शाहजहांपुर- बच्चे स्कूल पढ़ने नही आते सारा दोष सरकारी टीचर का नहीं, मां-बाप की भी कुछ जिम्मेदारियां बनती हैं। गेहूँ कटान का सीजन चल रहा है। किसानों को अपनी मेहनत से उपजे एक-एक दाने की चिंता सता रही है। दिन निकलने से पहले ही सब खेत पर पहुंच गए, ताकि समय के रहते गेहूं घर पहुंच जाएं। प्राइमरी पाठशाला में आज भी बच्चे बहुत कम आए हैं। मेडम/सर चिंतित हैं कि ऐसे रोज-रोज कब तक चलेगा? मेडम एक-दो बच्चों के साथ गांव में घर-घर गईं तो पता चला कि बच्चे भी अपने माता-पिता के साथ खेत पर गए हैं। उन्होंने एक बच्चे से पूछा बेटा, छोटे बच्चे खेत पर क्या करते है? तपाक से बच्चा बोला, मेडम वे गेहूं की बाली बीनते हैं, जब किलो-दो किलो गेहूं इकट्ठा हो जाता है तो उससे खाने पीने की चीजें खरीद लेते हैं। बातचीत करते-करते वह और भी बच्चों घर पहुंच गई। देखा तो एक बच्चा आंगन में बर्तन साफ कर रहा था और उसकी बहन कपड़े धो रही थी। बच्चों को देखकर मेडम की आंखे नम हो गईं। दोनों बच्चे शरमाते हुए मेडम को हैरानी से देखने लगे। मेडम ने जब व्हाट्सअप पर मुझे ये फोटो भेजा तो बहुत तल्ख अंदाज था। यूं कहूं कि वह गुस्से से लाल-पीली थीं। बोलीं, यही काम हमारे स्कूल में करता तो आप अखबार बाले बड़ी-बड़ी फोटो के साथ तीखे-तीखे सवाल दागते। प्राइमरी का मास्टर तो निक्कमा है, बहुत मोटी पगार ले रहा है, टीचरों ने देश का भविष्य बर्बाद कर दिया, कोई काम-धाम नहीं कर सकते, बगैरा-बगैरा। क्या कभी आपने बच्चों के माता-पिता से भी पूछा है कि वे साल भर अपने बच्चे की खबर क्यों नहीं लेते? उनका बालक स्कूल भी आता है या नहीं? कुछ पढ़ता है या नहीं? आज विद्यालय में टीचर ने कुछ पढ़ाया है या नहीं, कई-कई दिनों की एक ही गंदी यूनिफार्म पहनकर बिना हाथ-मुंह धोए बच्चे स्कूल आ जाते हैं उसके बस्ते में क्या-क्या फालतू की चीजें रखीं है यह देखने के लिए भी मां-बाप को फुर्सत तक नहीं होती। गेहूं के लिए तो किसान आंसू बहाएंगे, लेकिन अपनी ही औलाद से पक्षपात क्यों? सरकार क्या नहीं कर रही बच्चों के लिए? अशिक्षा के अभाव में बड़े होकर या तो ये अपराध करेंगे या फिर किसी नेता के लिए नारे लगाएंगे। आपके लिए तो सरकारी मास्टर ही इन सबके लिए जिम्मेदार है।
मेडम की बात सुनकर मैं सोचने पर मजबूर हो गया। सोचने लगा कि प्राइवेट और सरकारी स्कूलों की तुलना करना बेमानी है। प्राइवेट स्कूलों में बच्चा, टीचर और मां-बाप का लगातार कम्यूनिकेशन होता रहता है। कभी पीटीएम के नाम पर तो कभी सांस्कृतिक कार्यक्रम के नाम पर, डायरी बच्चे की पल-पल की खबर रखती है। मगर, यह सब सरकारी विद्यालयों में नहीं होता है। क्योंकि बच्चा, अभिभावक और टीचर, इन तीनों से ट्रेंगल बनता है। तीनों में से किसी भी एक ने अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं की तो ट्रेंगल पूरा नहीं बन सकता और बच्चा अपनी मंजिल से भटक जाएगा। सरकारी योजनाएं भी इसलिए धराशायी हो रही हैं।
– वर्तमान परिदृश्य पर प्रहार करता देवेन्द्र प्रताप सिंह कुशवाहा का लेख