* ‘सूली पर लोकतंत्र’ पर हुई परिचर्चा
वाराणसी- मैदागिन स्थित पराड़कर स्मृति सभागार में रविवार को जज लोया की मौत पर आधारित ‘सत्ता की सूली’ पुस्तक का लोकार्पण हुआ। इस मौके पर ‘सूली पर लोकतंत्र’ विषय पर विचार-विमर्श हुआ। इसमें वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ ने सांप्रदायिक हिंसा से उत्पन्न खतरों की ओर इशारा किया।
उन्होंने कहा कि बैठक में मुख्य अतिथि के तौर पर बोलते हुए मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीटलवाड ने कहा कि ये चुनाव देश का भविष्य तय करने जा रहा है. लेकिन ये लड़ाई आखिरी नहीं है. चुनाव के बाद तीन तरह की स्थितियां बनने के आसार हैं। एक तो यह सरकार जा सकती है. दूसरी कमजोर हो सकती है और तीसरी स्थिति विपक्ष के लिए सरकार का मौका मिल सकता है। उन्होने कहा कि विपक्ष की सरकार बनने के बाद भी लड़ाई अधूरी रहेगी जब तक जमीनी स्तर पर इस ताकत के खिलाफ गोलबंदी कर इसको जड़ से उखाड़ नहीं फेंका जाता है. तीस्ता का कहना था कि इस चुनाव में सिर्फ एक कसौटी हो सकता है वो है इस ताकत को हराने वाली ताकत के पक्ष में मतदान करना। उन्होने कहा कि जरूरत इस बात की है कि देश में 40 से 50 ऐसे लोगों को जिता कर संसद में भेजा जाए जो संसद में जनता की आवाज बुलंद कर सके। उन्होने कहा कि इस मौके पर बनारस की जिम्मेदारी बड़ी है. लिहाजा उन्हें बेहद सोच समझ कर फैसला लेना होगा.
वेब न्यूज़ पोर्टल जनचौक.कॉम के संपादक महेंद्र मिश्रा, पत्रकार प्रदीप सिंह और उपेंद्र चौधरी द्वारा लिखित ‘सत्ता की सूली’ पुस्तक में मौजूद सामग्री का जिक्र करते हुए सीतलवाड़ ने कहा कि यह पुस्तक लोकतंत्र के खतरे की संभावना को तथ्यों के साथ लोगों के सामने प्रदर्शित करती है। इसे बहुत पहले ही प्रकाशित हो जानी चाहिए थी लेकिन अब भी यह प्रासंगिक है। इस मौके पर वरिष्ठ आलोचक चौथीराम यादव ने कहा कहा कि सत्ता की सूली किताब और आज का विषय इस लिहाज से प्रासंगिक हो गया है लोकतंत्र पर शिकंजा कसता जा रहा है. और एक ऐसे समय में वरिष्ठ पत्रकार सुरेश प्रताप सिंह, मोहम्मद हनीफ, एसपी राय, महेंद्र मिश्र, रणधीर सिंह, लेनिन रघुवंशी आदि ने भी अपने विचार रखे। कार्यक्रम का आयोजन अंबेडकर-भगत सिंह विचार मंच और एपवा ने संयुक्त रूप से किया। कार्यक्रम का संचालन सुनील यादव ने किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. चौथीराम यादव ने किया।
रिपोर्ट:-राजकुमार गुप्ता वाराणसी