बरेली। कोरोना संक्रमण खत्म करने वाली कोई नई दवा नहीं बनी है। सरकारी कोविड अस्पताल हो या फिर प्राइवेट, दोनों में मरीज को पहले आइवरमेक्टिन, डाक्सीसाइक्लीन, टेमीफ्लू, न्यूमोस्लाइड, विटामिन-सी,बी, डी व मल्टीविटामिन, एंटीबायोटिक, एंटी एलर्जिक समेत अन्य जीवनरक्षक दवा खिलाई जाती हैं। गंभीर मरीज को रेमडेसिविर इंजेक्शन व अन्य दूसरी दवा दी जाती है। अंत में आक्सीजन, वेंटीलेटर, डायलिसिस पर लिया जाता है। एक अनुमान के मुताबिक सरकारी कोविड अस्पताल में एक मरीज पर बमुश्किल 80 हजार से एक लाख रुपये का खर्च आ रहा है, लेकिन निजी कोविड अस्पतालों में यह तीन से पांच लाख रुपये तक पहुंच रहा है। यह खर्चा कोविड अस्पतालों के लिए तय किए पैकेज से भी कई गुना अधिक है। सवाल ये है? कि दवा व उपचार की विधि तकरीबन एक जैसी ही है? तो सरकारी व निजी कोविड अस्पतालों के खर्च में इंतना अंतर क्यों? यदि मरीजों से अवैध वसूली हो रही है? तो सरकारी तंत्र ने चुप्पी क्यों साध रखी है। कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या बढने से सरकारी अस्पतालों में बेड, आक्सीजन, आइसीयू व वेंटीलेटर के लिए मारामारी मची हुई है। वर्तमान मे वीआइपी व रसूख वाले मरीजों को ही यहां इलाज में प्राथमिकता मिल रही है। रह गए प्राइवेट कोविड अस्पताल। इन अस्पतालों में इलाज कराना आम आदमी की पहुंच से बाहर है। इसकी वजह है महंगाा इलाज खर्च। सरकार ने भले ही कोविड अस्पतालों के लिए इलाज खर्च की सीमा तय कर दी हो, लेकिन संचालकों ने मनमाने ढंग से बेड, आक्सीजन, वेंटीलेटर व अन्य सेवाओं के लिए शुल्क तय कर रखे हैं। कई अस्पतालों ने अपनी ही रेट लिस्ट चस्पा कर दी है। इसके अनुसार यदि कोई गंभीर संक्रमित मरीज भर्ती हो जाए तो उसकी जेब ढीली होनी तय है। यहां साधारण बेड का आठ से 10 हजार, आक्सीजन बेड 13-20 हजार व वेंटीलेटर का 20-25 हजार रुपये तक वसूला जा रहा है। ऐसे हालात में आम आदमी अपने मरीज का इलाज कहां कराएं। शासन रतर से खर्च तय है। जिसके मुताबिक आक्सीजन बेड पर भर्ती मरीज के इलाज का दैनिक खर्च 64 सौ रुपये, आइसीयू (बिना वेंटीलेटर) में भर्ती मरीज के इलाज का दैनिक 10 हजार 400 रुपये, आइसीयू (वेंटीलेटर युक्त) में भर्ती मरीज के इलाज का दैनिक खर्च 12 हज़ार रुपये तय किया है। दैनिक खर्च में भोजन, नर्सिंग केयर, मोनिटरिंग, डाक्टर विजिट, जांंच, पीपीई किट आदि सेवाएं शामिल हैं। यह पैकेज भी निजी अस्पतालों के लिए है, जिनके अपने कई खर्चे होते हैं। जबकि, सरकारी कोविड अस्पताल में मरीज पर होने वाला खर्च औसतन पांच से 10 हजार रुपये प्रतिदिन आता है। इस तरह निजी अस्पतालों व सरकारी अस्पतालों के खर्च में काफी बड़ा अंतर है। कोविड अस्पतालों की निगरानी प्रशासनिक स्तर पर न होने से अस्पताल संचालक मनमानी कर रहे हैं। जबकि अधिकारियों की अब तक की रिपोर्ट गुड वाली हैं। जबकि, यहां आम आदमी के लिए इलाज कराना नामुमकिन हो गया है। लोगों का कहना है कि कोरोना का इलाज काफी महंगा है। कई अस्पताल तो मरीज को भर्ती करते वक्त ही एक से डेढ़ लाख रुपये एडवांस राशि जमा करा लेते हैं।।
बरेली से कपिल यादव