खेलने-पढ़ने की उम्र में दो समय की रोटी की चिंता

बरेली। खेलने पढ़ने की उम्र में भी तमाम छोटे बच्चों पर कोरोना काल मे दो समय की रोटी जुगाड़ करने की चिंता हावी हो गई है। हालांकि बाल श्रम कानून में अब 14 साल से कम उम्र के बच्चों को जोखिम रहित पारिवारिक व्यवसाय, मनोरंजन उद्योग और खेल गतिविधियों में काम करने को मंजूरी दे दी है। बच्चों को इन कामों में विद्यालय समय के बाद काम पर लगाया जा सकेगा। इसके साथ ही अभिभावकों के खिलाफ दंडात्मक कार्यवाही में भी ढील दी गई है। मगर रिक्शा चलाकर कबाड़ी का काम करने वाले यह बच्चे तो स्कूल जाते ही नहीं है। इस उम्र में रिक्शा खींचना जोखिम रहित काम की श्रेणी में नहीं आता है। बाल अधिकार कार्यकर्ता जहां बाल श्रम पर पूरी तरह रोक लगाने की मांग करते है। वहीं इस तरह का कोई भी फैसला करने से पहले देश के सामाजिक ताने-बाने तथा सामाजिक आर्थिक हालात को भी ध्यान में रखना पड़ता है। शायद इसीलिए बाल श्रम को रोकने के लिए सख्त कदम भी नहीं उठाए जाते हैं। कहीं तो बच्चे ऐसे हैं कि वे काम न करें तो उनके घर में चूल्हा भी नहीं जल पाए। बाल दुर्व्व्यापार मुक्त भारत एवं बाल अधिकारों की सुरक्षा विषय पर तमाम आयोजन होते रहते है। बाल संरक्षण को लेकर लोअर कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक, प्रदेश सरकार से लेकर केंद्र सरकार तक सभी गंभीर है। जरूरत है एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट को और मजबूत बनाया जाए। थाने में तैनात बाल कल्याण अधिकारी को चौकस किया जाए। जिले में मौजूद ह्यूमन ट्रैफिकिंग थाने की हालत बद से बदतर है। इस थाने में तैनात पुलिसकर्मियों के पास न तो वाहन है और न ही कोई अन्य संसाधन है। थाने में तैनात पुलिसकर्मी सिर्फ पुलिस ऑफिस में एक से दूसरे ऑफिस में कागज पहुंचाने का काम कर रहे है।।

बरेली से कपिल यादव

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