बरेली। अवैध रुप से शराब का काला कारोबर कर लोगों की जान से खिलावाड़ करने का धंधा रूकने का नाम नहीं ले रहा है। साल में कई घटनाएं ऐसी होती है। जिसमें अवैध या जहरीली शराब पीने से लोग मौत के मुंह में चले जाते हैं। उसके बाद मुख्य शराब माफिया तक पुलिस नहीं पहुंच पाती है। शराब बेचने वाले पर कार्रवाई की जाती है। मुख्य माफिया सख्ती के चलते खुद काम बंद करके दोबारा फिर से शुरू कर देता है। जिले की खादर से सटे गांवों व तमाम इलाकों में अवैध शराब का कारोबार चल रहा है। जिसमें खादर से सटे गांवों में तो शराब का कारोबार लोग लघु उद्योगों की तरह कर रहे है। मोटे मुनाफे के चलते नकली शराब बनाने वाले मौत के सौदागर बन जाते हैं। लाभ इतना है कि यह कारोबार एक साल मे ही मालामाल कर दे। 80 रुपये में बिकने वाला पौवा मात्र 15 रुपये में तैयार हो जाता है। इसलिए अवैध कारोबारियों को किसी की जान की परवाह नही रहती है। नकली शराब में इतने घातक केमिकल और नशीली दवाएं मिलाई जाती हैं कि वह कब जहरीली शराब मे कब परिवर्तित हो जाती है पता ही नहीं लगता। बिना पुलिस और आबकारी विभाग की मिलीभगत के यह कार्य संभव भी नहीं है। जिले मे नकली और कच्ची शराब का कारोबार लंबे समय से चल रहा है। इसके प्रमुख केंद्र रामगंगा किनारे और खादर क्षेत्र से सटे गांव हैं, जहां भट्टियां धधकती हैं। इसमें गुड़, शीरा से लहन तैयार किया जाता है। इसमे यूरिया, मिथाइल आदि भी मिला दी जाती है। नशीली दवाओं का भी प्रयोग किया जाता है। आक्सीटोसिन तक मिला दिया जाता है। हल्की सी देसी शराब मिलाई जाती है। फिर इसे पौवे में भरकर बेचा जाता है। अवैध कारोबारी इसे परचून की दुकान 50 से 60 रुपये में बेच देते हैं। अब तो सरकारी दुकानों पर भी पेटियों के हिसाब से यह बेची जा रही है। नकली शराब में किसी पदार्थ की मात्रा अधिक होने पर व्यक्ति के शरीर में घातक हो जाती है। सबसे अधिक असर लिवर और आंखों पर होता है। शरीर के अंग काम करना बंद होने से व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। खादर क्षेत्र होने के चलते कार्रवाई के लिए पुलिस भी कई बार हिम्मत नहीं जुटा पाती है। कई बार शराब तस्करों ने हमला तक कर दिया है। तमाम बार यहां पर भट्टियों को तोड़ा भी गया है। अवैध कारोबारियों की पैठ पुलिस और अधिकारियों तक भी रहती है, इसलिए यह कार्रवाई से बचते रहते है।।
बरेली से कपिल यादव