बनाकर सृजन एवं निर्माण किया जाता है, आज की देश, काल परिस्थिति का आंकलन नहीं करते, यह आरोप नहीं है वरन सत्य है, उदाहरण जीएसटी कानून है कानून बना 2017 में धरातल में 1944 एवं 1962। देश में ही एक बड़ा उदाहरण है कि हमारे देश की सड़क मार्गो की स्थिति 1998 से पूर्व क्या थी, एक आंकड़ा दे रहा हूं जापान एवं अमेरिका में 1983 में 100 किमी क्षेत्र में 200 किमी सड़क मार्ग हुआ करते थे लेकिन भारत में प्रति 100 किमी में 4 किमी सड़क मार्ग थे लेकिन तत्कालीन सड़क परिवहन मंत्री (माननीय अटज जी की सरकार में) नितिक गडकरी में राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण का गठन करते हुए पीपीपी के आधार पर 4मार्गीय, 6मार्गीय सड़कों का निर्माण कराया, फिर 2014 के बाद पुनः वही योजना लागू एवं क्रियान्वित करते हुए देश में राष्ट्रीय राजमार्गो को जाल बिछा दिया, यदि पुरानी ही नीति में सड़क निर्माण किया जाता रहता तो यह सड़कों का जाल बिछाना संभव ही नहीं था? स्पष्ट है नई सोच एवं आवश्यकता के अनुसार सड़क निर्माण की योजना बनायी और क्रियान्वयन किया, परिणाम देखें।
इसी प्रकार हम यह कहना चाहते हैं कि यदि भारत वास्तव में विश्व की 5 बड़ी अर्थव्यवस्था में पांचवे नंबर पर आना चाहता है लेकिन हमारा कहना है कि आज भी भारत विश्व की पहले नंबर की अर्थ व्यवस्था है, इसके पीछे कारण है कि ‘भारत विश्व का सबसे बड़ा बाजार तो है ही साथ ही विनिर्माण के क्षेत्र में प्रथम स्थान है’ बस आवश्यकता है कि ‘नई सोच, नई नीति’ के साथ बनाने की। संभावनाओं कांे देखते हुए कर प्रणाली कानूनों में ‘प्रोत्साहन एवं प्रेरणा’ देने की नीति की।
‘प्रोत्साहन एवं प्रेरणा’ देने की नीति बनाने एवं लागू करने से आम जनता के मन में कानूनों के प्रति विश्वास जुड़ेगा, जब आम नागरिकों में कानूनों प्रति विश्वास बढ़ेगा। अब वह समय नहीं है कि कानूनों के माध्यम से जनता को जोड़ा जाए, एक बात और है कि जब सरकार प्रोत्साहन एवं प्रेरणात्मक कर प्रणाली लागू करेगी तो निश्चितरुप से देश की जीडीपी बढ़ेगा, क्योंकि राजस्व संग्रह एवं पंजीकृत व्यापारियों की संख्या के साथ दाखिल होने वाले आईटीआर की संख्या में बढ़ोतरी होगी।
सबसे बड़ी बात यह है कि देश में भारी, बड़े एवं माइक्रो उद्योग तो एमएसएमई के अन्तर्गत संगठित क्षेत्र में शामिल कर लिए गऐ हैं परन्तु देश का खुदरा व्यापार पूरी तरह से असंगठित क्षेत्र में चल रहा है। सरकार को इस सोच से बाहर आना होगा कि सरकार को खुदरा व्यापार का महत्वपूर्ण योगदान को स्वीकरना होगा। शायद सरकार भूल रही है कि खुदरा व्यापार, देश के राजस्व संग्रह के साथ रोजगार देने में भी मुख्य भूमिका निभा रहा है। क्योंकि भारी उद्योगों में विनिर्मित वस्तुओं की खपत को बढ़ाने, खुदरा व्यापारी ही चेन सिस्टम द्वारा कार्य कर रहा है।
छोटे व्यापारियों द्वारा दाखिल होने वाले वार्षिक रिटर्न GSTR-4 पर एमनेस्टी स्कीम पर कोई ध्यान नहीं दिया, जिसके कारण राजस्व संग्रहित नहीं हो पा रहा है, इसी प्रकार विश्वास से विवाद ओर बढ़ने के कारण पर ध्यान नहीं दिया। अतः परिषद को जीएसटी को नई सोच में ढालना चाहिए, साथ ही जीएसटी को सरल नहीं बल्कि सुधारीकरण पर ध्यान देना चाहिए।
-पराग सिंहल